सार
आज (2 नवंबर, मंगलवार) कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस दिन धनतेरस (Dhanteras 2021) का पर्व मनाया जाता है। इस दिन मुख्य रूप से औषधियों के स्वामी भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। इनके अलावा कुबेरदेव और यमराज की पूजा करने का विधान भी है।
उज्जैन. स्कंद पुराण के अनुसार, धनतेरस (Dhanteras 2021) पर प्रदोष काल (शाम) में यमराज के निमित्त दीप और नैवेद्य समर्पित करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। इस परंपरा से जुड़ी एक कथा भी है, जिसका वर्णन कई ग्रंथों में मिलता है। मान्यता है कि जिन लोगों के घरों में अकाल मृत्यु होती रहती है, उन्हें धनतेरस की शाम को यमराज के निमित्त दीपदान जरूर करना चाहिए। इससे इनकी परेशानी कम हो सकती है। आगे जानिए धनतेरस पर किस विधि से करें दीपदान…
दीपदान के लिए शुभ मुहूर्त
शाम 06.18 से रात 08.14 तक- वृषभ लग्न
(उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मितेश पाण्डे के अनुसार)
दीपदान की विधि...
- मिट्टी का एक बड़ा दीपक लें और उसे साफ पानी से धो लें। इसके बाद साफ रुई लेकर दो लंबी बत्तियां बना लें। उन्हें दीपक में एक-दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियों के चार मुहं दिखाई दें।
- अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही, उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें। इस प्रकार तैयार किए गए दीपक की रोली, चावल एवं फूल से पूजा करें। उसके बाद घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी-सी खील अथवा गेहूं की एक ढेरी बनाएं और नीचे लिखे मंत्र को बोलते हुए दक्षिण दिशा की ओर मुख करके यह दीपक उस पर रख दें-
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह।
त्रयोदश्यां दीपदनात् सूर्यज: प्रीयतामिति।।
- इसके बाद हाथ में फूल लेकर नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए यमदेव को दक्षिण दिशा में नमस्कार करें-
ऊं यमदेवाय नम:। नमस्कारं समर्पयामि।।
- अब यह फूल दीपक के समीप छोड़ दें और हाथ में एक बताशा लें तथा नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए उसे भी दीपक के पास रख दें-
ऊं यमदेवाय नम:। नैवेद्यं निवेदयामि।।
- अब हाथ में थोड़ा-सा जल लेकर आचमन के लिए नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए दीपक के पास छोड़ दें-
ऊं यमदेवाय नम:। आचमनार्थे जलं समर्पयामि।
- अब फिर से यमदेव को ऊं यमदेवाय नम: कहते हुए दक्षिण दिशा में नमस्कार करें। इस तरह दीपदान करने से यमराज प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता।
इसलिए धनतेरस पर करते हैं दीपदान...
- एक समय यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि- क्या कभी तुम्हें प्राणियों के प्राण का हरण करते समय किसी पर दयाभाव भी आया है, तो वे संकोच में पड़कर बोले- नहीं महाराज! यमराज ने उनसे दोबारा पूछा तो उन्होंने संकोच छोड़कर बताया कि- एक बार एक ऐसी घटना घटी थी, जिससे हमारा हृदय कांप उठा था।
- हेम नामक राजा की पत्नी ने जब एक पुत्र को जन्म दिया तो ज्योतिषियों ने नक्षत्र गणना करके बताया कि यह बालक जब भी विवाह करेगा, उसके चार दिन बाद ही मर जाएगा। यह जानकर उस राजा ने बालक को यमुना तट की एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखकर बड़ा किया।
- एक दिन जब महाराजा हंस की युवा बेटी यमुना तट पर घूम रही थी तो उस ब्रह्मचारी युवक ने मोहित होकर उससे गंधर्व विवाह कर लिया। चौथा दिन पूरा होते ही वह राजकुमार मर गया। अपने पति की मृत्यु देखकर उसकी पत्नी बिलख-बिलखकर रोने लगी। उस नवविवाहिता का करुण विलाप सुनकर हमारा हृदय भी कांप उठा। उस राजकुमार के प्राण हरण करते समय हमारे आंसू नहीं रुक रहे थे।
- तभी एक यमदूत ने पूछा- क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है? यमराज बोले- हां एक उपाय है। अकाल मृत्यु से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को धनतेरस पर पूजन और दीपदान विधिपूर्वक करना चाहिए। जहां यह पूजन होता है, वहां अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता।
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