डाकुओं ने करवाया था इस मंदिर का निर्माण, यहां चांदी के प्याले में देवी को लगाते हैं शराब का भोग

हमारे देश में कई चमत्कारी देवी मंदिर हैं। इन मंदिरों से जुड़ी कई रोचक परंपराएं भी हैं। नवरात्रि (Shardiya Navratri 2021) के दिनों में यहां भक्तों की भीड़ उमड़ती है। ऐसा ही एक मंदिर राजस्थान के नागौर जिले में भंवाल नामक गांव में भी है। इसे भंवाल माता मंदिर (Bhanwal Mata Temple) के नाम से जाना जाता है।

Asianet News Hindi | / Updated: Oct 11 2021, 06:30 AM IST

उज्जैन. भंवाल माता मंदिर से जुड़ी कई किवदंतियां हैं। मान्यता है कि भंवाल माता की प्रतिमा एक पेड़ के नीचे पृथ्वी से स्वयं प्रकट हुई थी। ऐसा भी कहा जाता है कि लगभग 800 साल पहले माता ने डाकुओं की रक्षा की थी। माता के इस चमत्कार से प्रभावित होकर उन्हीं डाकुओं ने यहां मंदिर का निर्माण करवाया था।

दो प्रतिमाएं हैं विराजित
मंदिर के गर्भगृह में माता की दो मूर्तियां हैं। दाईं ओर ब्रह्माणी माता, जिन्हें मीठा प्रसाद चढ़ाते हैं। यह लड्डू या पेड़े या श्रद्धानुसार कुछ भी हो सकता है। बाएं ओर दूसरी प्रतिमा काली माता की है, जिनको शराब चढ़ाई जाती है। लाखों भक्त यहां अपनी मन्नत लेकर आते हैं। मन्नत पूरी होने पर भक्त माता को धन्यवाद देने दोबारा यहां आते हैं।

चांदी के प्याले में चढ़ाते हैं शराब
यहां स्थित काली माता की प्रतिमा को ढाई प्याला शराब का भोग लगाया जाता है। सुनने में यह थोड़ा अजीब जरूर लगता है, लेकिन यह सच है, लेकिन यह भोग हर भक्त का नहीं चढ़ाया जाता। इसके लिए भक्तों को भी आस्था की कसौटी पर परखा जाता है। यदि माता को प्रसाद चढ़ाने आए श्रद्धालु के पास बीड़ी, सिगरेट, जर्दा, तंबाकू और चमड़े का बेल्ट, चमड़े का पर्स होता है तो भक्त मदिरा का प्रसाद नहीं चढ़ा सकता। चांदी के प्याले में शराब भरकर मंदिर के पुजारी अपनी आंखें बंद कर देवी मां से प्रसाद ग्रहण करने का आग्रह करता है। कुछ ही क्षणों में प्याले से शराब गायब हो जाती है। ऐसा 3 बार किया जाता है। मान्यता है कि तीसरी बार प्याला आधा भरा रह जाता है।

कैसे पहुंचें?
यह मंदिर जोधपुर से 34 किमी की दूरी पर स्थित है। झालामण्ड चौराहा से गुडा विश्नोइया होते हुए बिरामी जाया जा सकता है। पाली से कांकाणी-गुडा विश्नोइया होकर बिरामी के भुवाल माता मंदिर पहुंचा जा सकता है। पाली से इस मंदिर की दूरी लगभग 72 किमी है।

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