सार

Mahabharata: महाभारत में अनेक पराक्रमी योद्धाओं का वर्णन है, इनमें से कई योद्धाओं के पास देवताओं का वरदान भी था। ऐसा ही एक योद्धा था जयद्रथ। यही वो योद्धा था, जिसके कारण चक्रव्यूह में फंसकर अभिमन्यु की मृत्यु हुई।
 

उज्जैन. महर्षि वेदव्यास ने महाभारत (Mahabharata) में कई ऐसी घटनाओं व योद्धाओं का वर्णन किया है, जिन पर यकीन पर पाना मुश्किल होता है। जयद्रथ (Jayadratha) भी इन योद्धाओं में से एक है। जयद्रथ कौरवों का जमाई था, क्योंकि उसका विवाह दुर्योधन की बहन दु:शला से हुआ था। महाभारत युद्ध के दौरान उसकी मृत्यु अर्जुन के हाथों हुई थी। जयद्रथ की मृत्यु की कथा भी बहुत रोचक है क्योंकि उसके वरदान था कि जो भी उसका मस्तक काटकर भूमि पर गिराएगा, उसकी भी मृत्यु उसी क्षण हो जाएगी। आगे जानिए कैसे अर्जुन ने किया जयद्रथ का वध…

जब जयद्रथ ने किया द्रौपदी का हरण
महाभारत के अनुसार, जयद्रथ सिंधु देश का राजा था। जब पांडव (Pandavas) वनवास पर थे, तब एक दिन राजा जयद्रथ उनके निवास पर पहुंचा और द्रौपदी (Draupadi) को अकेला देखकर उसका हरण कर लिया। पांडवों को जब ये बात पता चली तो उन्होंने पीछाकर उसे पकड़ लिया और द्रौपदी को मुक्त करा लिया। जमाई होने के नाते पांडवों ने जयद्रथ का वध तो नहीं किया, लेकिन उसका सिर मूंडकर पांच चोटियां रख दी। बाद में युधिष्ठिर ने उसे मुक्त कर दिया।

बदला लेने के लिए जयद्रथ ने की तपस्या
जब पांडवों ने जयद्रथ का सिर मूंड दिया तो वह बदले की आग में जलने लगा। वह अपने राज्य न जाकर हरिद्वार पहुंच गया। यहां उसने भगवान शिव की घोर तपस्या की और वरदान प्राप्त किया कि युद्ध के दौरान वह सिर्फ एक बार अर्जुन को छोड़कर अन्य सभी पांडवों को युद्ध में पीछे हटा सकता है। वरदान पाकर जयद्रथ बहुत खुश हुआ और अपने राज्य लौट आया।

इसलिए मारा गया अभिमन्यु 
जब गुरु द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की तो उसके मुख्य द्वार पर जयद्रथ को नियुक्त किया। इस चक्रव्यूह को तोड़ना या तो अर्जुन जानते था या अभिमन्यु। लेकिन अर्जुन युद्ध में काफी दूर जा चुके थे, ऐसी स्थिति में अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में घुसने का फैसला किया और उसके पीछे भीम और अन्य पांडवों ने। जैसे ही अभिमन्यु ने जयद्रथ को हराकर चक्रव्यूह में प्रवेश किया, उसके पीछे भीम आदि पांडव भी जाने लगे, लेकिन वरदान पाकर जयद्रथ ने उन सभी को चक्रव्यूह में प्रवेश करने से रोक दिया। इस तरह चक्रव्यूह में फंसकर अभिमन्यु की मृत्यु हो गई।

अर्जुन ने ली जयद्रथ वध की प्रतिज्ञा
अर्जुन को जब अभिमन्यु वध के बारे में पता चला तो उन्होंने प्रतिज्ञा की कि “ कल या तो मैं जयद्रथ का वध कर डालूंगा या स्वयं अग्नि समाधि ले लूंगा।” अर्जुन की प्रतिज्ञा के बारे में जानकर गुरु द्रोणाचार्य ने शकटव्यूह की रचना की। पूरा दिन कौरव सेना जयद्रथ को बचाने में लगी रही। जब शाम होने आई तो श्रीकृष्ण ने अपनी माया से कुछ देर के लिए सूर्य को ढंक दिया, जिससे ऐसा लगा कि सूर्यास्त हो चुका है। ये देखकर जयद्रथ स्वयं अर्जुन के सामने आ गया। तभी अंधकार छंट गया और उजाला हो गया। तभी अर्जुन ने जयद्रथ का वध दिया।

जयद्रथ को मिला था एक खास वरदान
जयद्रथ का वध करने से पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन को एक गुप्त बताई कि “जयद्रथ के पिता वृद्धक्षत्र ने उसे वरदान दिया है कि जो भी योद्धा इसका सिर पृथ्वी पर गिराएगा, उसकी मृत्यु भी उसी क्षण हो जाएगी। इसलिए तुम इस प्रकार बाण चलाओ कि जयद्रथ का मस्तक कट कर उसके पिता की गोद में गिरे। वे इस समय समंतकपंचक क्षेत्र में तपस्या कर रहे हैं।”
श्रीकृष्ण के कहे अनुसार अर्जुन ने ऐसा तीर चलाया जो जयद्रथ का मस्तक काटकर ले उड़ा और सीधे वृद्धक्षत्र की गोद में जाकर गिरा। जैसे ही उन्होंने जयद्रथ का मस्तक पृथ्वी पर गिराया, उनके मस्तक के भी सौ टुकड़े हो गए। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बचा लिया। 

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