सार
हरिद्वार में होने वाले कुंभ मेले से पहले अखाड़ों की पेशवाई शुरू हो चुकी है। बुधवार को निरंजनी अखाड़े की भव्य पेशवाई निकली, जिसे देख लोग अभिभूत हो गए।
उज्जैन. कोविड-19 महामारी के प्रसार को रोकने के लिए इस बार कुंभ की अवधि को छोटा किया जा रहा है। कुंभ में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को हरिद्वार आगमन की तिथि से 72 घंटे पूर्व तक की आरटीपीसीआर की कोविड-19 निगेटिव रिपोर्ट लाना अनिवार्य होगा । इसके अलावा, अन्य राज्यों से आने वाले श्रद्धालुओं को आश्रम या धर्मशाला में प्रवेश के दौरान अपने मूल राज्य, जिला या तहसील के स्वास्थ्य केंद्र द्वारा निर्धारित प्रारूप में जारी कोरोना वायरस फिटनेस प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होगा।
इस बार 11 मार्च को महाशिवरात्रि है। इसी दिन से हरिद्वार में कुंभ मेले की शुरूआत होगी और पहला शाही स्नान भी होगा। ये धार्मिक मेला डेढ़ महीने से ज्यादा दिनों तक रहेगा। इस दौरान 4 शाही स्नान होंगे।
- पहला शाही स्नान 11 मार्च को महाशिवरात्रि पर होगा।
- दूसरा शाही स्नान 12 अप्रैल को सोमवती अमावस्या पर।
- तीसरा 14 अप्रैल को मेष संक्रांति पर।
- अंतिम शाही स्नान 27 अप्रैल चैत्र पूर्णिमा को होगा।
क्यों होता है कुंभ?
कुंभ मेले की मान्यता समुद्र मंथन से जुड़ी है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, जब देवताओं और दानवों ने समुद्र मंथन किया तो उसमें से अमृत के साथ ही विष भी निकला। सृष्टि के भले के लिए भगवान शिव ने विष पी लिया, लेकिन अमृत के लिए देवताओं और दानवों के बीच संघर्ष शुरू हो गया। समुद्र से अमृत कलश लेकर निकले धन्वंतरि उसे लेकर आकाश मार्ग से भागे, ताकि दानव उनसे अमृत कलश ना छीन पाएं।
इस दौरान प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में अमृत की बूंदें पृथ्वी पर गिरीं। जिन चार जगहों पर अमृत की बूंदें गिरीं, वहां कुंभ का आयोजन होता है। देवताओं और दानवों के बीच ये संघर्ष 12 दिन तक चला था। ऐसी मान्यता है कि देवताओं का एक दिन पृथ्वीवासियों के 1 साल के बराबर होता है। इसलिए हर 12 साल पर कुंभ मेला लगता है।
कब-कहां और किस स्थिति में होता है कुंभ?
हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और प्रयागराज के संगम तट पर कुंभ मेला लगता है। चारों जगह 12 साल में एक बार ये मेला लगता है। मेला कब लगेगा, ये ज्योतिष की गणना से तय होता है।
1. हरिद्वार में यह मेला तब आयोजित होता है, जब सूर्य मेष राशि में और गुरु कुंभ राशि में होता है।
2. इलाहाबाद (प्रयाग) में यह मेला तब आयोजित होता है, जब सूर्य मकर राशि में और गुरु वृष राशि में होता है।
3. नासिक में तब आयोजित होता है, जब गुरु सिंह राशि में प्रवेश करता है। इसके अलावा जब अमावस्या पर कर्क राशि में सूर्य और चन्द्रमा प्रवेश करते हैं, उस समय नासिक में सिंहस्थ का आयोजन होता है।
4. उज्जैन में मेष राशि में सूर्य और सिंह राशि में गुरु के आने पर सिंहस्थ का आयोजन किया जाता है। उज्जैन और नासिक के मेले के समय गुरु सिंह राशि में होता है, इसलिए इस मेले को सिंहस्थ कहा जाता है।
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