सार
देश में 1 जुलाई से वेज कोड लागू किया जा सकता है। 23 राज्यों ने न्यू वेज कोड के लिए ड्राफ्ट तैयार करके भेज दिया है। केंद्र सरकार इसे पिछले एक साल से लागू करने की तैयारी में है।
नई दिल्लीः देश में न्यू वेज कोड (New wage code) 1 जुलाई से लागू किया जा सकता है। इसके लिए तैयारियां भी तेज हो गई हैं। देश के 23 राज्यों ने न्यू वेज कोड के लिए ड्राफ्ट तैयार करके भेज दिए हैं। बता दें कि केंद्र सरकार (Central government) पिछले एक साल से इसे लागू करने की तैयारी कर रही है। न्यू वेज कोड में 4 लेबर कोड (Labour Code) को साथ लाने की तैयार हो रही है। खबर ये भी है कि नए श्रम कानूनों (New wage Code) में कुछ बदलाव किए जाएंगे
छुट्टियों में हो सकता है बदलाव
नए लेबर कोड को 2019 में संसद में पारित किया जा चुका है। इसके तहत सबसे बड़ा बदलाव सरकारी छुट्टियों (Earned leave) को लेकर हो सकता है। बता दें कि अभी सरकारी महकमों में 1 साल में 30 छुट्टियां मिलती हैं। वहीं डिफेंस में 1 साल में 60 छुट्टियां मिलती हैं। इन छुट्टियों को कैश कराया जा सकता है। कैरी फॉरवर्ड होने पर अभी 300 छुट्टियों को कैश किया जा सकता है। लेकिन न्यू वेज कोड के तहत इन छुट्टियों की संख्या को 300 से बढ़ाकर 450 करने की मांग की गई है। ये मांग लेबर यूनियन (Labour Union) ने की है।
बढ़ाया जाएगा अलाउंस
सैलरी स्ट्रक्चर को लेकर भी कुछ असहमतियां थीं। लेकिन अब लेबर मिनिस्ट्री (Labour Ministry) और लेबर यूनियन (Labour Union) के बीच चर्चा के बाद नई ड्राफ्ट गाइडलाइन तैयार की जा रही हैं। अभी तक जो गाइडलाइन तैयार की गई थीं। उसमें कुल CTC का 50% बेसिक सैलरी और 50% अलाउंस में रखने की बात थी। नौकरीपेशा की इनहैंड सैलरी कम होने की चर्चा थी। टैक्स का बोझ बढ़ने की भी संभावनाएं जताई गई थीं। लेकिन, अब स्ट्रक्चर में थोड़ा बदलाव आ सकता है। सूत्रों की मानें तो न्यू वेज कोड लागू होते ही अलाउंस के पार्ट को सीधे 50% नहीं रखा जाएगा। बल्कि धीरे-धीरे इन्हें बढ़ाया जाएगा।
बढ़ जाएगी ग्रेच्युटी की रकम
भारतीय मजदूर संघ के महासचिव विरजेश उपाध्याय के मुताबिक, इंडस्ट्री ने नए सैलरी स्ट्रक्चर में 50% अलाउंस रखने का विरोध किया था। इसलिए इसे बदला जा रहा है। नए लेबर कोड में बेसिक पे (Basic Salary), महंगाई भत्ता (Dearness Allowances – DA) और रिटेनिंग अलाउंसेज भी शामिल होंगे। हाउस रेंट अलाउंसेज (HRA) और ओवरटाइम अलाउंसेज (Overtime Allowances) शामिल नहीं किया जाएगा। अलाउंस के शामिल होने से इम्प्लॉई और इम्प्लॉयर को प्रोविडेंट फंड में ज्यादा योगदान करना होगा। ग्रेच्युटी की रकम (Gratuity) भी बढ़ जाएगी।
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