सार

Shraddha Paksha 2022: धर्म ग्रंथों के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा पितृलोक में निवास करती है। पितृलोक में निवास करते हुए पूर्वजों की आत्मा अपने वंशजों से ये आशा रखती है कि श्राद्ध के दिनों में वे उनके लिए तर्पण, पिंडदान आदि करेंगे।
 

उज्जैन. हिंदू धर्म में पितरों को भी देवता के रूप में पूजा जाता है। पितृ यानी हमारे मृत पूर्वज। धर्म ग्रंथों के अनुसार, पितृ हमेशा अपने वंशजों से श्राद्ध और पिंडदान की आशा करते हैं। इसके लिए वे श्राद्ध पक्ष (Shraddha Paksha 2022) के दौरान धरती पर आते हैं। इस बार श्राद्ध पक्ष 10 से 15 सितंबर तक रहेगा। श्राद्ध की पंरपरा कैसे शुरू हुई, इस संबंध में महाभारत के अनुशासन पर्व में एक कथा मिलती है, जो भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। आज हम आपको श्राद्ध से जुड़ी इस रोचक कथा के बारे में बता रहे हैं…

कैसे शुरू हुई श्राद्ध की परंपरा?
महाभारत के अनुसार, सबसे पहले श्राद्ध का उपदेश राजा निमि को महातपस्वी अत्रि मुनि ने दिया था। इस प्रकार सबसे पहले राजा निमि ने श्राद्ध का आरंभ किया। राजा निमि जब संन्यासी हो गए, तब भी वे नियम पूर्वक श्राद्ध करते थे। उन्हें देखकर अन्य ऋषि-मुनि भी श्राद्ध करने लगे। धीरे-धीरे चारों वर्णों के लोग श्राद्ध में पितरों को अन्न देने लगे। 

जब पितरों को हो गया रोग
महाभारत के अनुसार, लगातार श्राद्ध का भोजन करते-करते देवता और पितर पूर्ण तृप्त हो गए। श्राद्ध का भोजन लगातार करने से पितरों को अजीर्ण (भोजन न पचना) रोग हो गया और इससे उन्हें कष्ट होने लगा। तब वे ब्रह्माजी के पास गए और उनसे कहा कि “श्राद्ध का अन्न खाते-खाते हमें अजीर्ण रोग हो गया है, इससे हमें कष्ट हो रहा है, आप हमारा कल्याण कीजिए। ऐसा कुछ उपाय कीजिए कि महें इस रोग से मुक्ति मिल जाए।”

अग्निदेव ने की पितरों की परेशानी दूर
पितरों की बात सुनकर ब्रह्माजी बोले “मेरे निकट ये अग्निदेव बैठे हैं, ये ही आपकी परेशानी दूर करेंगे। अग्निदेव ने कहा“ पितरों, अब से श्राद्ध में हम लोग साथ ही भोजन किया करेंगे। मेरे साथ रहने से आप लोगों का अजीर्ण रोग दूर हो जाएगा।” यह सुनकर पितर प्रसन्न हुए। इसलिए श्राद्ध में सबसे पहले अग्नि का भाग दिया जाता है। ये परंपरा तभी से चली आ रही है।

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