पंजाब में ज्यादा बार आमने-सामने की टक्कर होती रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की उपस्थिति से मुकाबला त्रिकोणीय हुआ। यह पहला मौका है, जब मुकाबला चार कोणीय और कुछ जगह तो पांच कोणीय होने जा रहा है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे चरण का चुनाव लड़ चुके प्रत्याशियों को भाजपा, सपा और कांग्रेस ने अब अगले चरण के चुनाव में लगा दिया है। उन सभी उम्मीदवारों को जातीय समीकरण साधने की जिम्मेदारी दी गई है।
उत्तर प्रदेश के चुनावों (Uttar Pradesh Elections) में जातीय समीकरणों को साधते हुए ही राजनीतिक दल टिकटों का बंटवारा करते हैं। इस बार भी कुछ हद तक ऐसा ही प्रयास किया गया है। यहीं नहीं कई सीटों पर जिनको टिकट की आस थी और उन्हें टिकट नहीं मिल पाया वो बागी हो गए हैं। ऐसी ही एक सीट है बाराबंकी की दरियाबाद विधानसभा क्षेत्र। जहां से हड़हा स्टेट के राजा राजीव सिंह 26 साल तक लगातार विधायक रहे। सपा सरकार में वो मंत्री भी रहे लेकिन 2017 की मोदी लहर में वो हार गए और भाजपा से युवा नेता सतीश चंद्र शर्मा विधायक बने थे।
बीजेपी की सहयोगी रहने के बाद अब एसपी के साथ आई ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) अपने समुदाय के मतों का एक बड़ा हिस्सा खींच सकती है, वहीं मौर्य-कुशवाहा मतदाताओं का वर्ग 2014 से हर चुनाव में सत्ताधारी पार्टी को मजबूत समर्थन देने के बावजूद उसकी ओर पर्याप्त ध्यान न दिए जाने की शिकायत कर रहा है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा 2022 को नजर में रखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने विपक्षियों पर डिजिटल रूम के जरिए वार कर रहा है। बीजेपी इस चुनाव में डिजिटल प्लेटफॉर्म का बख़ूबी प्रयोग कर रही है। जिसका फीडबैक सप्ताह में दो बार लिया जाता है।
राजनीति की नर्सरी कहे जाने वाले कालेज के छात्र संघ चुनाव में पदाधिकारी बनकर फिर राजनीति की मुख्य धारा में शामिल होकर उसका दांव -पेंच सीखने वाले कई पूर्व पदाधिकारी आज सियासत की मुख्यधारा में स्थापित चेहरे हैं।
बीते कुछ समय में उत्तर प्रदेश में राजनीतिक समीकरण बदलते दिखे हैं। ऐसे में आसान नहीं है बीजेपी के लिए अपनी जमीन बचाए रखना। वहीं, सपा गठबंधन भी भाजपा के सामने नई चुनौतियां खड़ा कर रहा है। इसके अलावा, कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले अमेठी और रायबरेली में भी कांग्रेस की लड़ाई चुनौतीपूर्ण है।
यूपी विधानसभा चुनाव में कानपुर-बुंदेलखंड की 52 विधानसभा सीटों पर चुनाव संपन्न हो चुके हैं। प्रदेश की सभी राजनीतिक पार्टियां कानपुर-बुंदेलखंड की 52 सीटों पर अपना-अपना दावा कर रही हैं। जबकि कानपुर-बुंदेलखंड बीजेपी का सबसे मजबूत किला है। यदि यूपी चुनाव 2022 की बात की जाए तो, कानपुर-बुंदेलखंड में बीजेपी की पकड़ कुछ ढीली पड़ी है।
कांग्रेस पार्टी के हाइलेवल सूत्रों के मुताबिक, पंजाब में इस बार के चुनाव में कांग्रेस को 40 सीटों का आंकड़े पार नहीं कर पाने की आशंका है। हालांकि, इन नेताओं की राय पर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व सहमत नहीं है।
कौशांबी जनपद की सिराथू सीट लगातार चर्चाओं में बनी हुई है। समाजवादी पार्टी की ओर से डिंपल यादव और जया बच्चन भी यहां से चुनाव प्रचार करेंगी। अखिलेश यादव ने इस सीट को चुनौती मानते हुए पूरी ताकत झोंक दी है। इसी के साथ यह सीट उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के उम्मीदवार होने के बाद बीजेपी के लिए भी प्रतिष्ठा का सवाल बनी हुई है।