पुतिन का इंडिया दौरा: क्या मोदी-पुतिन की अगली मीटिंग में इंडिया सस्ते रशियन ऑयल और US ट्रेड दबाव के बीच संतुलन बना पाएगा? जानिए रशियन डिफेंस डील और रणनीतिक फैसलों की पूरी कहानी! इंडिया के स्ट्रेटेजिक विकल्प क्या होंगे?

नई दिल्ली। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जल्द ही भारत आ रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगे। इस दौरे पर सबकी नज़रें रशियन ऑयल, US ट्रेड प्रेशर और डिफेंस डील पर टिकी हैं। मॉस्को चाहता है कि भारत उसके तेल और एनर्जी प्रोजेक्ट्स में मदद करे, जबकि नई दिल्ली सोच रही है कि US टैरिफ और बैन के रिस्क के बीच अपने ट्रेड और डिफेंस रिश्ते कैसे संतुलित रखे।

क्या भारत सस्ता रशियन ऑयल ले पाएगा?

रूस की तरफ़ से पुतिन के डेलीगेशन में स्बरबैंक, रोसोबोरोनएक्सपोर्ट और बैन की गई तेल कंपनियों रोसनेफ्ट और गैज़प्रोम के हेड मौजूद होंगे। मॉस्को भारत से टेक्निकल सपोर्ट और स्पेयर पार्ट्स मांग सकता है, क्योंकि पश्चिमी बैन ने सप्लाई चैन तक पहुंच काट दी है। भारत सरकार ONGC विदेश लिमिटेड की सखालिन-1 प्रोजेक्ट में 20% हिस्सेदारी फिर से शुरू करने पर भी ज़ोर दे सकती है। क्रेमलिन के प्रेस सेक्रेटरी दिमित्री पेसकोव ने कहा कि US टैरिफ भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय मुद्दा नहीं है, और मॉस्को चाहता है कि ट्रेड वॉल्यूम बढ़े। इस दौरे से रूस को भारतीय एक्सपोर्ट बढ़ाने का मौका मिलेगा और वॉल्यूम में गिरावट केवल अस्थायी रहेगी।

रूस की बड़ी कंपनियों का भारत दौरा-क्या है मिशन?

पुतिन के साथ रूस की बड़ी कंपनियों के हेड भी भारत आ रहे हैं- जैसे स्बरबैंक, हथियार एक्सपोर्टर रोसोबोरोनएक्सपोर्ट, और बैन की गई तेल कंपनियां रोसनेफ्ट और गैज़प्रोम नेफ्ट। इन कंपनियों का मकसद तेल ऑपरेशन्स के लिए स्पेयर पार्ट्स और तकनीकी मदद पाना है, क्योंकि पश्चिमी बैन ने सप्लायर्स तक पहुँच को रोक रखा है।

भारत-रूस डिफेंस रिलेशन-क्यों है ये सबसे मजबूत?

जहां तेल और ट्रेड को लेकर भारत की सोच पेचीदा है, वहीं डिफेंस रिलेशन बेहद मजबूत है। भारत की 29 फाइटर स्क्वाड्रन की रीढ़ सुखोई-30 जेट्स हैं और रूस ने भारत को अपना सबसे एडवांस्ड Su-57 ऑफर किया है। इसके अलावा, S-400 एयर डिफेंस सिस्टम की डिलीवरी और यूनिट्स पर भी चर्चा होने की संभावना है।

क्या इंडिया बैलेंस कर पाएगा दोनों ताकतों के बीच?

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के हर्ष पंत के मुताबिक, यूक्रेन युद्ध के हालिया वार्ता के बाद भारत को मॉस्को के साथ बातचीत के लिए अधिक डिप्लोमैटिक गुंजाइश मिल सकती है। लेकिन दिन के अंत में, केवल डिफेंस सहयोग ही दोनों देशों को एक साथ बांधे हुए है।

क्या पुतिन-मोदी मीटिंग से बड़ा ट्रेड और डिफेंस डील होगा?

क्रेमलिन के संकेत और इंडस्ट्री सूत्र बताते हैं कि मीटिंग में ट्रेड वॉल्यूम बढ़ाने, एनर्जी सपोर्ट, और डिफेंस डील्स पर चर्चा होगी। सवाल यह है कि इंडिया अपने स्ट्रेटेजिक और आर्थिक हितों के बीच संतुलन कैसे बनाएगा। मोदी-पुतिन की यह मीटिंग सिर्फ डिफेंस डील तक सीमित नहीं है। यह रशियन तेल, US ट्रेड दबाव और भारत की रणनीति तय करने वाली अहम बातचीत हो सकती है। भारत की चुनौती है कि वह दोनों ताकतों के बीच बैलेंस बनाए रखे और अपने स्ट्रेटेजिक हितों को सुरक्षित रखे।