सार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(Prime Minister Narendra Modi) 16 मई बुद्ध जयंती पर नेपाल के लुंबिनी पहुंचे। लुंबिनी में ही भगवान गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। यहां दुनिया भर से हर साल करीब 1.6 मिलियन पर्यटक आते हैं। लेकिन विडंबना देखिए, यहां का मास्टर प्लान पिछले 15 साल से पूरा नहीं हो पाया। लेकिन अब मोदी के वहां जाने से उम्मीदों को 'पर' लग गए हैं। पढ़िए, क्यों महत्वपूर्ण है लुंबिनी...
काठमांडु. वैशाख बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर लुंबिनी की अपनी इस सरकारी यात्रा के दौरान पीएम लुंबिनी मठ क्षेत्र के भीतर एक अद्वितीय बौद्ध संस्कृति एवं विरासत केंद्र के निर्माण के लिए शिलान्यास समारोह में हिस्सा लिया। बता दें कि बुद्ध की जन्मस्थली के विकास का मास्टर प्लान करीब पूरा हो चुका है। इसे प्रसिद्ध जापानी वास्तुकार प्रो केंज़ो तांगे (1913 -2005) ने तैयार किया है। इस मास्टर प्लान को तैयार करने में 6 साल लगे। लेकिन निराशा की बात यह रही कि इसे 15 साल के भीतर 2 फेज में लागू करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन सरकार की लापरवाही के इस पर काम नहीं हो सका। हालांकि मोदी की विजिट के बाद इसमें फिर से जान आ गई है। यानी जैसे ही इस मास्टर प्लान पर काम पूरा हो जाएगा, तय मानिए लुंबिनी नेपाल के उन कुछ स्थानों में से एक होगा, जो दुनियाभर में चर्चित हो उठेगा। इस बौद्ध सांस्कृतिक केंद्र को बनाने में भारत 1 अरब रुपए खर्च कर रहा है।
यहां कई गुना पर्यटक बढ़ जाएंगे
लुंबिनी के मास्टर प्लान पर nepalnews वेबसाइट ने एक विस्तार से न्यूज पब्लिश की है। इसमें लिखा गया कि बौद्ध धर्म के एक शोधकर्ता बसंत महारजन(Basanta Maharjan, a researcher in Buddhism) मानते हैं कि लुंबिनी को एक अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। इससे करीब 20 किमी दूर गौतम बुद्ध अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे की शुरुआत निश्चय ही लुंबिनी के उज्ज्वल भविष्य का संकेत है। हालांकि वे यह भी कहते हैं कि अगर लुंबिनी मास्टर प्लान पर समय सीमा में काम पूरा हो जाता, तो क्षेत्र में पर्यटन कई गुना बढ़ जाता। हालांकि देर हो चुकी है, फिर भी यह पूरा होने के चरण में है, और यह एक सुखद विकास है।
भारतीय पर्यटकों से मिलेगा आर्थिक संबल
बसंत महारजन सुझाव देते हैं कि नेपाल और भारत के बौद्ध स्थलों को जोड़ने से और लुंबिनी के विकास से यहां पर्यटक बढ़ेंगे, जिससे नेपाल की इकोनॉमी बेहतर होगी। लुंबिनी में हजारों बौद्ध पर्यटक बौद्ध संस्कृति के अनुसार बौद्ध धर्म के इस पवित्र स्थान की यात्रा पर आते हैं। वे यहां तीन दिन रुकते हैं।
मास्टर प्लान में जो सुझाव दिए गए, उसके अनुसार पहले दिन तीर्थयात्री लुंबिनी ग्राम क्षेत्र में रात बिताते हैं। इस क्षेत्र को मानसिक और शारीरिक रूप से आध्यात्मिक क्षेत्र(mentally and physically spiritual zone) के तौर पर विकसित किया जा सकता है । दूसरे दिन वे सांस्कृतिक क्षेत्र में अपने मन को शुद्ध करते हैं और तीसरे दिन वे मायादेवी मंदिर में पूजा करने जाते हैं।
लुंबिनी क्षेत्र करीब1,155 बीघा में फैला हुआ है। यही कारण है कि लुंबिनी विकास ट्रस्ट (लुंबिनी क्षेत्र के विकास के लिए जिम्मेदार निकाय) बुद्ध के जीवन से संबंधित साइटों को एक साथ विकसित करने के विचार के साथ अस्तित्व मे आया, जो पास के कपिलवस्तु और नवलपरासी (बरदाघाट सुस्ता पूर्व और पश्चिम) में स्थित हैं।
लुंबिनी क्षेत्र के बारे में
वर्तमान में लुंबिनी क्षेत्र में 24 से अधिक विहार और मठ हैं। लुंबिनी को 1997 में विश्व धरोहर स्थल के रूप में शामिल किया गया था। यहां 1100 शताब्दी ईसा पूर्व के प्राचीन लेख और अवशेष मिले हैं। मायादेवी मंदिर लुंबिनी का केंद्र है। बौद्ध धर्म के अनुयायी हमेशा अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार बुद्ध के जन्मस्थान की यात्रा करना चाहते हैं। दुनिया भर से लगभग 1.6 मिलियन आगंतुक सालाना लुंबिनी आते हैं।
तिलौराकोट तिलौराकोट बुद्ध के जीवन से जुड़ा एक और स्थान है। यह लुंबिनी से लगभग 28 किमी पश्चिम में स्थित है। यहां सिद्धार्थ गौतम ने अपने जीवन के 29 वर्ष बिताए थे। अब तिलौराकोट को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल करने की तैयारी है। इसी उद्देश्य से 17 और 18 मई को 'तिलौराकोट शिखर सम्मेलन' का आयोजन हो रहा है।
लुंबिनी बारे में यह भी महत्वपूर्ण बातें
भारत के दुनिया में बौद्ध धर्म के प्रमुख केंद्रों में से एक होने के बावजूद बुद्ध के जन्मस्थान लुंबिनी को लेकर अभी तक कोई प्लानिंग नहीं थी। थाईलैंड, कनाडा, कंबोडिया, म्यांमार, श्रीलंका, सिंगापुर, फ्रांस, जर्मनी, जापान, वियतनाम, ऑस्ट्रिया, चीन, दक्षिण कोरिया और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों का प्रतिनिधित्व मठ क्षेत्र के प्रोजेक्ट्स सेंटर द्वारा किया जाता है। लुंबिनी के मास्टर प्लान का मामला पीएम मोदी की सरकार ने नेपाल के साथ सर्वोच्च स्तर( highest level) पर उठाया था। इसके बाद दोनों सरकारों के सकारात्मक प्रयासों के चलते नवंबर 2021 में लुंबिनी डेवलपमेंट ट्रस्ट ने एक परियोजना बनाने के लिए IBC को एक प्लॉट (80 मीटर X 80 मीटर) आवंटित किया। इसके बाद मार्च 2022 में IBC और LDT के बीच विस्तृत समझौता किया गया, जिसके बाद भूमि औपचारिक रूप से IBC को पट्टे पर दी गई। यह केंद्र 7 बाहरी लेयर के साथ एक अद्वितीय डिजाइन होगा। यह बुद्ध द्वारा उनके जन्म के तुरंत बाद उठाए गए सात कदमों का सिंबल है। इसमें प्रार्थना कक्ष, ध्यान कक्ष, पुस्तकालय, सभागार, बैठक कक्ष, कैफेटेरिया और भिक्षुओं के के लिए आवास होंगे।कुल मिलाकर यह केंद्र भारत की बौद्ध विरासत और तकनीकी कौशल दोनों का प्रदर्शन करेगा।
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