कसबा चुनाव 2025 में लोजपा(रा) के नितेश कुमार सिंह ने कांग्रेस के एमडी. इरफान आलम को 12220+ वोटों से हराया। यह सीट 2010 से लगातार कांग्रेस के पास थी, जहां से अफाक आलम 3 बार जीते थे।

Kasba Assembly Election 2025: कसबा विधानसभा चुनाव 2025 में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नितेश कुमार सिंह जीत गए हैं। उन्हें 86059 से ज्यादा वोट मिले। उन्होंने 12220 से ज्यादा वोटों से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एमडी. इरफान आलम को हराया। कसबा विधानसभा सीट (Kasba Vidhan Sabha Seat) पूर्णिया जिले की राजनीति में हमेशा खास मानी जाती है। यहां का चुनाव हर बार दिलचस्प मोड़ लेता है क्योंकि यहां कांग्रेस और बीजेपी/लोजपा के बीच कांटे की टक्कर होती रही है। पिछले तीन विधानसभा चुनाव (2010, 2015 और 2020) में कांग्रेस के मोहम्मद अफाक आलम (Md. Afaque Alam) लगातार जीत दर्ज कर चुके हैं।

प्रदीप कुमार दास को 17,278 वोटों के बड़े अंतर से हराया था

2020 में कांग्रेस के अफाक आलम ने लोजपा प्रत्याशी प्रदीप कुमार दास को 17,278 वोटों के बड़े अंतर से हराया था। अफाक आलम को 77,410 वोट मिले जबकि प्रदीप को 60,132 वोट मिले। इस चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला भी दिखा, लेकिन जीत महागठबंधन के खाते में गई।

नोट: अफाक आलम पोस्ट ग्रेजुएट हैं और उन पर एक आपराधिक केस रजिस्टर्ड हैं। उनकी कुल संपत्ति करीब 90 लाख रुपए है और उन पर 35 हजाया की लायबिलिटी भी है।

2015 का कसबा चुनाव: कांग्रेस-बीजेपी में कड़ी टक्कर

2015 में कांग्रेस प्रत्याशी अफाक आलम ने बीजेपी के प्रदीप कुमार दास को बहुत ही पतले अंतर (1,794 वोट) से मात दी थी। अफाक को 81,633 वोट और प्रदीप को 79,839 वोट मिले। यह मुकाबला बेहद रोमांचक था और हर चरण में पलटवार देखने को मिला।

2010 का चुनाव: कांग्रेस की वापसी

2010 में कांग्रेस ने लंबे समय बाद कसबा सीट पर वापसी की। अफाक आलम ने बीजेपी के प्रदीप कुमार दास को हराया। अफाक को 63,025 वोट मिले जबकि प्रदीप को 58,570 वोट मिले। यानि मुकाबला हमेशा करीबी रहा।

2005 और उससे पहले: बीजेपी का दबदबा

2005 और उससे पहले कसबा सीट पर बीजेपी और प्रदीप कुमार दास का दबदबा रहा। 1995 और 2000 में भी उन्होंने जीत दर्ज की थी। लेकिन 2010 से हालात बदले और कांग्रेस ने लगातार जीत दर्ज की।

कसबा की जातीय और सियासी अहमियत

कसबा विधानसभा में कुशवाहा, यादव, मुस्लिम, सवर्ण और दलित-आदिवासी वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यही वजह है कि यहां हर चुनाव में समीकरण बदल जाते हैं। इस बार मांझी की पार्टी हम (HAM) ने भी दावा ठोक दिया है, जिससे मुकाबला और पेचीदा हो गया है।