सार
1985 से स्विट्जरलैंड में कानूनी तौर पर आत्महत्या की अनुमति है। 'असिस्टेड सुसाइड' के लिए सरकारी अनुमति लेने हेतु, रोगी को लाइलाज बीमारी होनी चाहिए। ऐसे रोगियों को स्विट्जरलैंड में कुछ स्वयंसेवी संगठनों से मदद भी मिल सकती है। पिछले सितंबर में एक महिला की आत्महत्या के बाद, डॉ. फ्लोरियन विलेट, जिन्होंने सुसाइड पॉड बनाया था, को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
स्विट्जरलैंड में पहली बार, 23 सितंबर को, 64 वर्षीय अमेरिकी महिला ने 'सुसाइड पॉड' का उपयोग करके आत्महत्या की। मरणोपरांत जांच में महिला के गले पर निशान मिले, जिससे हत्या का संदेह है। अधिकारी इसे 'जानबूझकर हत्या' मान रहे हैं। 'द लास्ट रिसॉर्ट' ने यह सुसाइड पॉड बनाया है। इसमें सीलबंद चैंबर में नाइट्रोजन गैस भरकर लोगों को मरने दिया जाता है।
महिला को सिर में गंभीर ऑस्टियोमाइलाइटिस था। रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्हें पिछले दो सालों से असहनीय सिरदर्द था, जिससे उन्हें बाथरूम जाने या हिलने-डुलने में भी परेशानी होती थी। इस बीमारी का कोई कारगर इलाज नहीं है। इसलिए उन्होंने स्विट्जरलैंड में कानूनी आत्महत्या का विकल्प चुना।
ऑस्ट्रेलियाई डॉक्टर और भौतिक विज्ञानी फिलिप निट्शके ने इस सुसाइड पॉड को डिज़ाइन किया था। स्विट्जरलैंड में इसका इस्तेमाल 'द लास्ट रिसॉर्ट' नामक संगठन करता है। रिपोर्ट के अनुसार, 'द लास्ट रिसॉर्ट' के अध्यक्ष डॉ. फ्लोरियन विलेट की मौजूदगी में महिला ने आत्महत्या की कोशिश की। महिला ने बताया कि जब उसने बटन दबाया, तो वह अकेली थी। मशीन ठीक से काम कर रही है या नहीं, यह देखने के लिए उसने कई बार इसे खोला। बटन दबाने के 30 सेकंड बाद महिला बेहोश हो गई।
करीब ढाई मिनट बाद, उसके शरीर में दर्द के लक्षण दिखे। नाइट्रोजन से होने वाली मौतों में ऐसा आम है। बेहोशी के कुछ देर बाद ही दिल पूरी तरह से धड़कना बंद कर देता है। लेकिन, महिला के गले पर मिले निशानों ने पुलिस को शक में डाल दिया। पुलिस को शक है कि मशीन के ठीक से काम न करने पर उसकी गला घोंटकर हत्या की गई होगी। हालांकि, इसकी पुष्टि के लिए कोई आधिकारिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं है। डच न्यूज़ एजेंसी डी वोल्क्स्करांट ने बताया कि गले के निशान महिला की दो साल पुरानी गंभीर बीमारी से जुड़े हो सकते हैं। महिला को ऑस्टियोमाइलाइटिस था, जो बैक्टीरिया या फंगस के कारण होने वाला अस्थि मज्जा का संक्रमण है। इससे गले पर ऐसे निशान पड़ सकते हैं। आंकड़े बताते हैं कि 1985 से 2014 के बीच, विभिन्न देशों के 3,666 लोगों ने असिस्टेड सुसाइड का विकल्प चुना।