सार

कानपुर के किदवई नगर स्थित जंगली देवी का खास ही मान्यता है। ऐसा कहा जाता है कि यहां पर जलाभिषेक से सीचीं गई ईंट को अगर मकान में लगाया जाए तो बहुत जल्द ही तरक्की होती है।  इसके साथ ही जंगली देवी की प्रतिमा को जो भी भक्त पूरी श्रद्धा के साथ माता के चेहरे को निहारता है, धीरे-धीरे माता की प्रतिमा का रंग गुलाबी होने लगता है। 

सुमित शर्मा
कानपुर:
चैत्र के पावन अवसर पर जंगली देवी मंदिर की खास मान्यता है। जंगली देवी के जलाभिषेक से सींची गई ईंट को निर्माणाधीन मकान की नींव में लगाने से तरक्की होती है। जंगली देवी मंदिर में नवरात्री के पर्व में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। इसके साथ ही जंगली देवी की प्रतिमा को जो भी भक्त पूरी श्रद्धा के साथ माता के चेहरे को निहारता है, धीरे-धीरे माता की प्रतिमा का रंग गुलाबी होने लगता है। इस प्राचीन मंदिर का बहुत ही प्राचीनतम इतिहास है। जंगल में मंदिर होने के कारण यह जंगली देवी मंदिर के नाम से विख्यात हो गया। 

किदवई नगर स्थित जंगली देवी मंदिर का इतिहास बहुत ही रोचक है। जिस स्थान पर जंगली देवी का मंदिर बना है। उस स्थान पर 838 ईसवीं में वहां पर राजा भोज का राज था। राजा भोज ने बगाही क्षेत्र में एक विशाल मंदिर बनवाया था। लेकिन राजशाही समाप्त होने के बाद सब कुछ बर्बाद हो चुका था। जानकारों का मानना है कि 17 मार्च सन 1925 में मोहम्मद बकर अपने घर के निर्माण के लिए खोदाई करा रहे थे। उसी दौरान उनको एक ताम्र-पात्र मिला था। जिसे देखने के लिए पूरा गांव इकट्ठा हो गया था। लेकिन उन्होंने इस ताम्र पात्र को पुरातत्व विभाग को सौप दिया था।

घने जंगल में था मंदिर
मंदिर के प्रबंधक डीपी बाजपाई के मुताबिक क्षेत्रीय लोगों के प्रयास से ताम्र-पात्र को वापस लाया गया था। एक तालाब के किनारे नीम के पेड़ के नीचे रख दिया गया था। एक छोटी सी मठिया बना दिया गया था। लेकिन उस समय इस क्षेत्र में बहुत बड़ा जंगल था। मंदिर के पास लोग जाने में डरते थे क्यों कि मंदिर के पास बने तालाब में जंगली जानवरों का आना जाता था। तालाब पर जंगली जानवर पानी पीने के लिए आते थे। समय के साथ धीरे-धीरे तालाब सूख गया। आबादी बढ़ने लगी, लोग उस स्थान पर पूजा करने के लिए आने लगे। साधू संतो ने वहां पर अपना डेरा जमा लिया। इसके बाद आपसी सहयोग से मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो गया।

मंदिर में जलती है अखंड ज्योति 
जंगली देवी मंदिर अपनी विशेषता के लिए भी प्रसिद्ध है। राजन कुमार बताते हैं कि इस मंदिर में भक्तों की अटूट आस्था है। जंगली देवी मंदिर में सन 1980 से अखंड ज्योति जल रही है। मान्यता है कि जो भी भक्त अखंड ज्योति जलाने में योगदान देता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। जिस भक्त की मनोकामना पूरी हो जाती है, उसके बाद अगले भक्त के दान किए हुए घी से अखंड ज्योति जलाई जाती है।
 
जंगली देवी मंदिर की कमेटी के सदस्य बुधलाल गुप्ता के मुताबिक माता प्रतिमा के सामने जो भक्त पूरी आस्था के साथ चेहरे को निहारता है। माता की प्रतिमा का रंग धीरे-धीरे गुलाबी होने लगता है। जिससे भक्त समझ जाता है कि उसकी मनोकामना पूरी हो गई।

नींव में लगाते हैं ईंट 
मंदिर के नियमित दर्शन करने वाले भक्त राज सिंह अहिरवार के मुताबिक प्रतिमा पर चढ़ाए गए जल व नारियल का पानी प्रतिमा के पीछे बनी नाली से होकर गुजरता है। भक्त वहां पर ईट रखते हैं और कुछ दिन बाद वही ईंट अपने निर्माणाधीन मकान में लगाते हैं, तो छोटा सा मकान भी बहुत जल्द बंगले में तब्दील हो जाता है। उन्होंने कहा यह सब माता की कृपा से मुमकिन है।

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