पूर्व पत्रकार रवींद्र किशोर सिन्हा ने 1974 में ₹250 से सुरक्षा कंपनी SIS की स्थापना की। आज यह 8000 करोड़ की कंपनी हजारों को रोजगार देती है। वे एक सफल व्यवसायी होने के साथ-साथ राज्यसभा सांसद भी रहे हैं।

कौन हैं SIS के मालिक आर. के. सिन्हाः बिहार का नाम अक्सर शिक्षा, राजनीति और संघर्ष की धरती के तौर पर लिया जाता रहा है। लेकिन इसी धरती से ऐसे लोग भी निकलते हैं, जो कठिनाइयों को चुनौती मानकर सफलता की नई इबारत लिखते हैं। रवींद्र किशोर सिन्हा ऐसे ही एक नाम हैं। एक समय वे पत्रकार हुआ करते थे, और आज भारत की सबसे बड़ी निजी सुरक्षा कंपनी SIS (Security and Intelligence Services) के संस्थापक और अरबों के मालिक हैं।

पत्रकारिता से प्रेरणा और बिजनेस की सोच

साल 1971 में रवींद्र किशोर सिन्हा ने बिहार के पहले अंग्रेजी समाचार पत्र सर्चलाइट (Searchlight) में काम करना शुरू किया। इस दौरान उन्होंने साल 1971 का युद्ध भी कवर किया। सैनिकों के अनुशासन और समर्पण ने उन्हें गहरी प्रेरणा दी। इसी समय उनके मन में एक बिजनेस आइडिया आया, रिटायर सैनिकों को रोजगार देना और समाज में सुरक्षा की एक मजबूत नींव रखना।

250 रुपये से शुरुआत

साल 1974 में, मात्र 250 रुपये से उन्होंने पटना में अपनी कंपनी की शुरुआत की। शुरुआती दौर में उन्होंने 14 रिटायर सैनिकों को प्रति माह 400 रुपये सैलरी पर काम पर रखा। यह छोटे कदम धीरे-धीरे बड़े बदलाव का कारण बने।

तेज़ी से बढ़ता व्यवसाय

1991 तक कंपनी में 1000 से ज्यादा कर्मचारी काम करने लगे। 2002 तक कंपनी ने 25 करोड़ रुपये से अधिक का रेवेन्यू अर्जित किया। 2008 में रवींद्र किशोर सिन्हा ने अंतरराष्ट्रीय कदम बढ़ाया और ऑस्ट्रेलिया में अपना कारोबार शुरू किया। साल 2015 तक SIS में 1 लाख से अधिक कर्मचारी काम कर रहे थे, और 2017 में यह भारत की पहली निजी सुरक्षा कंपनी बनी जो नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) पर लिस्ट हुई।

36,000 कर्मचारियों का साम्राज्य

आज SIS में 36,000 से ज्यादा कर्मचारी और 3,000 कॉर्पोरेट ग्राहक हैं। कंपनी का टर्नओवर 8,000 करोड़ रुपये से अधिक है। ऑस्ट्रेलिया से सबसे ज्यादा राजस्व आता है और फोर्ब्स के मुताबिक, रवींद्र किशोर सिन्हा की वर्तमान नेटवर्थ 8300 करोड़ रुपये से ज्यादा है।

राजनीति में भी सफलता

सिर्फ बिजनेस ही नहीं, रवींद्र किशोर सिन्हा राजनीति में भी सक्रिय हैं। वे 2014 में राज्यसभा के सांसद बने। पत्रकारिता, व्यवसाय और राजनीति, तीनों क्षेत्रों में उन्होंने अपनी पहचान बनाई और बिहार का नाम रोशन किया। 250 रुपये से शुरू हुआ छोटा व्यवसाय आज अरबों के साम्राज्य में बदल चुका है और हजारों लोगों को रोजगार दे रहा है। उनकी यह कहानी केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि बिहार के संघर्षशील युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।