सार

इस बार 10 जून, गुरुवार को शनि जयंती है। शनिदेव के बारे में कहा जाता है इनकी नजर जिस पर भी पड़ती है उसके बुरे दिन शुरू हो जाते हैं, साथ ही यह भी कहा जाता है कि इनकी गति बहुत मंद यानी धीमी है।

उज्जैन. इन दोनों मान्यताओं से जुड़ी कथाएं भी हमारे धर्म ग्रंथों में मिलती हैं। शनि जयंती के अवसर पर हम आपको इन कथाओं के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार है…

इसलिए है शनि की नजर अशुभ
सूर्य पुत्र शनि का विवाह चित्ररथ नामक गंधर्व की पुत्री से हुआ था, जो स्वभाव से बहुत ही उग्र थी। एक बार जब शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण की आराधना कर रहे थे, तब उनकी पत्नी ऋतु स्नान के बाद मिलन की कामना से उनके पास पहुंची।शनि भगवान भक्ति में इतने लीन थे कि उन्हें इस बात का पता ही नहीं चला। जब शनिदेव का ध्यान भंग हुआ तब तक उनकी पत्नी का ऋतुकाल समाप्त हो चुका था। इससे क्रोधित होकर शनिदेव की पत्नी ने उन्हें श्राप दे दिया कि पत्नी होने पर भी आपने मुझे कभी प्रेम की दृष्टि से नहीं देखा। अब आप जिसे भी देखेंगे, उसका कुछ न कुछ बुरा हो जायेगा। इसी कारण शनि की दृष्टि में दोष माना गया है।

इसलिए मंद है शनि की गति
पुराणों के अनुसार, भगवान शंकर ने अपने परम भक्त दधीचि मुनि के यहां पुत्र रूप में जन्म लिया। भगवान ब्रह्मा ने इनका नाम पिप्पलाद रखा, लेकिन जन्म से पहले ही इनके पिता दधीचि मुनि की मृत्यु हो गई। युवा होने पर जब पिप्पलाद ने देवताओं से अपने पिता की मृत्यु का कारण पूछा तो उन्होंने शनिदेव की कुदृष्टि को इसका कारण बताया। पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए और उन्होंने शनिदेव के ऊपर अपने ब्रह्म दंड का प्रहार किया। शनिदेव ब्रह्म दंड का प्रहार नहीं सह सकते थे इसलिए वे उससे डर कर भागने लगे। तीनों लोकों की परिक्रमा करने के बाद भी ब्रह्म दंड ने शनिदेव का पीछा नहीं छोड़ा और उनके पैर पर आकर लगा। ब्रह्म दंड पैर पर लगने से शनिदेव लंगड़े हो गए, तब देवताओं ने पिप्पलाद मुनि से शनिदेव को क्षमा करने के लिए कहा। देवताओं ने कहा कि शनिदेव तो न्यायाधीश हैं और वे तो अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। देवताओं के आग्रह पर पिप्पलाद मुनि से शनिदेव को क्षमा कर दिया और वचन लिया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक के शिवभक्तों को कष्ट नहीं देंगे यदि ऐसा हुआ तो शनिदेव भस्म हो जाएंगे। तभी से पिप्पलाद मुनि का स्मरण करने मात्र से शनि की पीड़ा दूर हो जाती है।

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