सार

यूनाइटेड किंगडम में मतदाताओं ने 14 साल बाद कंजरवेटिव पार्टी को सत्ता से बेदखल कर दिया है। महंगाई, स्वास्थ्य सहित कई मूलभूत मुद्दों पर विफल टोरीज़ को जनता ने नकारते हुए लेबर पार्टी को प्रचंड बहुमत से जीत दिलायी है।

Labour Party returns with landslide victory: यूनाइटेड किंगडम में मतदाताओं ने 14 साल बाद कंजरवेटिव पार्टी को सत्ता से बेदखल कर दिया है। महंगाई, स्वास्थ्य सहित कई मूलभूत मुद्दों पर विफल टोरीज़ को जनता ने नकारते हुए लेबर पार्टी को प्रचंड बहुमत से जीत दिलायी है। हाउस ऑफ कामन्स में प्रचंड बहुमत के साथ आई लेबर पार्टी के नेता किएर स्टार्मर को किंग चार्ल्स ने पीएम नियुक्त कर दिया है। यह नियुक्ति निवर्तमान प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के इस्तीफा के बाद हुई है। सुनक की कंजरवेटिव पार्टी का इस सदी का सबसे खराब प्रदर्शन रहा है। जीत के बाद उत्साहित समर्थकों को संबोधित करते हुए किएर स्टार्मर ने कहा कि यूके को अपना भविष्य वापस मिल गया है।

कंजरवेटिव पार्टी का चुनाव में इस सदी का सबसे खराब प्रदर्शन यह माना जा रहा है। टोरीज़ के खराब प्रदर्शन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पार्टी 14 वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद, वेल्स और स्कॉटलैंड में हार गई। जनता के गुस्से का पैमाना यह कि पूर्व पीएम लिज़ ट्रस सहित कंजरवेटिव के कई बड़े नेताओं को हार का सामना करना पड़ा। कंजरवेटिव पार्टी ऐसी सीटें हारी है जो एक सदी से उनके पास थे। पार्टी ने शायर काउंटियों में अपनी सीटें खो दी हैं। लेबर पार्टी के जो मॉरिस ने टोरी के गाई ओपरमैन को हैक्सहैम सीट पर हराया। यह सीट टोरी के पास 100 साल से थी।

क्या है इंग्लैंड में कंजरवेटिव पार्टी के हार की वजह?

2010 से सत्ता पर काबिज कंजरवेटिव पार्टी की खराब नीतियां की उनके हार का कारण बनी। 14 सालों में पांच प्रधानमंत्री बदलना, फिर भी देश की स्थितियां न सुधरने का खामियाजा जनता लगातार चुका रही थी। यूके में आमजन के पास आजीविका का संकट लगातार बढ़ रहा था। नेशनल हेल्थ सर्विस बदहाल होती जा रही थी। अर्थव्यवस्था अपने खराब हालत में पहुंची चुकी थी। इसी में बढ़ती इमिग्रेशन समस्याएं, इंफ्रास्ट्राक्चर का लगातार ध्वस्त होना, मूलभूत आवश्यकताओं के लिए परेशान होना, पार्टी के लिए भारी पड़ गया। हालांकि, हार की आशंकाओं में घिरी कंजरवेटिव पार्टी के नेता व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने छह महीना पहले ही चुनाव करा दिया ताकि लोगों का गुस्सा और न बढ़े और उनकी पार्टी को नुकसान कम हो। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

दरअसल, एनएचएस या राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा की खस्ताहाल स्थिति ने लोगों के गुस्से को और बढ़ाने में मदद की। खस्ताहाल अर्थव्यवस्था की वजह से महंगाई तो बेतहाशा बढ़ ही रही थी, स्वास्थ्य सेवाओं पर भी असर दिखने लगा था। जून में आईपीएसओएस इश्यूज़ इंडेक्स द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में कहा गया कि एनएचएस के लिए फंडिंग में कटौती हो सकती है। एनएचएस, फ्री पब्लिक हेल्थ सर्विस स्कीम है। कई लोग एनएचएस को ब्रिटिश सरकार की सार्वजनिक सेवाओं में सर्वोच्च मानते हैं। 2010 से जब कंजरवेटिव सत्ता में आई तो राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा का बजट आवंटन हर साल 2.8 प्रतिशत बढ़ाया गया। जबकि पिछले 50 वर्षों में यह 3.6 प्रतिशत रहा था। स्वास्थ्य व्यवस्था की खराब होती स्थित का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता कि अप्रैल में अनुमानित 7.6 मिलियन लोग एनएचएस योजना के तहत उपचार के लिए वेटिंग लिस्ट में थे। इसमें पचास हजार ऐसे मरीज थे जिनकी वेटिंग एक साल से अधिक समय से चल रही थी। कम से कम 14 सप्ताह यानी साढ़े तीन महीना की वेटिंग इलाज के लिए ब्रिटेन में थी। एनएचएस के आंकड़ों के अनुसार, कंजर्वेटिव शासन में गंभीर स्थितियों वाले लोगों सहित चिकित्सा सहायता की प्रतीक्षा कर रहे लोगों की संख्या तीन गुना हो गई थी।

कंजरवेटिव सरकार ने सभी फ्रंट्स पर खराब प्रदर्शन किया

ऋषि सुनक के माथे पर हर फ्रंट पर खराब प्रदर्शन का ठीकरा फूटा। 19वीं शताब्दी की शुरुआत के बाद से देश की सबसे कम विकास दर इस बार रही। यही नहीं, 41 वर्षों में सबसे अधिक जीवन-यापन की लागत में वृद्धि शामिल है। यानी दो वक्त की रोटी और जरूरी आवश्यकताओं के लिए सबसे महंगी कीमत चुकाना पड़ रहा है। पिछले एक दशक में ब्रिटिश अर्थव्यवस्था में काफी गिरावट आई है। 2007 से 2023 तक प्रति व्यक्ति जीडीपी में केवल 4.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। पिछले 16 वर्षों में यह आंकड़ा 46 प्रतिशत था। विशेषज्ञों की मानें तो आय स्थिर हो गई और सामान व अन्य सुविधाएं महंगी होती चली जा रहीं। सेंटर्स फॉर सिटीज रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट की मानें तो 1998-2010 की वृद्धि दर की तुलना में, 2010 और 2022 के बीच ब्रिटेन के लोगों के पास औसतन 10,200 पाउंड से कम बचत करने या खर्च करने के लिए थे। यूके का राष्ट्रीय ऋण 2.7 ट्रिलियन पाउंड हो चुका है जोकि 1960 के दशक के बाद से किसी भी तरीके से अधिक है।

इन मुद्दों के अलावा आव्रजन, मूल्य वृद्धि, आवास और स्कूल, डिफेंस एंड एंटी-टेररिज्म, बढ़ते अपराध भी प्रमुख मुद्दे थे।

केवल सुनक ही नहीं पूर्व के नेताओं की यह सम्मिलित हार

कंजरवेटिव पार्टी की यह भारी शिकस्त केवल ऋषि सुनक की विफलता नहीं बल्कि पूर्व के प्रधानमंत्रियों के नीतियों की संयुक्त विफलता है। कोविड महामारी के कुछ समय पहले जुलाई 2019 में बोरिस जॉनसन को टोरीज़ नेता चुना गया था। यानी वह प्रधानमंत्री बने थे। लेकिन उनके नेतृत्व में पार्टी में ही असंतोष पनपा और विद्रोह शुरू हो गया। बोरिस जॉनसन की कोविड प्रोटोकॉल के दौरान पार्टीगेट कांड भी सबसे चर्चित रही। प्रोटोकॉल तोड़कर उनका पार्टी करना आलोचना का केंद्र बना। इसके बाद जॉनसन ने इस्तीफा दे दिया था।

जॉनसन के बाद लिज़ ट्रस ने प्रधानमंत्री के रूप में मोर्चा संभाला लेकिन उनकी आर्थिक नीतियों ने देश को और बदहाली की ओर धकेल दिया। इस बार चुनाव में हारने वाली लिज़ ट्रस, देश की चौथी महिला प्रधानमंत्री थीं। पीएम बनने के बाद उनका मिनी बजट खासा विवादों में रहा। विवाद बढ़ा तो नीति पर यू-टर्न और सांसदों के बीच विश्वास की कमी ने उनके नेतृत्व को और कमज़ोर कर दिया। इसके बाद उनको इस्तीफा देना पड़ा और ऋषि सुनक की ताजपोशी हुई। लेकिन वह भी सभी मोर्चों पर विफल साबित हुए।

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