वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने लिखा कि श्री लालजी टंडन-जैसे कितने नेता आज भारत में हैं ? वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा में अपनी युवा अवस्था से ही हैं लेकिन उनके मित्र, प्रेमी और प्रशंसक किस पार्टी में नहीं हैं ? क्या कांग्रेस, क्या समाजवादी, क्या बहुजन समाज पार्टी-- हर पार्टी में टंडनजी को चाहनेवालों की भरमार है। टंडनजी संघ, जनसंघ और भाजपा से कभी एक क्षण के लिए विमुख नहीं हुए। यदि वे अवसरवादी होते तो हर पार्टी उनका स्वागत करती और उन्हें पद की लालसा होती तो वे उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री कभी के बन गए होते। वे पार्षद रहे, विधायक बने, सांसद हुए, मंत्री बने और अब मध्यप्रदेश के राज्यपाल हैं। जो भी पद या अवसर उन्हें सहज भाव से मिलता गया, उसे वे विन्रमतापूर्वक स्वीकार करते गए। उत्तरप्रदेश की राजनीति जातिवाद के लिए काफी बदनाम है। वहां का हर बड़ा नेता जातिवाद की बंसरी बजाकर ही अपनी दुकानदारी जमा पाता है लेकिन टंडनजी हैं कि उनकी राजनीति संकीर्ण सांप्रदायिकता और जातीयता के दायरों को तोड़कर उनके पार चली जाती है। इसीलिए वे हरदिल अजीज़ नेता रहे हैं।