Unique Temple: बिहार के कैमूर जिले में देवी का एक प्राचीन मंदिर हैं, जिसे मुंडेश्वरी माता मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां सात्विक बलि देने की परंपरा है। और भी कईं बातें इस मंदिर को रहस्यमयी और चमत्कारी बनाती हैं।

Shardiya Navratri 2025: शारदीय नवरात्रि का पर्व 22 सितंबर से शुरू हो चुका है। इस पर्व से दौरान देवी के प्रमुख मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। हमारे देश में देवी के अनेक रहस्यमयी मंदिर हैं, इन्हीं में से एक है बिहार के कैमूर जिले में स्थित मुंडेश्वरी माता मंदिर। यह मंदिर कैमूर जिले के भगवानपुर अंचल में पवरा पहाड़ी पर 608 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इसे देश के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है, पुरातत्व विभाग भी इसकी पुष्टि करता है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है यहां दी जाने वाली सात्विक बलि। सुनने में ये बात अजीब लगे लेकिन ये सच है। आगे जानिए कैसे देते हैं सात्विक बलि और इस मंदिर से जुड़ी खास बातें…

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कैसे देते हैं सात्विक बलि?

मुंडेश्वरी माता मंदिर, देश का एक मात्र ऐसा मंदिर हैं जहां सात्विक बलि देने की परंपरा है। यानी यहां बलि के रूप में बकरे का मस्तक नहीं काटा जाता। जब माता के मूर्ति के सामने जब बकरे को लाते हैं तो पुजारी चावल के दाने देवी प्रतिमा को स्पर्श कर बकरे पर फेंकते हैं, जिससे बकरा कुछ देर के लिए अचेत हो जाता है। थोड़ी देर के जब पुजारी पुन: बकरे पर चावल फेंकते हैं तो बकरा उठ खड़ा होता है। इसके बाद उस बकरे को मुक्त कर दिया जाता है। इस तरह बकरे का सात्विक बलि यहां दी जाती है।

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हजारों साल पुराना है ये मंदिर

पटना आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट के अनुसार, ये मंदिर लगभग 1900 साल पुराना है। मंदिर परिसर में विद्यमान शिलालेखों से इसकी ऐतिहासिकता का पता चलता है। मंदिर की प्राचीनता से जुड़ा एक शिलालेख कोलकाता के संग्रहालय में है। यह शिलालेख 349 ई. से 636 ई. के बीच का बताया जाता है। प्रसिद्ध इतिहासकार कनिंघम ने भी अपनी किताब में इस मंदिर के बारे में लिखा है। आज भी दूर-दूर से भक्त यहां दर्शन करने आते हैं। नवरात्रि के दौरान यहां की रौनक देखते ही बनती है।

यहां मिली 97 दुर्लभ प्रतिमाएं

1968 में जब पुरातत्व विभाग की टीम यहां सर्वे करने आई तो उन्हें यहां से 97 दुर्लभ मूर्तियां मिली, जिन्हें उन्होंने सुरक्षा की दृष्टि से पटना संग्रहालय में रखवा दिया। मुंडेश्वरी मंदिर अष्टकोणीय है। किसी अन्य मंदिर की ऐसी संरचना भारत में देखने को नहीं मिलती। यहां जो देवी मुंडेश्वरी के नाम से पूजा जाती है, वे वास्तव में वाराही देवी हैं। इनका वाहन महिष यानी बैल है। वर्ष में दो बार माघ और चैत्र में यहां विशाल यज्ञ किया जाता है।


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