सार

हमारे धर्म ग्रंथों में भी सूर्य को प्रधान देवता माना गया है। पुराणों के अनुसार, प्रत्येक माह में सूर्य के एक विशिष्ट रूप की पूजा की जाती है, जिससे हर मनोकामना पूरी होती है।

उज्जैन. सूर्य सौर मंडल का आधार है। हमारे धर्म ग्रंथों में भी सूर्य को प्रधान देवता माना गया है। पुराणों के अनुसार, प्रत्येक माह में सूर्य के एक विशिष्ट रूप की पूजा की जाती है, जिससे हर मनोकामना पूरी होती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, पौष मास में भग नामक सूर्य की उपासना करनी चाहिए। इस बार पौष मास का प्रारंभ 13 दिसंबर से हो चुका है, जो 10 जनवरी तक रहेगा।

पौष मास में सूर्य का महत्व
ऐसी मान्यता है कि पौष मास में भगवान भास्कर ग्यारह हजार किरणों के साथ तपकर सर्दी से राहत देते हैं। इनका वर्ण रक्त के समान है। शास्त्रों में ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य को ही भग कहा गया है और इनसे युक्त को ही भगवान माना गया है। यही कारण है कि पौष मास का भग नामक सूर्य साक्षात परब्रह्म का ही स्वरूप माना गया है। पौष मास में सूर्य को अर्घ्य देने तथा उसके निमित्त व्रत करने का भी विशेष महत्व धर्म शास्त्रों में लिखा है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. प्रफुल्ल भट्ट के अनुसार, इस महीने में रोज सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए और अर्घ्य देते समय नीचे लिखे मंत्र का जाप करना चाहिए। इससे सूर्य दोष भी कम होता है।

मंत्र: ऊँ घृणि सूर्याय नम:

इस विधि से दें सूर्यदेव को अर्घ्य और करें मंत्र का जाप...
1. पौष मास में रोज सुबह स्नान आदि करने के बाद तांबे के लोटे में शुद्ध जल लेकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
2. तांबे के लोटे में कुंकुम और लाल फूल भी डालें।
3. अर्घ्य देते समय मन ही मन मंत्र का जाप करते रहें।
4. अगर रोज ऐसा न कर पाएं तो पौष मास के रविवार को ये उपाय करें।
5. इस तरह जल चढ़ाने और मंत्र जाप करने से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं।