सार

सिराजुद्दीन के गांव की आबादी 500 की है। गांव में 100 घर हैं, जिनमें से 22 से ज्यादा घरों में लाइब्रेरी बन चुकी है। उन्हीं की तरह हेल्मतपोरा में मुबाशिर मुश्ताक भी लाइब्रेरी की मदद से कश्मीर को 'ज्ञान की घाटी' बनाना चाहते हैं।

करियर डेस्क : कश्मीर के सिराजुद्दीन खान (Sirajuddin Khan) आज अपने सपने को पूरा करने के लिए जिस कदर आगे बढ़ रहे हैं, वह युवाओं के लिए प्रेरणा बन रही है। बड़ी संख्या में यूथ उनसे प्रभावित हो रहा है। दरअसल, इंग्लैंड और महाराष्ट्र में 'पुस्तकालय गांव' की खबर से सिराजुद्दीन इतने प्रभावित हुए हैं कि उन्होंने खुद के गांव के हर घर में लाइब्रेरी खोलने का ठाना। घर-घर में एजुकेशन पहुंचाने के लक्ष्य पर आगे बढ़ रहे सिराजुद्दीन अब तक गांव के 22 से ज्यादा घरों में लाइब्रेरी खोल चुके हैं। बता दें कि वह उत्तरी कश्मीर के बांदीपोर (Bandipore) जिले के अरगाम गांव के रहने वाले हैं। गांव की आबादी 500 है और यहां करीब 100 घर हैं।

एजुकेशन को आगे ले जाना चाहते हैं सिराजुद्दीन

सिराजुद्दीन खान पुणे के 'सरहद फाउंडेशन' में पले-बढ़े हैं। इसकी स्थापना संजय नाहर ने की है। इस फाउंडेशन का उद्देश्य आतंकवाद के शिकार कश्मीरी लड़कों और लड़कियों के एजुकेशन पर फोकस करना है। नई दिल्ली में चल रहे विश्व पुस्तक मेले (New Delhi World Book Fair) में सरहद फाउंडेशन का स्टॉल लगाया गया है। यहीं पर मीडिया से बातचीत करते हुए सिराजुद्दीन ने कहा कि 'किताबें आंखें खोलती हैं और नॉलेज आपको बताता है कि आप कहां खड़े हैं और क्या कर सकते हैं।'

'लाइब्रेरी विलेज' का सपना

इतिहास में पीएचडी सिराजुद्दीन बताते हैं कि 'लाइब्रेरी विलेज' का विचार उन्हें इंग्लैंड से आया है। जब कोविड ने अपना पांव फैलाया, तब वे इस सपने को पूरा करने में जुट गए। कुछ समय बाद ही उन्हें पता चला कि महाराष्ट्र के बेलार गांव में भी एक 'गांव पुस्तकालय' खोला गया है। इसमें राज्य सरकार ने भी मदद की है। इसके बाद अपने गांव में घर-घर लाइब्रेरी खोलने में उन्होंने और भी मेहनत झोक दी। इसमें उन्हें नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया और जम्मू-कश्मीर सरकार की मदद भी मिली है। यही का नतीजा है कि 100 घर वाले गांव में अब तक 22 से ज्यादा घरों में लाइब्रेरी बन कर तैयार है।

'हर घर पुस्तकालय' से होगा फायदा

सिराजुद्दीन बताते हैं कि 'हर घर पुस्तकालय' के लिए हर फैमिली को किसी विशेष विषय पर किताबों का कलेक्शन करना चाहिए। इससे गांव के लोग आपस में किसी भी टॉपिक पर अपने विचार शेयर कर सकेंगे। किताबें लेने वे एक-दूसरे के पास जाएंगे। इससे ग्रामीणों में एकता बढ़ेगी और आपसी समस्या समाधान भी होगा। इसका फायदा उन्हें इसलिए भी ज्यादा मिलेगी क्योंकि उनका गांव सरहद के पास है। सिराजुद्दीन का कहना है कि सरकार सभी को नौकरी नहीं दे सकती, इसलिए एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।

कश्मीर को बनाएंगे 'ज्ञान की घाटी'

सिराजुद्दीन ने सरहद फाउंडेशन की मदद से हाल ही में सरहद के पास के गांवों की 25 लड़कियों को इंग्लिश-कंप्यूटर की कोचिंग दी है। इन लड़कियों ने 'ट्रेन द ट्रेनर' प्रोग्राम के तहत काफी कुछ सीखा है। घर जाने के बाद ये दूसरों की मदद करेंगी। सिराजुद्दीन अपने गांव के हर घर में लाइब्रेरी होने का सपना पूरा करने के बाद कश्मीर को 'ज्ञान की घाटी' बनाने के मिशन की शुरुआत करेंगे। जिससे बाकी के गांव की तस्वीर भी बदली जाएगी।

हेल्मतपोरा में मुबाशिर मुश्ताक भी इसी राह पर

कश्मीर के ही मुबाशिर मुश्ताक भी इसी राह पर चलते दिखाई दे रहे हैं। कोरोना के दौरान पढ़ने के लिए कुछ न मिल पाने की वजह से उन्हें जो परेशानी हुई, उससे उन्होंने जाना कि घर में लाइब्रेरी होनी कितनी जरूरी है। क्योंकि तब उन्हें किताबों की खोज में गांव से 100 किमी दूर श्रीनगर आना पड़ा था। मुबशिर ने अपने फ्रेंड्स और रिलेटिव्स की मदद से अपने गांव में एक लाइब्रेरी स्थापित किया है। उन्होंने अपने घर के एक कमरे में पुस्तकालय खोला और उसमें करीब 2,000 किताबें रखी हैं। इस लाइब्रेरी में फिक्शन, नॉन-फिक्शन, मैगजीन, यूपीएससी, एनईईटी जैसी कॉम्पटेटिव एग्जाम की किताबें भी हैं।

सोर्स - आवाज द वाइस
 

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