सार
पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का साइकिल से खास रिश्ता रहा है। कॉलेज में पढ़ाई के दिनों में उनके पास साइकिल नहीं थी। परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि साइकिल खरीदी जा सके। उन्होंने ताश की बाजी से पहली साइकिल जीती थी।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) नहीं रहे। 82 साल की उम्र में उन्होंने 10 अक्टूबर को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में अंतिम सांस ली। साइकिल से नेता जी का गहरा नाता रहा है। एक वक्त था जब गरीब परिवार में जन्में नेताजी के पास साइकिल खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। इसके चलते उन्हें कॉलेज जाने में काफी परेशानी होती थी। कॉलेज उनके घर से करीब 20 किलोमीटर दूर था।
बात 1960 की है। मुलायम अपने दोस्त रामरूप के साथ उजयानी गांव गए थे। दोपहर के वक्त गांव के कुछ लोग ताश खेल रहे थे। मुलायम भी ताश खेलने लगे। इसी दौरान एक आलू कारोबारी ने अपनी रॉबिनहुड साइकिल दांव पर लगा दी। मुलायम ने बाजी जीत ली। इसके साथ उन्हें अपनी पहली साइकिल भी मिल गई।
साइकिल को बनाया था चुनाव चिह्न
कॉलेज में पढ़ाई करने से लेकर शिक्षक बनने तक साइकिल मुलायम सिंह के यातायात का मुख्य जरिया रहा। मुलायम सिंह ने 1993 में साइकिल को अपनी पार्टी समाजवादी पार्टी के चुनाव चिह्न के रूप में चुना था। 90 के दशक में आम आदमी की मुख्य सवारी साइकिल थी। किसान हो या मजदूर या छोटा-मोटा कारोबारी, अधिकतर लोग साइकिल से ही आते-जाते थे। इसे देखते हुए मुलायम सिंह ने अपनी पार्टी का चुनाव चिह्न साइकिल रखा।
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विधायक बनने के बाद भी चलाते थे साइकिल
1967 में मुलायम सिंह ने पहला चुनाव दोस्तों के साथ साइकिल से घूमकर और वोट मांगकर जीता था। मुलायम सिंह साइकिल से गांव-गांव जाते थे और अपनी पर्टी के चंदा जमा करते थे। विधायक बनने के बाद भी मुलायम सिंह अपने क्षेत्र में साइकिल से घूमते थे। वह गली-गली में साइकिल से जाते और लोगों से मिलते। मुलायम सिंह ने तीन बार विधायक बनने तक साइकिल चलाया था। 1977 में पार्टी के किसी दूसरे नेता ने पैसे जमा कर मुलायम सिंह के लिए पहली कार खरीदी थी।
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