सार

हिंदू धर्म में अनेक त्योहार मनाए जाते हैं और इन त्योहारों से जुड़ी कई परंपराएं भी होती हैं। इन परंपराओं के पीछे धार्मिक, वैज्ञानिक या मनोवैज्ञानिक तथ्य जरूर छिपे होते हैं। ऐसी ही कुछ परंपराएं मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2022) पर्व पर भी निभाई जाती हैं। ये त्योहार हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है।

उज्जैन. भारत के अलग-अलग हिस्सों में मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2022) का पर्व विभिन्न नामों से सेलिब्रेट किया जाता है। इस दिन दाल-चावल से बनी खिचड़ी खास तौर पर खाई जाती है, साथ ही इसका दान भी किया जाता है। ये परंपरा सालों से निभाई जा रही है। इस परंपरा से पिछे मनोवैज्ञानिक के साथ-साथ वैज्ञानिक पक्ष भी छिपे हैं। कई धर्म ग्रंथों में भगवान को खिचड़ी का भोग लगाने का वर्णन मिलता है। आज हम आपको इसी के बारे में बता रहे हैं…

खिचड़ी खाने का वैज्ञानिक पक्ष
मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने के पीछे गहन वैज्ञानिक तथ्य छिपे हैं। आयुर्वेद के अनुसार, चावल की तासीर ठंडी होती है और दाल की गर्म। जब इन दोनों के साथ सब्जियां, घी आदि चीजें मिलाई जाती हैं तो ये सेहत के लिए बहुत फायदेमंद हो जाती है और मौसमी बीमारियों से भी बचाती है। मकर संक्रांति के समय ठंड अधिक होती है, इस समय खिचड़ी खाना शरीर को फायदा पहुंचाता है। इसलिए खिचड़ी का दान भी गरीब लोगों को किया जाता है। ताकि वे भी सेहतमंद बने रहें।

खिचड़ी खाने का मनोवैज्ञानिक पक्ष
मकर संक्रांति के आस-पास यूपी बिहार में फसलें कटती हैं और लोगों के घरों में नया चावल पहुंचता है। उस समय नए चावल में सब्जी, दाल आदि मिलाकर खिचड़ी तैयार की जाती है और पहले भगवान को भोग लगाया जाता है। ये भगवान के प्रति धन्यवाद होता है। इसका एक पक्ष ये भी है कि खिचड़ी बनाते समय कई प्रकार की सब्जियां, मसाले और दाल आदि मिलाए जाते हैं इसलिए खिचड़ी सामाजिक समरसता का प्रतीक है। खिचड़ी का आदान-प्रदान करने से लोगों के रिश्तों में घनिष्ठता पैदा होती है।

उत्तर प्रदेश में मनाते हैं खिचड़ी पर्व
उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति का पर्व खिचड़ी के नाम से ही मनाया जाता है। वहां इस दिन खिचड़ी का सेवन एवं खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व माना जाता है। इस दिन सुबह नदी में स्नान कर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद घरों में खिचड़ी बनाई जाती है और दान करने के इसे ही भोजन के रूप में खाया जाता है।

 

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