सार
ज्योतिष शास्त्र में शनि को सबसे महत्वपूर्ण ग्रह माना गया है। शनि न्यायाधिपति भी हैं जो हर व्यक्ति को उसके कर्मानुसार देते हैं। शनि सूर्यपुत्र हैं, लेकिन फिर भी ज्योतिष में ये दोनों ग्रह एक-दूसरे से शत्रु भाव रखते हैं। शनि सबसे धीरे चलने वाला ग्रह है। ये ग्रह लगभग ढाई साल में राशि बदलता है।
उज्जैन. जब भी शनि का राशि परिवर्तन होता है लोग यह जानने को उत्सुक होते हैं कि उनके लिए यह राशि परिवर्तन क्या फ़ल देने वाला है, लेकिन शनि सदैव ही अशुभ या कष्टदायक नहीं होते। यदि किसी की जन्मपत्रिका में शनि शुभ भावेश होकर शुभ भावों में स्थित होते हैं तो वे उस व्यक्ति को सफलता भी प्रदान करते हैं। अलग-अलग लग्न की कुंडली में शनि शुभ-अशुभ और मिश्रित फल देते हैं। आगे जानिए किस लग्न की पत्रिका में शनि क्या फल प्रदान करता है…
1- मेष लग्न वाले लोगों की कुंडली में शनि शुभ भावों जैसे केन्द्र, त्रिकोण या लाभ भाव में स्थित हैं तो वे विशेष शुभ माने जाते हैं। यदि मेष लग्न में शनि शुभ भावों में उच्चराशिस्थ हों तो यह स्थिति अति शुभ हो जाती है किन्तु यदि शनि अशुभ भावों में या नीचराशिस्थ अथवा निर्बल हैं तो ऐसे में वे अपनी शुभता में कमी कर देते हैं।
2- वृषभ लग्न में शनि शुभ फल प्रदान करते हैं। वृषभ लग्न में शनि भाग्य के अधिपति भी होते हैं। अत: वृषभ लग्न वाले लोगों को शुभ शनि भाग्य का साथ व सहयोग प्रदान कराते हैं।
3- मिथुन लग्न में शनि अष्टमेश व नवमेश होने के कारण मिश्रित फलदायक होते हैं। मिथुन लग्न वाले लोगों की पत्रिका में शनि यदि शुभ भावों में स्थित हैं तो वे व्यक्ति को दीर्घायु व भाग्यवान बनाते हैं किन्तु अष्टमेश होने के कारण कुछ परेशानियां भी उत्पन्न करते हैं।
4- कर्क लग्न में शनि सप्तमेश व अष्टमेश होने के कारण अशुभ होते हैं। कर्क लग्न के लोगों की कुंडली में यदि शनि केंद्र या त्रिकोण में स्थित होते हैं तब वे अशुभ फल प्रदान करते हैं। सप्तमेश होने से यहां शनि मारकेश भी होते हैं।
5- सिंह लग्न में शनि षष्ठेश व सप्तमेश होने के कारण अशुभ होते हैं। सिंह लग्न के लोगों की कुंडली में यदि शनि केन्द्र या त्रिकोण में अथवा उच्चराशिस्थ स्थित होते हैं तब वे अशुभ फलित करते हैं। सप्तमेश होने से यहां शनि मारकेश भी होते हैं।
6- कन्या लग्न में शनि पंचमेश व षष्ठेश होने के कारण मिश्रित फलदायक होते हैं। कन्या लग्न वाले लोगों की पत्रिका में शनि यदि शुभ भावों में स्थित हैं तो वे व्यक्ति को मेधावी बनाते हैं किन्तु षष्ठेश होने के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं व रोग उत्पन्न करते हैं।
7- तुला लग्न में शनि चतुर्थेश व पंचमेश होने के कारण शुभ होते हैं। तुला लग्न में शनि भूमि, भवन, वाहन व उच्चशिक्षा के अधिपति होते हैं। अत: तुला लग्न वाले लोगों को शुभ शनि उच्चशिक्षा, भूमि, भवन व वाहन सुख प्रदान करते हैं।
8- वृश्चिक लग्न में शनि शुभ भावों में उच्चराशिस्थ हों तो यह स्थिति अती शुभ हो जाती है किन्तु यदि शनि अशुभ भावों में या नीचराशिस्थ अथवा निर्बल हैं तो ऐसे में वे अपनी शुभता में कमी कर देते हैं।
9- धनु लग्न में शनि द्वितीय व तृतीयेश होने के कारण मिश्रित फलदायक होते हैं। द्वितीयेश होने से यहां शनि मारकेश भी होते हैं। मारकेश का शुभ भावस्थ होना व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। धनु लग्न वाले लोगों के लिए शनि की दशा-अन्तर्दशा मिश्रित फलदायक होती है।
10- मकर लग्न में शनि लग्न व दिवितीयेश होने के कारण अन्तिम रूप से शुभ ही माने जाते हैं। मकर लग्न वाले लोगों को शनि की दशा लाभदायक अधिक रहती है किन्तु दशा के उत्तरार्द्ध में कुछ कष्टदायक भी हो जाती हैं क्योंकि शनि यहां मारकेश भी होते हैं।
11- कुंभ लग्न में शनि लग्नेश व द्वादशेश होने के कारण मिश्रित फलदायक होते हैं क्योंकि बारहवें भाव को सबसे कम अशुभता प्राप्त है। द्वादशेश होने से यहां शनि व्यय के अधिपति भी होते हैं, यदि शनि स्वराशिस्थ हैं तो ऐसा व्यक्ति खूब खर्च करता है।
12- मीन लग्न में शनि लाभेश व द्वादशेश होने के कारण मिश्रित फलदायक होते हैं। ऐसा व्यक्ति खूब लाभ प्राप्त करता है। मीन लग्न में यदि शनि द्वादश भाव में स्थित हो तो वे व्यक्ति विदेश यात्राएं करता है।
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