सार
Janmashtami 2023 Date:जन्माष्टमी हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस बार ये पर्व 6 व 7 सितंबर को मनाया जाएगा। मान्यता है कि इसी तिथि पर भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार लिया था। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा करने का विधान है।
उज्जैन. इस बार जन्माष्टमी का पर्व 6 व 7 सितंबर को यानी 2 दिन मनाया जाएगा। मान्यता है कि द्वापर युग में इसी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। (Janmashtami 2023) जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप जिसे लड्डू गोपाल भी कहते हैं, की पूजा करने का विधान है। भगवान श्रीकृष्ण की हर प्रतिमा में एक बात खास होती है, कि उनके वक्ष स्थल यानी छाती पर पैर का निशान होता है। (Kab hai Janmashtami) ये चिह्न क्यों बनाया जाता है, इसके पीछे एक कथा है, जो इस प्रकार है…
त्रिदेवों में से कौन बड़ा?
एक बार सभी ऋषि एक स्थान पर बैठकर चर्चा कर रहे थे। इसी दौरान त्रिदेवों ने भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी की बात निकल पड़ी। ऋषियों में ये बहस होने लगी कि इन तीनों में से कौन श्रेष्ठ है। काफी बहस के बाद भी इस बात का कोई निष्कर्ष नहीं निकला तो ब्रह्माजी के मानस पुत्र महर्षि भृगु को इस कार्य के लिए नियुक्त किया गया।
सबसे पहले ब्रह्मा की ली परीक्षा
जब महर्षि भृगु को त्रिदेवों की परीक्षा का भार सौंप गया तो वे सबसे पहले अपने पिता ब्रह्माजी के पास गए। वहां जाकर महर्षि भृगु ने न तो ब्रह्माजी को प्रणाम किया और न ही उनकी स्तुति की। महर्षि भृगु के इस प्रकार के व्यवहार को देखकर ब्रह्माजी क्रोधित हो गए, लेकिन फिर भी वे चुप ही रहे। ब्रह्माजी की इस स्थिति को महर्षि भृगु समझ गए और वहां से चले गए।
फिर पहुंचें शिवजी के पास
इसके बाद महर्षि भृगु कैलाश गए। वहां उन्हें देखकर महादेव काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने महर्षि को गले लगाना चाहा। लेकिन परीक्षा लेने के उद्देश्य से भृगु मुनि ने उनका आलिंगन अस्वीकार कर दिया और कहा कि ‘आप हमेशा धर्म का उल्लंघन करते हैं। पापियों को वरदान देते हैं, जिससे देवताओं पर संकट आ जाता है। इसलिए मैं आपका आलिंगन नहीं करूँगा।’ महर्षि भृगु की बात सुनकर महादेव को क्रोध आ गया, लेकिन देवी पार्वती ने जैसे-तैसे शांत कर दिया।
जब महर्षि भृगु ने किया विष्णुजी का अपमान
सबसे अंत में महर्षि भृगु वैकुण्ठ लोक गए। वहां भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी की गोद में सिर रखकर आराम कर रहे थे। महर्षि भृगु ने जाते ही उनकी छाती पर लात मारी। ये देख विष्णुजी की नींद खुल गई और वे बोले ‘हे महर्षि, आपके पैर पर चोट तो नहीं लगी? आपके चरणों का स्पर्श पाकर आज मैं धन्य हो गया।’
महर्षि भृगु ने लिया ये निर्णय
भगवान विष्णु ने जब इस तरह महर्षि भृगु से बात की तो उनकी आँखों से आँसू बहने लगे और अपने किए पर क्षमा भी मांगी। इसके बाद महर्षि भृगु ने ये सारी बातें ऋषि-मुनियों को आकर बताई। उनकी बातें सुनकर सभी ऋषि-मुनि बड़े हैरान हुए और उन्होंने भगवान विष्णु को ही त्रिदेवों में श्रेष्ठ माना।
इसलिए श्रीकृष्ण के सीने पर बनाते हैं ये निशान
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब महर्षि भृगु ने भगवान विष्णु के सीने पर लात मारी तो उसका निशान छप गया। चूंकि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। इसलिए उनके सीने पर जो पैर का निशान बनाया जाता है, वो महर्षि भृगु का ही होता है।
Janmashtami 2023: जन्माष्टमी पर राशि अनुसार लगाएं भोग कन्हैया को भोग
Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।