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Sawan Somvar 2023: कब है सावन का चौथा सोमवार, इस दिन कौन-से शुभ योग बनेंगे? जानें पूजा विधि और शुभ मुहूर्त भी
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जानें सावन के चौथे सोमवार से जुड़ी खास बातें
सावन का अधिक मास 18 जुलाई से शुरू हो चुका है जो 16 अगस्त तक रहेगा। सावन मास के प्रत्येक सोमवार को शिवजी की पूजा का विशेष महत्व है। सावन का अधिक मास होने से इस बार सावन सोमवार (Sawan Somvar 2023) की संख्या 8 हो गई है, इनमें से 3 सोमवार निकल चुके हैं। सावन का चौथा सोमवार शुभ योगों के चलते काफी खास रहेगा। आगे जानिए कब है सावन का चौथा सोमवार और इस दिन कौन-कौन से शुभ योग बनेंगे…
कब है सावन का चौथा सोमवार? (Kab hai Sawan ka Chotha Somvar)
सावन का चौथा सोमवार 31 जुलाई को है। इस दिन सावन अधिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि रहेगी। इस तिथि के स्वामी स्वयं भगवान शिव हैं। इस दिन सिंह राशि में शुक्र और बुध ग्रह की युति रहेगी, जिससे ‘लक्ष्मी-नारायण’ नाम का शुभ योग बनेगा। सिंह राशि में ही मंगल ग्रह भी रहेगा। सिंह राशि में 3 ग्रह (बुध, मंगल और शुक्र) एक साथ होने से त्रिग्रही योग बनेगा।
ये हैं पूजा के शुभ मुहूर्त (Sawan Somvar July 2023 Shubh Muhurat)
- सुबह 09:17 से 10:55 तक
- दोपहर 12:07 से 12:59 तक
- दोपहर 02:11 से 03:49 तक
- शाम 05:27 से 07:05 तक
सावन सोमवार पर इस विधि से करें शिव पूजा (Shiv Puja Vidhi on Sawan Somwar)
- 31 जुलाई, सोमवार की सुबह स्नान करें और हाथ में जल, चावल और फूल लेकर सावन सोमवार व्रत-पूजा का संकल्प लें।
- इसके बाद ऊपर बताए गए किसी एक शुभ मुहूर्त में शिवजी की पूजा करें। पूजन की सामग्री पहले से तैयार रखें।
- सबसे पहले शिवलिंग पर जल चढ़ाएं, फिर दूध से अभिषेक करें, इसके बाद पुन: एक बार शुद्ध जल चढ़ाएं।
- शुद्ध घी का दीपक जलाएं। इसके बाद गंध, रोली, मौली, जनेऊ, शहद, बिल्वपत्र, भांग, धतूरा आदि चढ़ाते रहें।
- पूजा के दौरान ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करते रहें। पूजा संपन्न होने पर भोग लगाएं और आरती करें।
- जैसा संकल्प आपने लिया है, वैसा ही पालन करें। निराहार व्रत का संकल्प लिया है तो दिन भर कुछ खाएं नहीं।
- अगर एक समय फलाहार का संकल्प लिया है तो एक समय फल, दूध आदि खा सकते हैं।
शिवजी की आरती (Shivji Ki Aarti)
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
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Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।