सार

हिंदू धर्म में पूजा-पाठ के दौरान अनेक चीजों का उपयोग किया जाता है, तिल भी उनमें से एक है। तिल का उपयोग न केवल देव पूजा बल्कि पितृ पूजा में भी किया जाता है। शिव पुराण में तिल दान करने का महत्व मिलता है। पद्म व वायु पुराण के अनुसार, श्राद्ध कर्म में काले तिलों का उपयोग करने से पितृ प्रसन्न होते हैं।

उज्जैन. गरुड़ पुराण व बृहन्नारदीय पुराण का कहना है कि जिन पूर्वजों की मृत्यु अचानक या किसी दुर्घटना में हुई हो उनके लिए तिल और गंगाजल से तर्पण किया जाए तो मुक्ति मिलती है। माघ मास में एक के बाद एक लगातार 3 ऐसे व्रत-त्योहार आते हैं जिनमें तिल का विशेष महत्व होता है। सबसे पहले माघ मास में तिल चतुर्थी आती है, इसे सकटा और संकष्टी गणेश चौथ भी कहते हैं। इस दिन व्रत रखकर लोग भगवान गणेश को तिल का नैवेद्य लगाकर पूजा-अर्चना करते हैं। इसके बाद षट्तिला एकादशी और तिल द्वादशी व्रत आता है। इन तीनों ही व्रतों में तिल का विशेष महत्व रहता है। आगे जानिए इन व्रत-उत्सवों के बारे में…

तिल चतुर्थी (21 जनवरी, शुक्रवार) (Til Chaturthi 2022)
इस दिन भगवान गणेश की विशेष पूजा और व्रत रखा जाता है। पूजा में गणेश जी को तिल के लड्डू और तिल से बनी अन्य चीजों का नैवेद्य खासतौर से लगाया जाता है। मान्यता है कि इस तिल चतुर्थी के व्रत से हर तरह की परेशानियां दूर हो जाती हैं। इसलिए इसे संकटा तिल चौथ कहा गया है।

षट्तिला एकादशी (28 जनवरी, शुक्रवार) (Shatila Ekadashi 2022)
पद्म पुराण के मुताबिक इस एकादशी पर तिल का 6 तरह से उपयोग करना चाहिए। इनमें तिल का उबटन, तिल से नहाना, भगवान को तिल का नैवेद्य लगाना, तिल खाना, तिल से हवन और तिल का दान करना चाहिए। इसलिए इसे षट्तिला एकादशी कहते हैं।

तिल द्वादशी (29 जनवरी, शनिवार) (Til Dwadashi 2022)
माघ महीने की द्वादशी तिथि पर भगवान विष्णु की विशेष पूजा करने का विधान नारद और पद्म पुराण में बताया गया है। इस दिन तिल मिले पानी से भगवान विष्णु का अभिषेक और पूजा कर के तिल से बनी मीठाइयों का भोग लगाया जाता है। इसलिए इसे तिल द्वादशी कहते हैं। इस व्रत और पूजा से मनोकामना पूरी होती है और हर परेशानी दूर होती है।

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