Janmashtami 2025: हमारे देश में भगवान श्रीकृष्ण के कईं अनोखे मंदिर हैं। ऐसा ही एक मंदिर वृंदावन में भी है। यहां भगवान श्रीकृष्ण की जो प्रतिमा है वो प्रकट हुई है यानी मानव निर्मित नहीं है। यहां की रसोई में आज तक माचिस का उपयोग नहीं हुआ।

Radha Raman Temple Vrindavan Unique Fact: इस बार जन्माष्टमी 16 अगस्त, शनिवार को मनाई जाएगी। इस पर्व की सबसे ज्यादा धूम वृंदावन और मथुरा में देखने को मिलती हैं। यहां भगवान श्रीकृष्ण के अनेक प्राचीन और चमत्कारी मंदिर हैं। राधारमण मंदिर भी इनमें एक है। ये वृंदावन के प्रमुख मंदिरों में से एक है। इस मंदिर से जुड़ी कईं रोचक परंपराएं और मान्यताएं हैं और इसे और भी खास बनाती हैं। जन्माष्टमी के मौके पर यहां खास उत्सव मनाया जाता है। दूर-दूर से भक्त यहां दर्शन करने आते हैं। जानें इस मंदिर से जुड़ी अनोख मान्यता और परंपराएं…

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इस मंदिर में नहीं होता माचिस का उपयोग

वृंदावन का राधा रमण मंदिर ठाकुरजी के 7 प्रमुख मंदिरों में से एक है। प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मंदिर की स्थापना 1542 में गोपाल भट्ट गोस्वामी ने की थी। जब से उन्होंने एक नियम बनाया कि भगवान के लिए जो भी भोग बनेगा, उसका निर्माण मंदिर की रसोई में ही होगा। रसोई का चूल्हा और दीपक आदि जलाने के लिए माचिस का उपयोग नहीं किया बल्कि शास्त्रीय विधि द्वारा उत्पन्न अग्नि से ही इस मंदिर में सभी काम होंगे। तभी ये परंपरा चली आ रही है।


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रात 12 नहीं दोपहर 12 बजे मनाते हैं जन्माष्टमी

इतिहासकारों के अनुसार, देश में जब मुगल शासन था तब वृंदावन के मंदिरों में स्थापित अनेक कृष्ण प्रतिमाओं को बचाकर अन्य स्थानों पर ले जाया गया। एक मात्र राधा रमण जी की प्रतिमा ही वृंदावन से कहीं बाहर नहीं गई। इन्हें भक्तों ने वृंदावन में ही छुपाकर रखा। खास बात ये है जन्माष्टमी पर जहां सभी कृष्ण मंदिरों में रात में 12 बजे उत्सव मनाया जाता है, वहीं राधा रमण मंदिर में दोपहर 12 बजे जन्मोत्सव मनाते हैं। कहते हैं कि ठाकुरजी सुकोमल होते हैं उन्हें रात्रि में जगाना ठीक नहीं।

अपने आप प्रकट हुई है ये चमत्कारी प्रतिमा

कहा जाता है कि किसी समय वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त गोपाल भट्ट गोस्वामी रहा करते थे। एक बार जब ने नेपाल गए तो उन्हें गंडकी नदी में एक शालिग्राम मिला। वे उसे वृंदावन ले आए और केशीघाट के पास स्थापित कर पूजा-पाठ करने लगे। एक दिन किसी ने मजाक में बोल दिया कि चंदन लगाए शालिग्रामजी तो ऐसे लगते हैं मानो कढ़ी में बैगन पड़े हों। यह सुनकर गोपाल भट्ट बहुत दुखी हुए। अगली सुबह होते ही शालिग्राम से राधारमण की दिव्य प्रतिमा प्रकट हो गई। उस दिन वि.सं. 1599 (सन् 1542) की वैशाख पूर्णिमा थी।


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