सार
कल यानी 18 सितंबर से साल का पितृ पक्ष शुरु हो गया है। पितृ पक्ष हमारे पितरों को समर्पित होता है। हिंदू धर्म में यह पक्ष अन्य त्योहारों और पर्वों की तरह खास होता है। लोग इस पितृ पक्ष में अपने पितरों को जल देते हैं, घर पर पितरों के नाम पर आग में आहुति देते हैं और अपने आंगन में पितरों के लिए चौक बनाकर फूल डालते हैं, ताकि उसमें पितर देव आकर बैठें। पितृ पक्ष में लोग श्राद्ध कार्य कर, ब्राम्हणों का भोज करवाकर उन्हें दान देते हैं। आज के इस लेख में हम आपको कुशा रखने के सही स्थान के बारे में बताएं। पंडित प्रदीप मिश्रा जी जो कि भारत के जाने-माने कथा वाचक हैं, उन्होंने हाल ही में पितृ पक्ष के दौरान कुशा को लेकर एक अचूक उपाय बताया है। पंडित जी ने कुशा का महत्व बताते हुए उसे रखने के तीन सही स्थान के बारे में बताया है, जिससे पितरों की कृपा प्राप्त हो सके। चलिए आज के इस लेख में हम कुशा रखने के सही स्थान के बारे में जान लेते हैं।
क्या है कुशा?
कुशा एक प्रकार की पवित्र घास है, जिसे हिंदू धर्म में धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यों में विशेष महत्व दिया जाता है। इसे विशेष रूप से पूजा, यज्ञ और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग किया जाता है। इसे धार्मिक स्थानों पर बिछाकर पूजा और पाठ की जाती है। इसके अलावा, कुशा का उपयोग ध्यान, साधना और अन्य आध्यात्मिक कार्यों में भी किया जाता है। कुशा को विष्णु जी का प्रतीक भी माना जाता है और यह पवित्रता और शांति का प्रतीक है।
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पूजा- अनुष्ठान में कुशा का महत्व
- यज्ञ या हवन के दौरान इसे भूमि पर बैठने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
- इसे अनुष्ठानों में पवित्रता बनाए रखने के लिए उपयोग किया जाता है।
- अनुष्ठानों में कुशा की अंगूठी भी पहनने का रिवाज है, जिसे कर्मकांडों के दौरान पहनना शुभ माना जाता है।
पितृ पक्ष में कुशा का महत्व
- कुशा को शुद्ध और पवित्र माना जाता है, इसलिए इसे धार्मिक अनुष्ठानों और श्राद्ध कर्मों में प्रयोग किया जाता है ताकि उन कर्मों में पवित्रता बनी रहे।
- श्राद्ध के समय कुशा का उपयोग पिंडदान और तर्पण में किया जाता है। मान्यता है कि इससे पितृगण प्रसन्न होते हैं और श्राद्ध करने वाले को आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- अनेक पुराणों और धर्मग्रंथों में कुशा का महत्व बताया गया है। इसके माध्यम से किए गए अनुष्ठान अधिक प्रभावी और फलदायक माने जाते हैं।
- धार्मिक रूप से, कुशा को घर में रखने से बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जा से बचाव होता है और यह घर में शांति और समृद्धि लाता है।
- कुशा को विशेष विधि से काटा और उपयोग किया जाता है और यह सुनिश्चित किया जाता है कि इसका प्रयोग शुद्धता के साथ हो। पितृ पक्ष में कुशा का उपयोग पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए विशेष रूप से किया जाता है।
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कैसे करें कुशा का इस्तेमाल
आसन के रूप में
कुशा से बना आसन धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान बैठने के लिए प्रयोग किया जाता है।
पवित्र धागा
यज्ञ या हवन के दौरान, पुरुष विशेष प्रकार से गूंथी गई कुश का एक धागा को अपनी उंगली में पहनते हैं।
जल शुद्धि के लिए
कुशा को जल में डुबोकर उस जल को शुद्ध किया जाता है। इसे "अभिषेक" के दौरान या पूजा से पहले भगवान की मूर्तियों को स्नान कराने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
पिंडदान में
कुशा का प्रयोग श्राद्ध कर्मों में पिंड दान करते समय किया जाता है, क्योंकि इसे पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
रक्षा कवच
कुछ धार्मिक अनुष्ठानों में कुशा का इस्तेमाल आत्मिक और शारीरिक सुरक्षा के लिए किया जाता है। इसे दरवाजे या घर के चारों ओर रखने से नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा मानी जाती है।
यज्ञ सामग्री
कुशा को हवन या यज्ञ के दौरान हवन कुंड में आहुति के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।
कहां रखें कुशा?
- अपने घर के मुख्य द्वार जहां से हम घर के अंदर प्रवेश करते हैं, वहां कोई चित्र, मूर्ति रखी हो वहां कुशा को रखना चाहिए। कुशा को कुछ दूरी पर अपने बाएं भाग (Right Side) पर रखें।
- पूजा स्थान के पास कुशा रखें, यदि आप कुशा नहीं रख सकते तो आप कुशा का आसन बनाकर उसे बिछाकर उसमें पूजा पाठ करें। कुशा के आसन पर बैठकर पूजा पाठ करने से शुद्धता और पवित्रता बनी रहती है।
- रसोई घर में जहां आप पानी रखते हैं, वहां हांडी, मटकी या किसी भी पानी वाले बर्तन के पास एक छोटी सी भी कुशा रखने से पितरों की कृपा हमेशा बनी रहती है। इससे घर में कभी बड़ी बीमारी प्रवेश नहीं करती है।