Ganesh Utsav 2021: इंडोनेशिया में सुलगते ज्वालामुखी के मुहाने पर 700 सालों से स्थित है ये गणेश प्रतिमा

इस बार 10 दिवसीय गणेशोत्सव (Ganesh Utsav 2021) 10 सितंबर, शुक्रवार से शुरू हो चुका है। देश भर में गणेश उत्सव की धूम है और जगह-जगह विघ्नहर्ता को विराजमान किया गया है। जहां एक ओर अलग-अलग गणेश पंडालों में मूर्तियों को स्थापित करने की मान्यता है, वहीं प्रसिद्ध गणेश मंदिरों में दर्शन करने का भी अपना अलग महत्व है।

Asianet News Hindi | Published : Sep 11, 2021 4:37 AM IST / Updated: Sep 11 2021, 11:38 AM IST

उज्जैन. भारत ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भगवान श्रीगणेश के कई प्रसिद्ध स्थान है।  ऐसा ही एक चमत्कारीक स्थान है इंडोनेशिया में, यहां एक ज्वालामुखी के मुहाने पर भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा के दर्शन के लिए हजारों लोग रोज यहां आते हैं। मान्यता है कि भगवान श्रीगणेश ही यहां के लोगों की रक्षा करते हैं।

700 साल से स्थापित हैं ये गणेश प्रतिमा (Ganesh Utsav 2021)
इंडोनेशिया के 141 ज्वालामुखी में से 130 अभी भी सक्रिय हैं और उन्हीं में से एक है माउंट ब्रोमो। ये पूर्वी जावा प्रांत के  Bromo Tengger Semeru national park में स्थित है।  भगवान श्रीगणेश की ये प्रतिमा इंडोनिशिया के सक्रिय ज्वालामुखी माउंट ब्रोमो के मुहाने पर स्थापित है। माना जाता है कि 700 सालों से अधिक समय से ये प्रतिमा यहां स्थित है।

गणपति की पूजा नहीं होने से अनिष्ट हो सकता है
जावा की जैवनीज भाषा में ब्रह्मा को ब्रोमो कहते हैं। यूं तो माउंट ब्रोमो पर सालभर गणपति की पूजा होती है, पर मुख्य आयोजन जुलाई में 15 दिन तक चलता है। पांच सौ साल से ज्यादा पुरानी यह परंपरा याद्नया कासडा कहलाती है, जो कभी रुकी नहीं। चाहे ज्वालामुखी में भीषण विस्फोट ही क्यों न हो रहे हों। 2016 में ज्वालामुखी में विस्फोट हो रहे थे। तब भी सरकार ने सिर्फ 15 पुजारियों को पूजा की अनुमति दी थी। पर हजारों की संख्या में लोग पहुंच गए थे। लोगों का मानना है कि गणपति की पूजा नहीं होने से अनिष्ट हो सकता है।

चढ़ाई से पहले मिलेगा ब्रह्मा का मंदिर
ज्वालामुखी पर जब भगवान श्रीगणेश की पूजा करने जाते हैं तो चढ़ाई पर सबसे पहले मिलता है ब्रह्माजी का मंदिर। जो भी मूर्तियां इस जगह पर हैं चाहें वो ज्वालामुखी की चढ़ाई से ऊपर हो या फिर ज्वालामुखी के मुहाने पर रखी गणेश की मूर्ति। ये सब यहीं के पत्थरों से बनी हुई हैं। ये मूर्तियां ज्वालामुखी विस्फोट के बाद भी वैसी की वैसी ही हैं।

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