Janmashtami 2025 Date: भगवान श्रीकृष्ण को 64 कलाओं का ज्ञान था, ये बात तो सभी जानते हैं। लेकिन वे 64 कलाएं कौन-सी थीं और उन्हें ये किसने सिखाई, इसके बारे में कम ही लोगों को पता है। ये 64 कलाएं यानी विद्या बहुत ही खास हैं।

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कहां है सांदीपनि आश्रम?
भगवान श्रीकृष्ण ने जहां शिक्षा प्राप्त की, आज भी वो आश्रम उज्जैन के अंकपात मार्ग पर स्थित है। रोज यहां हजारों लोग पूजा व दर्शन करने आते हैं।

Names of 64 arts of Lord Krishna: इस बार जन्माष्टमी पर्व 16 अगस्त, शनिवार को है। ये उत्सव भगवान श्रीकृष्ण के संबंधित स्थानों जैसे गोकुल, वृंदावन, मथुरा आदि में विशेष रूप से मनाया जाता है। ऐसा ही एक स्थान है उज्जैन का सांदीपनि आश्रम। श्रीमद् भागवत के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण पढ़ाई के लिए उज्जैन में स्थित गुरु सांदीपनि के आश्रम में आए थे। कहते हैं कि 64 दिनों में ही भगवान श्रीकृष्ण ने वेद, संहिताओं, उपनिषदों का अध्ययन किया और सभी 64 कलाएं भी सीख लीं। ये 64 कलाएं कौन-सी हैं, इसके बारे में कोई नहीं जानता। आगे क्रम से जानें इन 64 कलाओं के बारे में…

ये हैं श्रीकृष्ण की 64 कलाएं

1. गीत कला - गीत लेखन, गायन आदि की कला

2. वाद्य कला - हर तरह के वाद्यों को बजाने की कला

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3. नृत्य कला - विभिन्न नृत्यशैलियों का ज्ञान

4. आलेख्य कला - विभिन्न लेखन शैलियों का ज्ञान

5. विशेषकच्छेद्य कला - कागज, पत्ती आदि काटकर आकार या सांचे बनाना

6. तण्डुल-कुसुमबलिविकार कला - देव-पूजनादि के अवसर पर तरह-तरह के रंगे हुए चावल, जौ आदि वस्तुओ तथा रंगबिरंगे फूलों को विविध प्रकार से सजाना

7. पुष्पास्तरण कला - फूलों के रंग, खुश्बू, रस आदि का ज्ञान

8. मणिभूमिका कर्म कला - घर के फर्श के कुछ भागों को मोती, मणि आदि रत्नों से जड़ना

9. शयनरचन कला - पलंग लगाना, बिस्तर सजाना आदि

10. उदकवाद्य कला - जलतरंग बजाना

11. उदकाघात कला - दूसरों पर हाथों या पिचकारी से जल की चोट मारना

12. चित्राश्च योगा कला - जड़ी-बूटियों और मंत्रों से शत्रुओं को कमजोर करना

13. माल्यग्रंथनविकल्प कला - माला गूंथना

14. शेखरकापीड़योजन कला - केशसज्जा

15. नेपथ्यप्रयोग कला - शरीर को वस्त्र, आभूषण, पुष्प आदि से सुसज्जित करना

16. कर्णपत्रभंग कला - शंख, हाथीदांत आदि के अनेक तरह के कान के आभूषण बनाना

17. गन्धयुक्ति कला - सुगन्धित धूप, इत्र आदि बनाना

18. भूषणयोजन कला - आभूषणों को व्यवस्थित करने, पहनने की कला

19. इन्द्रजाल कला - जादू के खेल, जादूगरी

20. कौचुमारयोग कला - बल-वीर्य बढ़ाने वाली औषधियाँ बनाना

21. हस्तलाघव कला - हाथों की काम करने में फुर्ती और सफ़ाई

22. विचित्रशाकयूषभक्ष्यविकार-क्रिया कला - तरह-तरह की सब्जियों, शाक, कढ़ी, रस, मिठाई आदि बनाने की कला

23. पानकरस-रागासव-योजन कला - विविध प्रकार के शरबत, रस आदि बनाना

24. सूचीवान कर्म कला - सुई का काम, जैसे सीना, रफू करना, कसीदा काढ़ना, बुनना

25. सूत्रक्रीड़ा कला - धागों या रस्सियों से खेले जाने वाले खेल, जैसे कठपुतलियों को नचाना

26. वीणाडमरूकवाद्य कला - वीणा, डमरू आदि वाद्यों को बजाना

27. प्रहेलिका कला - पहेलियां बनाना और पहेलियों को सुलझाना

28. प्रतिमाला कला - श्लोक आदि कविता पढ़ने की मनोरंजक रीति

29. दुर्वाचकयोग कला - ऐसे श्लोक आदि पढ़ना, जिनका अर्थ समझना और बोलना कठिन हों

30. पुस्तक-वाचन कला - पुस्तक को गति और लय से पढ़ना

31. नाटकाख्यायिका-दर्शन कला - नाटकों के जरिए दर्शन की बात कहना

32. काव्य समस्यापूरण कला - काव्य रचना के जरिए समस्याओं के निदान सुझाना

33. पट्टिकावेत्रवानविकल्प कला - पीढ़ा, आसन, कुर्सी, पलंग आदि बनाना

34. तक्षकर्म कला - लकड़ी, धातु आदि को विभिन्न आकारों में काटना

35. तक्षण कला - बढ़ई का काम, लकड़ी के औजार, साधन आदि बनाना

36. वास्तुविद्या कला - भवन निर्माण, स्थल चयन आदि के वास्तु का संपूर्ण ज्ञान

37. रूप्यरत्नपरीक्षा कला - सिक्के, रत्न आदि की पहचान करना

38. धातुवाद कला - पीतल, लौहा, सोना, चांदी आदि धातुओं को मिलाना, शुद्ध करना आदि

39. मणिरागाकर ज्ञान कला - मणि आदि का रँगना, खान आदि के विषय का ज्ञान

40. वृक्षायुर्वेदयोग कला - विभिन्न वृक्षों के औषधिय गुणों को जानना, उनसे चिकित्सा करना

41. मेषकुक्कुटलावकयुद्धविधि कला - मेंढे, मुर्गे, तीतर आदि पशुओं को लड़ाना

42. शुकसारिका प्रलापन कला - तोता-मैना आदि पक्षियों को बोली सिखाना

43. उत्सादन-संवाहन केशमर्दनकौशल कला - हाथ-पैरों से शरीर दबाना, केशों का मलना, उनका मैल दूर करना आदि, मालिश करना

44. अक्षरमुष्टिका कथन - गुप्त भाषा में बात करना

45. म्लेच्छित विकल्प कला - गुप्त भाषा में लिखना

46. देशभाषा-विज्ञान कला - किसी भी देश में वहां की भाषा को तत्काल सीख लेना

47. पुष्पशकटिका कला - टीका लगाने के लिए पेड़-पौधों की पत्तियों से सांचें बनाना

48. निमित्तज्ञान कला - शकुन-अपशकुन जानना

49. यन्त्र मातृका कला - हर तरह के मशीन, कल, पुर्जे आदि बनाना

50. धारणमातृका कला - सुनी हुई बातों का स्मरण रखना

51. संपाठ्य कला - पढ़ते ही याद कर लेने की कला

52. मानसी काव्य-क्रिया कला - किसी श्लोक में छोड़े हुए पद को मन से पूरा करना

53. अभिधानकोष कला - हर तरह के कोषों के प्रबंधन की कला

54. छन्दोज्ञान कला- व्याकरण संबंधी ज्ञान

55. क्रियाकल्प कला- काव्यालंकारों का ज्ञान

56. छलितक योग कला- रूप और बोली छिपाना, वेष बदलना

57. वस्त्रगोपन कला- शरीर के अंगों को छोटे या बड़े वस्त्रों से यथायोग्य ढँकना

58. द्यूतविशेष कला- जुआ खेलने की कला

59. आकर्ष-क्रीड़ा कला - पासों से खेलना

60. बालक्रीड़नक कला - बच्चों के खेलों का ज्ञान

61. वैनयिकी ज्ञान कला- अपने और पराये से विनयपूर्वक शिष्टाचार करना

62. वैजयिकी-ज्ञान कला- विजय प्राप्त करने की विद्या अर्थात् शस्त्रविद्या

63. व्यायामविद्या कला - हर तरह के शारीरिक और मानसिक व्यायाम का ज्ञान

64. दशनवसनांगराग कला - रंगने की कला, दांत, वस्त्र तथा शरीर के अंगों को रंगना


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इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।