महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कमजोर माना जाता है। हालांकि ऐसा नहीं है। अब एक ऐसी रिचर्स सामने आई है, जहां दावा किया है, पुरुषों के मजबूत होने में सबसे बड़ा हाथ दिमाग का होता है।
हेल्थ डेस्क। महिलाओं और पुरुषों में हमेशा से अंतर किया गया है। चाहे वह शारीरिक बनावट हो या फिर सोचने का तरीका। हालांकि अलग-अलग होने के बाद भी पुरुष-महिला को एक-दूसरे का पूरक मानता है। पुरुष और महिलाओं के बीच अंतर की कोई बहस नहीं है। दोनों के शरीर की बनावट, यहां तक सोचने का तरीका भी बिल्कुल अलग होता है। ऐसे में अब एक नई रिचर्स सामने आई है, जिसमें ये खुलासा किया गया है,जन्म के समय से ही पुरुष औ महिलाओं के दिमाग में अंतर होता है। जिस कारण वह चीजों को अलग-अलग नजरिए से देखते हैं।
कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने 500 से अधिक नवजात शिशुओं के दिमाग का स्कैन किया। इसमें पाया गया कि महिला शिशुओं के दिमाग में ग्रे मैटर ज्यादा होता है, जबकि पुरुष शिशुओं के दिमाग में सफेद पदार्थ अधिक पाया गया।
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ग्रे मैटर यह मस्तिष्क की बाहरी परत है, जो स्मृति, भावनाओं और जानकारी को प्रोसेस करने जैसे कार्यों को नियंत्रित करती है। जबकि सफेद पदार्थ यह मस्तिष्क के अंदर होता है और संचार के लिए एक हाईवे की तरह काम करता है, जिससे दिमाग के अलग-अलग हिस्से आपस में जुड़ते हैं।अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ता युमना खान के अनुसार, "जन्म के समय देखे गए ये अंतर वयस्कता तक जारी रहते हैं।
महिला शिशुओं में ग्रे मैटर ज्यादा पाया गया,जो स्मृति और भावनात्मक जागरूकता से जुड़ा होता है। जबकि पुरुष शिशुओं में प्रोसेसिंग और मोटर नियंत्रण से जुड़े क्षेत्रों में ग्रे मैटर अधिक था,जिससे शारीरिक समन्वय और जागरूकता में मदद मिलती है।शोधकर्ताओं का कहना है कि ये अंतर मस्तिष्क के विकास के दौरान जैविक कारणों से होते हैं। हालांकि, समय के साथ पर्यावरणीय कारक भी इन अंतरों को बढ़ा सकते हैं।
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कैम्ब्रिज के प्रोफेसर साइमन बैरन-कोहेन के अनुसार, "इन मतभेदों का मतलब यह नहीं है कि पुरुषों या महिलाओं का दिमाग बेहतर या खराब होता है। यह शोध हमें ऑटिज्म जैसे न्यूरोडायवर्सिटी को समझने में मदद कर सकता है।
2021 में एक अन्य शोध में यह सुझाव दिया गया था कि पुरुष और महिला दिमाग के बीच अंतर बहुत कम है और यह मुख्य रूप से मस्तिष्क के आकार पर निर्भर करता है, न कि लिंग पर।
यह अध्ययन जन्म से ही पुरुष और महिला दिमाग के बीच अंतर की पुष्टि करता है। हालांकि, यह भी समझना जरूरी है कि इन अंतरों का मतलब किसी को बेहतर या खराब साबित करना नहीं है, बल्कि यह हमारी जैविक विविधता और मानसिक स्वास्थ्य को समझने का एक प्रयास है।
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