सार

Mahalakshmi Vrat 2023: श्राद्ध पक्ष के दौरान महालक्ष्मी व्रत करने की परंपरा है। इस व्रत में हाथी पर बैठी हुई देवी लक्ष्मी की पूजा का विधान है। इसलिए इसे हाथी पूजा भी कहते हैं। इस बार ये व्रत अक्टूबर 2023 के पहले सप्ताह में किया जाएगा।

 

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को महालक्ष्मी व्रत (Mahalakshmi Vrat 2023 Kab hai) किया जाता है। इस बार ये व्रत 6 अक्टूबर, शुक्रवार को किया जाएगा। इस व्रत से जुड़ी कईं कथाएं हमारे धर्म ग्रंथों में मिलती है। इस व्रत में हाथी पर बैठी देवी लक्ष्मी की पूजा का विधान है। इसलिए इसे हाथी अष्टमी और हाथी पूजन के नाम से भी जाता है। कुछ स्थानों पर तो सिर्फ मिट्टी से बने हाथी की ही पूजा की जाती है। आगे जानिए इस व्रत की विधि, मंत्र आदि…

कौन-कौन से शुभ योग बनेंगे महालक्ष्मी व्रत पर (Shubh Yog On Mahalakshmi Vrat 2023)
पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 6 सितंबर, शुक्रवार को पूरे दिन रहेगी। शुक्रवार को आर्द्रा नक्षत्र होने से पद्म नाम का शुभ योग बनेगा। इसके अलावा इस दिन सर्वार्थसिद्धि, परिघ और शिव नाम के 3 अन्य शुभ योग भी रहेंगे। बुध और सूर्य के कन्या राशि में होने से बुधादित्य नाम का राजयोग भी इस दिन बनेगा।

इस विधि से करें महालक्ष्मी व्रत (Mahalakshmi Vrat 2023 Puja Vidhi)
- 6 अक्टूबर, शुक्रवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें और ये मंत्र बोलें-
करिष्यsहं महालक्ष्मि व्रतमें त्वत्परायणा,
तदविघ्नेन में यातु समप्तिं स्वत्प्रसादत:
- शाम को शुभ मुहूर्त में देवी लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र किसी साफ स्थान पर स्थापित करें। ध्यान रखें कि चित्र या प्रतिमा में देवी लक्ष्मी हाथी पर बैठी हुई होनी चाहिए। सबसे पहले देवी लक्ष्मी के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
- देवी को कुंकुम से तिलक करें और हार-फूल अर्पित करें। इसके बाद चंदन, अबीर, गुलाल, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल आदि चीजें चढ़ाएं। इसके बाद नीचे लिखा मंत्र बोलें-
क्षीरोदार्णवसम्भूता लक्ष्मीश्चन्द्र सहोदरा
व्रतोनानेत सन्तुष्टा भवताद्विष्णुबल्लभा
अर्थात- क्षीरसागर से प्रकट हुई लक्ष्मी, चंद्रमा की सहोदर, विष्णु वल्लभा मेरे द्वारा किए गए इस व्रत से संतुष्ट हों।
- देवी लक्ष्मी के बाद हाथी की भी पूजा करें। अंत में भोग लगाकर देवी लक्ष्मी की आरती करें। इस प्रकार यह व्रत पूरा होता है। पूजा संपन्न होने पर पहले प्रसाद ग्रहण करें, बाद में भोजन कर सकते हैं।

महालक्ष्मी व्रत की कथा (Mahalakshmi Vrat Ki Katha)
महाभारत काल में महर्षि वेदव्यास ने रानी गांधारी और कुंती को महालक्ष्मी व्रत करने को कहा था। तय समय आने पर गांधारी के 100 पुत्रों ने मिट्टी से विशाल हाथी का निर्माण किया। पूजा के लिए गांधारी ने पूरे नगर की महिलाओं को आमंत्रित किया, लेकिन कुंती को बुलावा नहीं भेजा। जब ये बात अर्जुन को पता चली तो वे सीधे स्वर्ग गए और वहां से ऐरावत हाथी अपने साथ ले आए। जब ये बात अन्य महिलाओं को पता चली तो वे गांधारी के बजाए कुंती के महल में आकर पूजा करने लगीं। इस तरह हाथी पूजन की परंपरा शुरू हुई।


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