बांग्लादेश ने शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की है, लेकिन भारत के पास राजनीतिक या अन्यायपूर्ण मामलों में इसे ठुकराने का कानूनी अधिकार है। जानें क्या कहती है भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि और क्यों शेख हसीना को सौंपने से मना कर सकता है भारत।
India-Bangladesh Extradition Treaty: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मानवता के खिलाफ अपराध के लिए उनकी गैर-मौजूदगी में फांसी की सजा सुनाई गई है। बांग्लादेश के इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए इस फैसले के बाद ढाका की अंतरिम सरकार ने भारत से शेख हसीना को तत्काल प्रत्यर्पित करने का आग्रह किया है। अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या भारत हसीना का प्रत्यर्पण करेगा? आइए जानते हैं, क्या कहता है नियम?
क्या भारत शेख हसीना का प्रत्यर्पण करेगा?
ज्यादातर मामलों में प्रत्यर्पण अनुरोध को सहजता से स्वीकार किया जाता है, लेकिन इस मामले में संभावना बेहद कम है कि भारत शेख हसीना का प्रत्यर्पण करेगा। भारतीय कानून और द्विपक्षीय संधि, दोनों ही भारत को महत्वपूर्ण विवेकाधिकार देते हैं, खासकर उन मामलों में जब अनुरोध को राजनीति से प्रेरित या अन्यायपूर्ण माना जा सकता है।
भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि क्या कहती है?
2013 में, नई दिल्ली और ढाका ने अपनी साझा सीमाओं पर उग्रवाद और आतंकवाद से निपटने के लिए एक रणनीतिक उपाय के तौर पर एक प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किए थे। तीन साल बाद, 2016 में दोनों देशों द्वारा वांछित भगोड़ों के आदान-प्रदान को आसान बनाने के लिए संधि में संशोधन किया गया। हालांकि, संधि के तहत प्रत्यर्पण के लिए एक सबसे अहम शर्त दोहरी आपराधिकता का सिद्धांत है, जिसका मतलब है कि अपराध दोनों देशों में दंडनीय होना चाहिए। हालांकि, हसीना की दोषसिद्धि प्रत्यर्पण के लिए न्यूनतम शर्त को पूरा करती है, लेकिन भारत के पास इस आधार पर प्रत्यर्पण से इनकार करने की गुंजाइश है कि उनके खिलाफ आरोप भारत के घरेलू कानून के दायरे में नहीं आते।
प्रत्यर्पण संधि के आर्टिकल 6-7 में क्या?
प्रत्यर्पण संधि के आर्टिकल 6 में इस बात का प्रावधान है कि अगर अपराध पॉलिटिकल नेचर का है तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है। हालांकि, संधि में यह भी स्पष्ट किया गया है कि हत्या, आतंकवाद, अपहरण जैसे गंभीर अपराध, या बहुपक्षीय अपराध-विरोधी संधियों के तहत अपराधों को राजनीति के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। प्रत्यर्पण से इनकार का एक और आधार आर्टिकल 7 में स्पष्ट है। इसमें कहा गया है कि यदि भारत अभियुक्त पर मुकदमा चला सकता है तो प्रत्यर्पण से इनकार किया जा सकता है।
क्या कहता है प्रत्यर्पण संधि का आर्टिकल 8
इसके अलावा, प्रत्यर्पण संधि के आर्टिकल 8 में कहा गया है कि यदि अभियुक्त यह साबित कर सके कि यह कदम "अन्यायपूर्ण या दमनकारी" था, तो प्रत्यर्पण अनुरोध से इनकार किया जा सकता है। इस धारा के तहत, भारत हसीना के प्रत्यर्पण को इस आधार पर इनकार कर सकता है कि उनके खिलाफ आरोप अच्छी भावना के साथ नहीं लगाए गए हैं, बल्कि उन्हें राजनीतिक उत्पीड़न का शिकार बनाने के मकसद से ऐसा किया गया है।
भारत का प्रत्यर्पण अधिनियम
प्रत्यर्पण अधिनियम 1962, भारत सरकार को परिस्थितियों के आधार पर प्रत्यर्पण से इनकार करने, कार्यवाही पर रोक लगाने या वांछित व्यक्ति को बरी करने का अधिकार भी देता है। अधिनियम की धारा 29 में साफ कहा गया है कि भारत किसी प्रत्यर्पण अनुरोध को अस्वीकार कर सकता है, यदि वह किसी दुर्भावना से किया गया है, यदि वह राजनीति से प्रेरित है या फिर प्रत्यर्पण न्याय के हित में नहीं है। यह कानून केंद्र को किसी भी समय कार्यवाही पर रोक लगाने, वारंट रद्द करने या वांछित व्यक्ति को बरी करने का भी अधिकार देता है।
बांग्लादेश की ICT के फैसले पर ही क्यों उठ रहे सवाल?
शेख हसीना को मौत की सजा सुनाने वाले इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्युनल की वैधता को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। इसे 2010 में खुद शेख हसीना ने ही बनाया था। ट्रिब्यूनल के जजों पर आरोप लग रहा है कि वो अंतरिम सरकार के दबाव में आकर दुर्भावनापूर्ण काम कर रहे हैं। इसके अलावा ट्रायल के दौरान शेख हसीना को अपना पक्ष रखने के लिए वकील तक नहीं दिया गया। ICT के फैसले को लेकर संयुक्त राष्ट्र ने भी चिंता जताई है। ऐसे में बांग्लादेश भले ही हसीना को प्रत्यर्पित करने के लिए दबाव बनाए, लेकिन इस पर अंतिम फैसला भारत ही करेगा।
