Punjab Election 2022: पंजाब में अब भी ताकतवर हैं डेरे, जानें कितनी सीटों पर इनका प्रभाव, किस पार्टी को समर्थन?

डेरों की सियासत और सियासत में डेरों पर रिसर्च करने वाले पूर्व पत्रकार राजकुमार भारद्वाज ने बताया कि राज्य में सभी वर्गों के 12,000 से अधिक डेरे हैं। इसके अलावा, सिख धर्म से जुड़े 9000 डेरे हैं। इनमें से 300  डेरे खासे मजबूत हैं।

Asianet News Hindi | Published : Jan 16, 2022 5:17 AM IST / Updated: Jan 16 2022, 11:32 AM IST

मनोज ठाकुर, चंडीगढ़। पंजाब में विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो गई है। राज्य में पहली बार किसी मजबूत साथी के बिना उतरी भाजपा के लिए यहां के डेरे खासे महत्वूपर्ण साबित हो सकते हैं। कृषि कानून की वजह से किसानों की नाराजगी से जो सियासी नुकसान भाजपा को हो रहा है, इसकी भरपाई पार्टी डेरों के समर्थकों को साथ में जोड़ कर पूरी करने की कोशिश में हैं। इसकी तैयारी शुरू हो गई है। पार्टी के रणनीतिकार लगातार लगातार डेरों का समर्थन जुटाने की कोशिश में हैं। 

डेरों की सियासत और सियासत में डेरों पर रिसर्च करने वाले पूर्व पत्रकार राजकुमार भारद्वाज ने बताया कि राज्य में सभी वर्गों के 12,000 से अधिक डेरे हैं। इसके अलावा, सिख धर्म से जुड़े 9000 डेरे हैं। इनमें से 300  डेरे खासे मजबूत हैं। पंजाब में इनके अनुयायियों की संख्या बहुत ज्यादा है। यह 300 बड़े और मशहूर डेरे सीधे तौर पर चुनाव को प्रभावित करते हैं। डेरे पंजाब विधानसभा की 117 में से 93 सीटों को प्रभावित करते हैं।  47 सीटें ऐसी हैं जहां डेरे चुनावी परिदृश्य को बदल सकते हैं।  46 सीटों पर डेरे मतदान में बड़ा अंतर लाने की क्षमता रखते हैं। 

पंजाब की 25% आबादी डेरों से जुड़ी
पंजाब में मतदाताओं की संख्या 2.12 करोड़ है। यहां के लगभग 25 प्रतिशत लोग डेरों से जुड़े हुए हैं। प्रदेश के 12 हजार 581 गांवों में 1.13 लाख डेरों की शाखाएं हैं। राजकुमार भारद्वाज ने बताया कि डेरे राजनीति में सीधे तौर पर सक्रिय नहीं होते। वह यह दिखाते भर हैं। हकीकत तो यह है कि वह राजनीति में गहरी रुचि लेते हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक विंग बना रखे हैं। जो चुनाव के वक्त किस समर्थन देना है, क्या करना है सब तय करते हैं। 

डेरों के इशारे पर होता है मतदान
समय समय पर डेरो में राजनेता आते रहते हैं। इसलिए डेरे दिखाते ऐसे हैं कि वह राजनीति से दूर हैं, पर किसी न किसी स्तर पर राजनीति से जुड़े रहते हैं। चुनाव से एक दिन पहले डेरों की ओर से इशारा किया जाता है कि किसे मतदान करना है। देखते ही देखते यह इशारा सभी को चला जाता है। 

क्यों हैं इतने ज्यादा डेरे? 
राजकुमार भारद्वाज ने बताया कि वास्तव में ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से लोग डेरों से जुड़ते हैं। गांव में सवर्ण जाति के सिख पिछड़ी और दलित समुदाय के लोगों को गुरुद्वारे में आने से रोकने की कोशिश करते हैं। अपनी पहचान की खातिर यह लोग डेरों से जुड़ जाते हैं। पंजाब में क्योंकि धर्म और आस्था के प्रति लोगों में बड़ा रुझान है। सिख धार्मिक तौर पर ज्यादा सक्रिय रहते हैं। उनकी देखादेखी में दूसरे समुदाय भी उतना ही सक्रिय होना चाहते हैं। इसलिए वह डेरों के साथ जुड़ कर धार्मिक तौर पर सक्रिय रहते हैं। 

प्रमुख डेरे और उनकी पकड़ 
पंजाब के सिरसा में डेरा सच्चा सौदा की शाखाओं की संख्या करीब 10,000 है। मालवा क्षेत्र की 40 से 46 सीटों पर प्रभाव है। 32 सीटों पर डेरा सच्चा सौदा अनुयायी निर्णायक भूमिका में रहते हैं। इसके बाद 1891 में शुरू हुए डेरा राधा स्वामी का 10-12 सीटों पर प्रभाव है। माझा की 2-3 और मालवा की 7-8 सीटों पर नामधारी समुदाय का प्रभाव है। माझा में 4-5 और दोआबा में 3-4 सीटों पर दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की मजबूत पकड़ मानी जाती है। इसके अलावा, 27 देशों में फैले निरंकारी मिशन ने मालवा में 3-4 और माझा में 2-3 सीटों को प्रभावित किया है।

राजनीतिक दलों के प्रति डेरों की सोच समय-समय पर बदलती रही है। राज्य की अब तक की दो सबसे बड़ी पार्टियों, चाहे वह कांग्रेस हो या अकाली दल ने डेरा का समर्थन लिया है। 2007 के चुनाव में डेरा सच्चा सौदा ने कांग्रेस की जीत में अहम भूमिका निभाई थी। मालवा क्षेत्र में कांग्रेस को भारी समर्थन मिला।
2009 के लोकसभा चुनाव में डेरा सच्चा सौदा के समर्थन से  शिरोमणि अकाली दल ने जीत हासिल की थी। नतीजा यह रहा कि हरसिमरत कौर ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के बेटे रनिंदर सिंह को एक लाख वोटों से हराया।  डेरा सच्चा सौदा ही नहीं कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल के नेता नामधारी, राधास्वामी आदि अपने लाखों समर्थकों का वोट पाने के लिए सभी डेरों के दरवाजे पर नतमस्तक रहते हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान शायद ही कोई ऐसा नेता हो जो अपनी पार्टी का समर्थन हासिल करने के लिए इन डेरे  में न गया हो।  2016 में राहुल गांधी डेरा ब्यास पहुंचे थे। इस तरह से डेरा कभी अकाली दल तो कभी कांग्रेस को समर्थन देता रहा है। 

भाजपा के लिए इस बार संभावना क्यों है? 

14 फरवरी को मतदान, 10 मार्च को नतीजे
पंजाब में 14 फरवरी को मतदान होगा। वोटों की गिनती 10 मार्च को होगी। 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिला था। पार्टी को 77 सीटों पर जीत मिली थी। 20 सीट जीतकर आम आदमी पार्टी दूसरे नंबर की पार्टी बनी थी। वहीं, शिरोमणि अकाली दल को सिर्फ 15 और बीजेपी को तीन सीट पर जीत मिली थी। पंजाब में विधानसभा के 117 सीट हैं।

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