सार
Hajj Yatra 2024: हर साल इस्लामिक कैलेंडर के अंतिम महीने धुल हिज्ज में हज यात्रा की जाती है। इस यात्रा में दुनिया भर के मुसलमान सऊदी अरब के पवित्र शहर मक्का जाते हैं और काबा में खुदा की इबादत करते हैं।
Hajj Yatra 2024 Kab Se Shuru Hogi: इस्लाम में हज यात्रा 5 सबसे जरूरी फर्जों में से एक बताई गई है यानी सभी मुस्लिमों को जीवन में एक बार हज यात्रा जरूर करनी चाहिए। हज यात्रा हर साल इस्मालिक कैलेंडर के अंतिम महीने धुल हिज्ज के आठवें दिन के शुरू होती है। इस बार हज यात्रा की शुरूआत 14 जून से हो रही है। हज यात्रा के दौरान अनेक नियमों का पालन करना होता है, शैतान को पत्थर मारना भी इन नियमों में से एक है। जानें कौन हैं वो शैतान जिसे हज यात्रा के दौरान पत्थर मारा जाता है…
अल्लाह ने दिया कुर्बानी का हुक्म
इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, हजरत इब्राहिम अल्लाह के पैगंबर थे। एक दिन सपने में अल्लाह ने उन्हें कहा कि तुम अपनी सबसे प्यारी चीज कुर्बान कर दो। तब पैगंबर हजरत इब्राहिम ने अपने इकलौते बेटे इस्माइल को कुर्बान करने का फैसला लिया। ये बात जब इस्माइल को पता चली तो वह भी खुशी-खुशी कुर्बान होने के लिए तैयार हो गया।
रास्ते में मिला शैतान
जब हजरत इब्राहिम अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने जा रहे थे तो रास्ते में उन्हें शैतान (अल्लाह का शत्रु जिसे इब्लीस कहते हैं) मिला। उसने पैगंबर को ऐसा न करने के लिए कहा और तरह-तरह से हजरत पैगंबर को कुर्बानी देने से रोका। लेकिन हजरत पैगंबर अपने फैसले पर डटे रहे और उन्होंने पत्थर मारकर शैतान को वहां से भगा दिया।
अल्लाह ने बचाया इस्माइल को
जब हजरत इब्राहिम अपने बेटे की कुर्बानी देने लगे तो उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली, ताकि बेटे को देखकर उन्हें दुख न हो। कुर्बानी देकर जब उन्होंने अपनी आंखों से पट्टी हटाई तो देखा कि बेटा त इस्माईल सही सलामत है और उसकी जगह एक दुम्बा (भेड़) मरा पड़ा था।
इसलिये शैतान को पत्थर मारने की परंपरा
जब हजरत इब्राहिम अपने बेटे की कुर्बानी देने जा रहे थे तब रास्ते में 3 बार शैतान ने उनका रास्ता रोका था और तीनों पर बार पैगंबर ने शैतान को पत्थर मारकर भगा दिया था। मान्यता है कि जिन 3 जगहों पर हजरत इब्राहीम ने शैतान को पत्थर मारे, वहीं पर तीन स्तंभ आज भी हैं। इन्हीं तीन स्तंभों को आज भी शैतान मानकर उस पर पत्थर मारे जाते हैं। ये हज यात्रा की जरूरी परंपराओं में से एक है, जिसे सुन्नत-ए-इब्राहीमी भी कहा जाता है।
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