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कल्पना चावला को पिता बनाना चाहते थे डॉक्टर, बेटी को भरनी थी आसमान में उड़ान, अंतरिक्ष की वंडर वुमन की कहानी
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करनाल (हरियाणा). भारत की पहली अंतरिक्ष यात्री यानि कल्पना चावला का आज जन्मदिन है। 17 मार्च 1962 को जन्मी भारतीय मूल की महिला कल्पना चावला का नाम इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो चुका है। वह अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन पूरी दुनिया उनको एक बहादुर बेटी के तौर पर सलाम करता है। कल्पना ने एक बार नहीं, बल्कि दो बार अंतरिक्ष की यात्रा की थी। पहली बार वो 19 नवंबर 1997 को कोलंबिया स्पेस शटल (STS-87) के जरिए अंतरिक्ष मिशन शुरू किया था। इस बीच उन्होंने स्पेस में करीब 16 दिन बिताए थे। लेकिन दूसरी उड़ान उनकी जिंदगी की आखिरी उड़ान बनकर रह गई। बता दें कि कल्पना के पिता उन्हें एक होनहार डॉक्टर बनाना चाहते थे, लेकिन बेटी की दिलचस्पी आसमान में उड़ने की थी। इसलिए मां ने बेटी का सपना पूरा करने में मदद की।
कल्पना ने भारत का नाम देश ही नहीं विदेश में भी बढ़ाया। इस दौरान चावला दुनिया की हर महिला के लिए एक मिसाल बन गईं थीं। लेकिन कोलंबिया स्पेस शटल के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद एक होनहार भारतीय महिला की उड़ान हमेशा के लिए रुक गई। 1 फरवरी, 2003 को नासा का अंतरिक्ष यान 7 चालक दल के सदस्यों के साथ पृथ्वी पर लौट रहा था और शटल कोलंबिया पृथ्वी पर लौटते समय वायुमंडल में प्रवेश करते ही दुर्घटना का शिकार हो गया। इस हादसे में सभी सातों सदस्यों की जान चली गई थी। जब कभी भी अंतरिक्ष, महिला एस्ट्रोनॉट का नाम आएगा कल्पना चावला का नाम जरूर याद किया जाएगा।
दरअसल, कल्पना चावला मूल रूप से हरियाणा के करनाल की रहने वाली थीं। कल्पना के पिता बनारसी लाल और मां संज्योति चावला थीं। वह अपने भाई-बहनों में सबसे छोटी बेटी थीं। बताया जाता है कि कल्पना को बचपन से ही आसमान में उड़ना, पायलट बनना और आंतरिक्ष में यात्रा करने का सपना देखा करती थीं।
कल्पना ने अपनी स्कूली शिक्षा करनाल के ही टैगोर बाल निकेतन सीनियर सेकेंडरी स्कूल से पूरी की। कल्पना को साइंस में पढ़ने की रूची थी। लेकिन वह आगे चलकर फ्लाइट इंजीनियर बनना चाहती थीं। बस इसी सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई के लिए पंजाब के एक इंजीनियरिंग कॉलेज एयरोनॉटिकल में एडमिशन लिया था।
कल्पना की पढ़ाई और कुछ करने का जुनून यहीं नहीं रुका, वह आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चली गईं। हैरानी की बात यह है कि उन्होंने महज 20 साल की उम्र में भारत छोड़ दिया था। फिर कल्पना ने साल 1986 में अमेरिका से मास्टर्स की डिग्री पूरी की। इसके बाद यहीं से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी की।
बता दें कि कल्पना को पढ़ाई पूरी करने के बाद कमर्शियल पायलट का लाइसेंस मिल गया। इसके बाद वो यहीं से एक सर्टिफाइड फ्लाइट इंस्ट्रक्टर बन गईं। अपनी पहली नौकरी के दौरान कल्पना ने यहीं फ्रांस के जान पियरे से शादी रचा ली। जान पियरे खुद एक फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर थे। 35 साल के दौरान कल्पना ने अपने आसमान मिशन के दौरान कल्पना ने 65 लाख मील का सफर तय किया था।
बताया जाता है कि जब कल्पना ने 1993 में नासा में पहली बार एप्लाई किया था तो उनका आवेदन यहां के अफसरों ने रिजेक्ट कर दिया था। हालांकि दो साल बाद 1995 में कल्पना को फिर से मौका मिला और इस बार उनका चयन आंतरिक्ष यात्री के लिए चयन हो गया। कड़ी मेहनत और ट्रेनिंग करने के बाद तीन साल बाद 1998 में कल्पना ने पहली बार अंतरिक्ष यात्री के लिए उड़ान भरी। इस दौरान कल्पना करीब 372 घंटे अंतरिक्ष में रहीं। इस तरह वो अंतरिक्ष पर जाने वाली भारत की पहली महिला बन गईं। आज पूरा देश उनको जन्मदिन पर उन्हें याद कर रहा है।