बिहार चुनाव में, तेजस्वी यादव ने वक्फ कानून को "फाड़कर कूड़ेदान में फेंकने" का वादा किया। यह बयान मुस्लिम वोट बैंक को साधने की कोशिश माना जा रहा है, जो AIMIM जैसे दलों से चुनौती का सामना कर रहा है। भाजपा ने इसे संवैधानिक संस्था पर हमला बताया है।

बिहार में इस समय लोक आस्था का महापर्व छठ धूमधाम से मनाया जा रहा है। हर तरफ भक्ति और सांस्कृतिक सद्भाव का माहौल है, लेकिन इस पर्व के बीच भी राजनीतिक बयानबाज़ी और समीकरणों को साधने की कोशिशें जारी हैं। इसी कड़ी में महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने कटिहार और किशनगंज की जनसभाओं से अचानक वक्फ कानून का ज़िक्र कर दिया। तेजस्वी ने मंच से घोषणा की कि अगर उनकी सरकार बनी तो वे "वक्फ कानून को फाड़कर कूड़ेदान में फेंक देंगे।" छठ के दौरान इस विशेष मुस्लिम केंद्रित मुद्दे को उठाने के पीछे की रणनीति पर राजनीतिक गलियारों में गरमागरम बहस छिड़ गई है।

मंच से तेजस्वी ने दिया संवैधानिक चुनौती भरा बयान

तेजस्वी यादव ने किशनगंज में अपनी चुनावी रैलियों में केंद्र की भाजपा सरकार और संघ पर हमला करते हुए कहा कि जब बिहार में लालू यादव की सरकार थी, तब आरएसएस वालों की हिम्मत नहीं थी कि वे दंगा-फसाद करें। इसके बाद उन्होंने सीधे वक्फ कानून का मुद्दा उठाया। तेजस्वी ने कहा, "इन लोगों ने वक्फ कानून जो बनाया है, हमारी सरकार बनेगी तो उस बिल को हम कूड़ेदान में फेंक देंगे।"

इसके अलावा उन्होंने क्षेत्र के विकास पर भी बात की, लेकिन वक्फ कानून को फाड़ने की बात कहकर उन्होंने स्पष्ट रूप से एक विशेष वोट बैंक को साधने का प्रयास किया। उन्होंने भाजपा पर भाई-भाई को लड़ाने का काम करने का भी आरोप लगाया।

भाजपा की कड़ी प्रतिक्रिया

तेजस्वी यादव के इस बयान पर भाजपा ने तुरंत कड़ी प्रतिक्रिया दी है। भाजपा प्रवक्ता अजय आलोक ने इस बयान को संवैधानिक संस्था को सीधी चुनौती बताया।

भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि यह बिल नहीं, बल्कि संसद के दोनों सदनों से पास होने के बाद बना कानून है। उन्होंने कहा, "किसी कानून को फाड़कर कूड़े में फेंकने की बात एक राजनेता करे, जो मुख्यमंत्री पद का दावेदार हो, तब तो यह बड़ी संकट की समस्या है। यह सीधे-सीधे संवैधानिक संस्था को चुनौती देने का मामला बनता है। इस पर चुनाव आयोग को संज्ञान लेना चाहिए।"

मुस्लिम वोट बैंक पर बढ़ता दबाव

चुनावी रणनीतिकार मानते हैं कि छठ के बीच तेजस्वी यादव का वक्फ कार्ड खेलना उनकी राजनीतिक मजबूरी को दर्शाता है। बिहार में मुस्लिम वोट बैंक पर आरजेडी की पकड़ कमजोर होती दिख रही है, जिसकी मुख्य वजहें हैं:

डिप्टी सीएम पद पर घेराबंदी: महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के लिए तेजस्वी यादव और उप-मुख्यमंत्री पद के लिए वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी का नाम घोषित होने के बाद यह सवाल उठा कि आरजेडी अपने सबसे बड़े समर्थक मुस्लिम समुदाय को उप-मुख्यमंत्री का पद या पर्याप्त हिस्सेदारी क्यों नहीं दे रही है।

ओवैसी-चिराग की चुनौती: एआईएमआईएम (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी लगातार यह कहकर मुस्लिम मतदाताओं को लुभा रहे हैं कि क्या मुसलमान केवल आरजेडी के लिए दरी बिछाने के लिए हैं। वहीं, चिराग पासवान जैसे नेता भी मुस्लिम मुख्यमंत्री की मांग को उठाकर आरजेडी के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगा रहे हैं।

असंतुष्ट कार्यकर्ता: प्रशांत किशोर और अन्य नेताओं ने भी मुस्लिमों के साथ अन्याय होने की बात कही है, जिससे तेजस्वी यादव पर अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति विशेष आकर्षण दर्शाने का दबाव बढ़ गया है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 'वक्फ कानून को कूड़ेदान में फेंकने' जैसा बयान देकर तेजस्वी यादव सीधे तौर पर मुस्लिम वोटों को यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके लिए मुस्लिम हित सबसे ऊपर हैं और वह मुस्लिमों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता साबित करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।

वोटों के ध्रुवीकरण की रणनीति

यह स्पष्ट है कि बिहार चुनाव में दोनों ही प्रमुख खेमों (NDA और महागठबंधन) की ओर से वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिशें हो रही हैं। जहां भाजपा अपने राष्ट्रवाद और हिंदुत्व कार्ड पर कायम है, वहीं अब तेजस्वी यादव भी वक्फ जैसे अति-संवेदनशील और भावनात्मक मुद्दे को उठाकर मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण का प्रयास कर रहे हैं।

तेजस्वी यादव को पता है कि मुस्लिम वोटों को अपने पाले में बनाए रखना उनकी जीत के लिए अनिवार्य है। वक्फ जैसे धार्मिक-कानूनी मुद्दे को उठाकर वह न केवल मुस्लिमों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं, बल्कि यह भी साबित कर रहे हैं कि वह मुस्लिम हितों के सबसे बड़े संरक्षक हैं, भले ही इसके लिए उन्हें संवैधानिक बहस को ही क्यों न छेड़ना पड़े।