सार

Devshayani Ekadashi 2023: इस बार देवशयनी एकादशी 29 जून, गुरुवार को है। इस दिन पंढरपुर के श्रीकृष्ण मंदिर में भव्य यात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा को ‘वारी देना’ कहते हैं। इस मंदिर का इतिहास भी काफी पुराना और रोचक है।

 

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, आषाढ़ मास की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi 2023) कहते हैं। इस बार ये एकादशी 29 जून, गुरुवार को है। इस दिन कई मंदिरों में विशेष आयोजन किए जाते हैं। इस दिन महाराष्ट्र के पंढरपुर में स्थित विठोबा मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की भव्य यात्रा निकाली जाती है, जिसे वारी देना कहते हैं। इस मौके पर लाखों भक्त भगवान श्रीकृष्ण के विठ्ठल स्वरूप और देवी रुक्मणि की महापूजा देखने के लिए आते हैं। ये यात्रा पिछले 800 सालों से निकाली जाती है। (Wari Dena Yatra) इस यात्रा का स्वरूप भी बेहद खास है। आगे जानिए इस मंदिर से जुड़ी खास बातें…

वारकरी संप्रदाय निकालता है ये यात्रा
देवशयनी एकादशी पर विठोबा मंदिर (Vithoba Temple Pandharpur) से निकाली जाने वाली ये प्रसिद्ध यात्रा वारकरी संप्रदाय द्वारा निकाली जाती है। प्रचलित कथा के अनुसार 6ठी सदी में एक संत हुए थे जिनका नाम पुंडलिक था। इन्हें ही वारकरी संप्रदाय का संस्थापक माना जाता है। ये अपने माता-पिता के अनन्य भक्त थे। इनसे जुड़ी एक कथा भी काफी प्रचलित है।

भगवान स्वयं आए थे भक्त से मिलने
संत पुंडलिक भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। एक दिन उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण देवी रुकमणी के साथ आए और संत पुंडलिक से कहा “हम तुम्हारा आतिथ्य ग्रहण करने आए हैं।”
उस समय महात्मा पुंडलिक अपने पिता के पैर दबा रहे थे। उन्होंने कहा ‘इस समय मेरे पिताजी शयन कर रहे हैं, इसलिए आप इस कुछ देर प्रतीक्षा कीजिए।‘ भगवान ने ऐसा ही किया और कमर पर दोनों हाथ रखकर खड़े हो गए।
भगवान श्रीकृष्ण का यही स्वरूप विट्ठल कहलाया। कालांतर में यही स्थान पंढरपुर कहलाया। यहां भक्तराज पुंडलिक का स्मारक भी बना हुआ है। देवशयनी और देवप्रबोधिनी एकादशी पर यहां हर साल मेला लगता है।

मंदिर से जुड़ी खास बातें…
1. विठोबा मंदिर के किनारे ही भीमा नदी बहती है। माना जाता है कि इस नदी में स्नान करने से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं। मंदिर में प्रवेश करते समय द्वार के समीप भक्त चोखामेला की समाधि है।
2. प्रथम सीढ़ी पर ही नामदेवजी की समाधि है। द्वार के एक ओर अखा भक्ति की मूर्ति है। निज मंदिर के घेरे में ही रुक्मणिजी, बलरामजी, सत्यभामा, जांबवती तथा श्रीराधा के मंदिर हैं।
3. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि विजयनगर के राजा कृष्णदेव किसी समय विठोबा की मूर्ति को अपने राज्य में ले गए थे, लेकिन एक भक्त इसे वापस इसे ले आया और इसे पुन: यहां स्थापित कर दिया।


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