अपनों की मौत पर काट दिया जाता है औरतों का ये अंग, यहां फैली इस कुप्रथा को जान कांप जाएगी रूह

दुनिया में आज भी ऐसे कई अंधविश्वास और परंपराएं हैं, जिन्हें लोग आंख मूंदकर मानने को मजबूर हैं। इनमें कई प्रथाएं तो ऐसी भी हैं, जिनके बारे में सुनकर ही इंसान की रूह कांप जाए। यही वजह है कि ये परंपरा धीरे-धीरे कुप्रथा का रूप ले लेती है। ऐसी ही एक कुप्रथा एशियाई देश इंडोनेशिया की जनजाति में आज भी पाई जाती है।

Ganesh Mishra | Published : Aug 19, 2022 2:42 PM IST / Updated: Aug 19 2022, 08:16 PM IST

जकार्ता। दुनिया में आज भी ऐसे कई अंधविश्वास और परंपराएं हैं, जिन्हें लोग आंख मूंदकर मानने को मजबूर हैं। इनमें कई प्रथाएं तो ऐसी भी हैं, जिनके बारे में सुनकर ही इंसान की रूह कांप जाए। यही वजह है कि ये परंपरा धीरे-धीरे कुप्रथा का रूप ले लेती है। ऐसी ही एक कुप्रथा एशियाई देश इंडोनेशिया की जनजाति में आज भी पाई जाती है। इंडोनेशिया में पाई जाने वाली ‘डानी’ जनजाति में इस कुप्रथा का चलन काफी ज्यादा है। 

डॉनी जनजाति के लोगों में प्रचलित है ये दर्दनाक परंपरा : 
डानी जनजाति में अगर परिवार के किसी भी सदस्य की मौत हो जाती है तो उस घर की महिलाओं को अपनी उंगली काटनी पड़ती है। इस प्रथा को इकिपालिन (Ikipalin) कहते हैं। हालांकि, इंडोनेशिया की सरकार इस कुप्रथा को बैन कर चुकी है, लेकिन महिलाओं के हाथों की कटी उंगलियां आज भी इस बात का सबूत हैं कि डानी जनजाति के लोग इसे बंद करने को तैयार नहीं हैं। 

उंगली काटने के पीछे ये है मान्यता : 
इंडोनेशिया में जयाविजया पर्वत श्रृंखला के आसपास रहने वाली डानी प्रजाति में ये मान्यता है कि अपने पूर्वजों की आत्मा को शांति देने के लिए घर की महिलाओं को अपनी उंगली काटना जरूरी है। घर में मौत होने पर महिलाओं की उंगली को कुल्हाड़ी से काट दिया जाता है। कहा जाता है कि इससे होने वाला दर्द परिवार के उस खास सदस्य की मौत से कम होता है। 

काटने से पहले रस्सी से बांधी जाती है उंगली : 
इस प्रथा को निभाने के लिए सबसे पहले उस औरत की उंगली को रस्सी से बांध दिया जाता है, जिसके घर में किसी सदस्य की मौत होती है। रस्सी से बांधने की वजह ये है ताकि उंगली में ब्लड फ्लो बंद हो जाए। इसके बाद उंगली के सुन्न पड़ते ही उसे कुल्हाड़ी से काट कर अलग कर दिया जाता है। बाद में इस कटी हुई उंगली को जला दिया जाता है। हालांकि, इस दर्दनाक कुप्रथा को इंडोनेशिया की सरकार बैन कर चुकी है, लेकिन बावजूद इसके जंगली इलाकों में रहने वाली जनजाति इस पर रोक नहीं लगा रही है। 

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