सार
Tirupati Laddu controversy : तिरुपति मंदिर में बंटने वाले पवित्र लड्डू प्रसाद को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर में भक्तों को प्रसाद के रूप में वितरित किए जाने वाले लड्डू का 300 साल पुराना इतिहास है। विजयनगर साम्राज्य के दौरान लड्डू एक मानक प्रसाद बन गया जिसे श्री वारी लड्डू के नाम से जाना जाता है।
लड्डू चढ़ाने का पहला दस्तावेज सन् 1715 में मिला
तिरुमाला मंदिर में प्रसाद के रूप में श्री वारी लड्डू चढ़ाया जाता है। भगवान को श्री वारी लड्डू चढ़ाने के बाद इसे भक्तों में बांटा जाता है। यह परंपरा करीब 300 साल पुरानी है। लड्डू चढ़ाने वाली परंपरा से संबंधित पहला दस्तावेज 2 अगस्त 1715 की मिली है। हालांकि, इस परंपरा के सटीक शुरूआत को इससे पुरानी मानी जाती है। इस मंदिर में प्रसाद के रूप में लड्डू को मानक प्रसाद का दर्जा विजयनगर साम्राज्य के दौरान मिला। पल्लव राज, चोल साम्राज्य, पांड्या और विजयनगर साम्राज्य के दौरान लड्डू चढ़ाने की परंपरा का समृद्ध इतिहास बना। हालांकि, समय के साथ इस रेसिपी में तरह-तरह के बदलाव हुए। ब्रिटिश शासन के दौरान भी 1940 में महत्वपूर्ण संशोधन हुए।
लड्डू प्रसाद को जीआई टैग
तिरुपति लड्डू को साल 2009 में जीआई टैग मिला। जीआई टैग का मतलब यह कि केवल तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) ही इसका प्रोडक्शन या बिक्री कर सकता है।
श्री वारी लड्डू की धार्मिक मान्यता
तिरुपति माला मंदिर में चढ़ने वाले लड्डू को भगवान वेंकटेश्वर का पवित्र प्रसाद माना जाता है। भगवान वेंकटेश्वर को विष्णु का अवतार माना जाता है। मान्यता है कि भगवान वेंकटेश्वर स्वयं इस प्रसाद को बनाने में मदद करते हैं। वह इसे पवित्र करते हैं और खाने वाले भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। ऐसी मान्यता है कि तिरुपति लड्डू का सेवन करने वाला भगवान वेंकटेश्वर के साथ सीधे तौर पर जुड़ता है। भक्तों का मानना है कि इस दिव्य लड्डू को खाने से शारीरिक और मानसिक शक्ति आती है तो आध्यात्म भी बढ़ता है। इस प्रसाद को खाने से विभिन्न रोगों से छुटकारा मिलता है।
पोटू रसोई में बनता श्री वारी लड्डू
भगवान वेंकटेश्वर को चढ़ाया जाने वाला श्री वारी लड्डू को एक डेडीकेटेड रसोई में तैयार किया जाता है जिसे पोटू कहा जाता है। बेहद स्वच्छ माहौल में इस लड्डू को बनाया जाता है। इसमें बेसन, घी, काजू और चीनी आदि का इस्तेमाल होता है। लड्डू बनाने की यह प्रक्रिया भी एक अनुष्ठान के रूप में माना जाता है। लड्डू को भगवान वेंकटेश्वर को नैवेद्यम (भोजन प्रसाद) के हिस्से के रूप में चावल के व्यंजन और मिठाइयों जैसी अन्य वस्तुओं के साथ रोज चढ़ाया जाता है।
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