जमशेदजी नौसेरवानजी टाटा को भारतीय उद्योग का जनक कहा जाता है। उन्होंने भारत में उद्योग लगाने की शुरूआत की और बहुत ही जल्द एक बड़ा व्यापारिक साम्राज्य भी स्थापित कर लिया। जमशेद जी को पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का भी प्रिय माना जाता है।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य एक ऐसा ऐतिहासिक केस हुआ, जिसे लोग अब भी याद करते हैं। संत केशवानंद भारती ही इस केस के याचिकाकर्ता थे। इस फैसले के बाद से उन्हें 'संविधान का रक्षक' कहा जाने लगा।
भारत में श्वेत क्रांति के जनक डॉ. वर्गिज कुरियन थे। आजादी के बाद से उन्होंने दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में कई पहल किए। उन्होंने ही देश में अमूल की स्थापना की थी। उन्हें मिल्क मैन ऑफ इंडिया भी कहा जाता था।
भारतीय स्वतंत्रता (Indian Freedom Movement) के आंदोलन में अखबारों ने जनजागरण फैलाने का बड़ा काम किया था। कई अखबार तो ऐसे थे, जिन्होंने अंग्रेजी नीतियों के खिलाफ जमकर लिखा और पूरे देश में अंग्रेजों की खिलाफ अभियान चलाया।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन (Indian Freedom Movement) के दौरान अशफाकउल्ला खान (Ashfaqulla Khan) ऐसे क्रांतिकारी थे, जिनसे अंग्रेज भी खौफ खाते थे। अशफाकउल्ला खान ने सरदार भगत सिंह के साथ मिलकर हिंदुस्ता सोशलिस्ट एसोसिएशन की नींव रखी थी।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोल के दौरान कई क्रांतिकारी ऐसे रहे हैं, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बड़ी लड़ाईयां लड़ी हैं। इन्हीं में से एक थे कर्नाटक केसरी के नाम से मशहूर गंगाधर राव देशपांडे जिन्होंने अंग्रेजी कानून तोड़ने का बीड़ा उठाया था।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में न सिर्फ क्रांतिकारियों, महिलाओं और आम जनता ने भाग लिया बल्कि बड़े पैमाने पर साधु-संतों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था। उन्हीं में से एक सन्यासियों और फकीरों का विद्रोह जो भारत में हिंदू-मुस्लिम एकता का भी उदाहरण हैं।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन (Indian Freedom Movement) में देश की वीर महिलाओं ने भी अपने प्राणों की आहुति दी है। कई रानियां भी ऐसी रहीं जिन्होंने ब्रिटिश सेना को घुटनों के बल ला दिया था। इन्हीं में से एक हैं रानी वेलू नचियर।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला ने बड़ी भूमिका निभाई थी। बिरला ऐसे उद्योगपति थे, जिन्होंने राष्ट्र के लिए तन, मन और धन न्योछावर कर दिए। घनश्याम दास बिरला भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के पोषक की भूमिका में रहे।
देश की आजादी के लिए बलिदान देने वाले स्वतंत्रता सेनानियों में शहीद भगत सिंह का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। अंग्रेज अधिकारी उनसे खौफ खाते थे। इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु 23 मार्च 1931 को फांसी पर चढ़ गए थे।