सार

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में अगर सूर्य अशुभ स्थिति में हो तो उससे बचने के लिए कई प्रकार के रत्न पहने जाते हैं। इन सभी में माणिक यानी रूबी सबसे उत्तम होता है।

उज्जैन. माणिक रत्न के भी कई प्रकार होते हैं। ये सभी अलग-अलग रूप से प्रभाव दिखाते हैं। आज हम आपको माणिक के प्रकार तथा इससे संबंधित विशेष जानकारी दे रहे हैं, जो इस प्रकार है…

माणिक के प्रकार: रंगभेद से माणिक पांच प्रकार का होता है।

पद्मराग: हल्की पीली आभा से युक्त गहरे लाल रंग का तप्त कंचन जैसा और प्रकाश किरणें देने वाला।
सौगन्धिक: अनार के दाने के रंग जैसे दूसरे नंबर का यह माणिक पद्मराग की अपेक्षा कम असर का होता है।
नीलागन्धी: इस रत्न का रंग हल्की और नीली आभा लिए है।
कुरुबिन्द: हल्की पीली आभा से युक्त यह रत्न चमक में अधिक होता है।
जामुनी: लाल कनेर या जामुन के रंग का यह रत्न सामान्य मूल्य का होता है।

माणिक से जुड़ी अन्य खास बातें…
1. वैसे तो माणिक्य के कई उपरत्न होते हैं लेकिन उनमें से प्रमुख हैं, रेड गार्नेट यानी तामड़ा, रेड टर्मेलाइन यानी लाल तुरमली, स्पिनील या स्पाइनल यानी कंटकिज़, रेड स्वरोस्की आदि।
2. माणिक रत्न का प्रमुख उपरत्न लालड़ी अथवा सूर्यमणि को माना है। लाल, लालड़ी, माणिक्य मणि यह सब एक ही हैं। रंगभेद से लालड़ी दस प्रकार की पायी जाती है। यह भेद बहुत ही सूक्ष्म होते हैं।
3. माणिक को तांबे या सोने की अंगूठी में जड़वाकर अनामिका में धारण करते हैं। माणिक के सभी उपरत्नों को चांदी में पहना जा सकता है। खालिस तांबे की अंगूठी से भी सूर्य पीड़ा को शांत किया जा सकता है।
4. माणिक को नीलम, हीरा और गोमेद के साथ पहनना नुकसानदायक हो सकता है। माणिक को मोती, पन्ना, मूंगा और पुखराज के साथ पहन सकते हैं।
5. माणिक्य को लोहे की अंगूठी में जड़वाकर पहनना नुकसानदायक है। माणिक्य का प्रभाव अंगूठी में जड़ाने के समय से 4 वर्षों तक रहता है, इसके बाद दूसरा माणिक्य जड़वाना चाहिए।

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