सार

Ram Navami 2023: इस बार राम नवमी का पर्व 30 मार्च को मनाया जाएगा। श्रीराम का जीवन चरित्र हम सभी के लिए एक उदाहरण है कि जीवन कैसे जीना चाहिए। इसी वजह से श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहते हैं।

 

उज्जैन. भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है मर्यादा का पालन करने वाला सबसे उत्तम पुरुष। वैसे तो भगवान विष्णु ने अनेक अवतार लिए, लेकिन इन सभी में सिर्फ श्रीराम अवतार को ही मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। (रामनवमी कब है 2023) भगवान श्रीराम का जीवन चरित्र हम सभी के लिए एक अनुपम उदाहरण है कि जीवन कैसे जीना चाहिए। भगवान श्रीराम के जीवन से काफी कुछ सीखा जा सकता है। राम नवमी (30 मार्च, गुरुवार) के मौके पर हम आपको भगवान श्रीराम के लाइफ मैनेजमेंट सूत्रों के बारे में बता रहे हैं, जो जीवन में आपके काम आ सकते हैं। आगे जानिए इन लाइफ मैनेजमेंट सूत्रों के बारे में…

1. स्त्रियों का सदैव सम्मान किया
श्रीराम ने अपने जीवन काल में सदैव स्त्रियों का सम्मान किया, फिर चाहे वो उनके शत्रु रावण की पत्नी मंदोदरी हो या मंथरा, जिसकी वजह से उन्हें 14 वर्ष वन में रहना पड़ा। श्रीराम ने हर स्त्री को अपनी माता और बहन के रूप में देखा। देवी सीता को भी पत्नी के रूप में सदैव सम्मान दिया। हमेशा एक पत्नी व्रत का पालन किया। देवी सीता के पाताल लोक जाने के बाद श्रीराम ने हर में सोने से निर्मित देवी सीता की प्रतिमा को ही अपने पास स्थान दिया।

2. सभी भाइयों को समान प्रेम दिया
भगवान श्रीराम के छोटे 3 भाई थे- लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। ये तीनों ही श्रीराम को समान रूप से प्रिय थे। लक्ष्मण भले ही सदैव उनके साथ रहे, लेकिन श्रीराम ने कभी भी भरत और शत्रुघ्न को अपने ह्रदय से दूर नहीं किया और उन्हें उसी तरह प्रेम दिया, जैसा लक्ष्मण को प्राप्त था। उन्होंने अपने तीनों भाइयों को समय-समय पर उचित मार्गदर्शन दिया। यही बात श्रीराम को और भी श्रेष्ठ बनाती है।

3. हमेशा माता-पिता की बात मानी
श्रीराम ने हमेशा अपने माता-पिता की बात मानी। जब श्रीराम का राजतिलक होने वाला था, उसके एक दिन पहले पिता ने उन्हें वनवास जाने को कहा। श्रीराम ने बिना कोई प्रश्न किए पिता की आज्ञा का पालन किया। यहां तक कि पिता की मृत्यु के बाद भी उनकी उनका वचन निभाने के लिए 14 साल तक वन में गुजारे। उनके लिए माता कौशल्या, कैकई और सुमित्रा भी एक समान ही थी।

4. ऊंच-नीच का भेद मिटाया
भगवान श्रीराम ने भले ही क्षत्रिय थे, लेकिन उन्होंने कई कभी भी जाति भेद को बढ़ावा नहीं दिया। निषाद राज को भी उन्होंने अपना मित्र बनाकर उसका मान बढ़ाया। जब सीता की खोज करते समय वे माता शबरी से मिले तो उनके झूठे बेर भी बड़े ही प्रेम से खाए। ऐसा करके उन्होंने समाज में संदेश दिया कि सच्ची श्रृद्धा से कोई भी ईश्वर का प्रिय बन सकता है।

5. संकट में फंसे लोगों की सहायता की
भगवान श्रीराम ने सदैव संकट में फंसे लोगों की सहायता की, चाहे वो सुग्रीव हो या विभीषण। इन दोनों को भाइयों के आतंक से मुक्ति दिलाई और इन्हें इनका अधिकार भी दिलाया। इनके अलावा और भी जो श्रीराम की शरण में आया, उसे कभी निराश नहीं किया और हरसंभव मदद की।


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