सार

Maha Kumbh 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में इन दिनों महाकुंभ 2025 चल रहा है। इस महाकुंभ में लाखों साधु-संत आए हुए हैं। इन सभी साधु अलग-अलग अखाड़ों और परंपराओं से जुड़े हैं। सभी के नियम भी अलग हैं।

 

Kaise Hota Hai Sadhu Santo Ka Antim Sanskar: प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुंभ 2025 शुरू हो चुका है, जो 26 फरवरी तक रहेगा। इस महाकुंभ में अलग-अलग अखाड़ों और परंपराओं के लाखों साधु-संत एक जगह इकट्ठा हुए हैं। साधु-संतों का जीवन आम लोगों के काफी कठिन और भिन्न होता है। इनकी परंपराएं भी काफी अलग होती हैं। हिंदू धर्म में जहां आम लोगों की मृत्यु होने पर अग्नि संस्कार किया जाता है, वहीं साधु समाज में अंतिम संस्कार की 4 विधियां हैं। जानें इन 4 तरीकों के बारे में…

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सबसे सामान्य विधि है अग्नि संस्कार

सनातन धर्म के 13 अखाड़ें माने गए हैं। इन सभी में अंतिम संस्कार की अलग-अलग तरीके हैं। इनमें से सबसे सामान्य है अग्नि संस्कार। दाह संस्कार की ये विधि अखाड़ों में चले आ रहे नियमों के अनुरूप होती है यानी जो नियम जिस अखाड़े के तय है, उसी के अनुसार, उस साधु का अंतिम संस्कार होता है। अंतिम संस्कार की 4 विधियों में अग्नि संस्कार सबसे ज्यादा प्रचलित है।

भू-समाधि की भी परंपरा

कुछ अखाड़ों के साधु-संतों को मृत्यु के बाद भू-समाधि भी दी जाती है यानी उन्हें बैठे हुई अवस्था में जमीन में दफनाया जाता है। भू समाधि से पहले संत के शव को अंतिम स्नान करवाया जाता है और उसका पूर्ण श्रृंगार किया जाता है। इसके बाद उसका डोला यानी शव यात्रा निकाली जाती है। और भी कईं परंपराओं का पालन इस दौरान किया जाता है।

सबसे दर्दनाक होता है अघोरियों का अंतिम संस्कार

अघोरी आम साधु-संतों के अलग होती है और ये 13 अखाड़ों में भी नहीं आते। जब कोई अघोरी मरता है तो उसके शव को कईं दिनों तक ऐसे ही रखा जाता है, जब तक उसमें कीड़े न पड़ जाएं। 40 दिन के बाद उसके शव को नदी में बहा दिया जाता है। अघोरी मानते हैं कि ऐसा करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी।

जल में भी प्रवाहित कर सकते हैं शव

यदि कोई साधु-संत चाहता है तो उसके शव को नदी में भी प्रवाहित किया जा सकता है। इसे जल दाह या जल दाग कहते हैं। इस परंपरा के पीछे मान्यता है कि मरने के बाद ये शरीर जब किसी काम का नहीं तो जल में रहने वाले जंतु इसे खाकर अपना पेट भर सकते हैं। हालांकि ये परंपरा धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है।


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