सार

मुगलकाल में होली का उत्सव ईद-ए-गुलाबी और आब-ए-पाशी नाम से जाना जाता था। मुगलों के अंतिम शासक जफर ने तो होली पर विशेष गीत भी लिखे, जिसे होरी नाम दिया गया। इन गानों की एक सीरीज भी बनी है।

करियर डेस्क : होली (Holi 2023) का खुमार सिर चढ़ा हुआ है। देशभर में रंगों का फेस्टिवल सेलिब्रेट किया जा रहा है। होली की परंपरा सदियों पुरानी है। मुगलकाल (Holi in Mughal Period) में भी होली का इतिहास मिलता है। उस वक्त होली खेलने का अंदाजा काफी अलग था। मुगल काल में होली को ईद-ए-गुलाबी और आब-ए-पाशी कहा जाता था। इतिहासकारों के दस्तावेजों में इसका जिक्र मिलता है।

होली देख चौंक गया था बाबर

भारत में बाबर ने मुगल साम्राज्य की नींव डाली थी। जब पहली बार उसने हिंदुस्तान में होली देखी तो हैरान रह गया था। उसे यह उत्सव काफी पसंद आया और होली खेलने का तरीका भी। उस वक्त हौदिया में रंग भरकर लोगों पर फेंका जाता था।

शराब में डुबाए जाते थे लोग

बाबर ने जब पहली बार होली देखा उसे यह त्योहार इतना पसंद आया कि वह इसे मनाने लगा। 19वीं सदी के इतिहासकार मुंशी जकाउल्ला की किताब 'तारीख-ए-हिन्दुस्तान' में इसका जिक्र मिलता है कि बाबर ने देखा कि हिंदुस्तानी लोग हौदिया में रंग भरकर उसमें लोगों को उठाकर पटक रहे हैं। यह तरीका उसे इतना पसंद आया कि उसने हौदिया में शराब भरवा दिया और इसमें लोग एक-दूसरे को पटकते थे।

अकबर के समय में ऐसे मनती थी होली

होली की यह परंपरा अकबर के कार में भी जारी रहा। अकबर के नवरत्नों में से एक अबुल फजल ने 'आइन-ए-अकबरी' में इसका जिक्र किया है। उन्होंने लिखा कि अकबर को होली का उत्सव काफी अच्छा लगता था। अकबर के साम्राज्य में सालभर उन चीजों को इकट्ठा किया जाता था, जिससे रंगों का छिड़काव हो सके और पानी को दूर तक फेंककर किसी को भिगोया जा सके। किताब में बताया गया है कि होली के दिन अकबर खुद भी महल से बाहर आते और आम लोगों के साथ होली खेलते थे।

होली पर जमती थी संगीत की महफिल

जहांगीर का काल आया तो होली को संगीत की विशेष महफिलों में तब्दील कर दिया गया। 'तुज्क-ए-जहांगीरी' के अनुसार, जहांगीर जनता के साथ होली नहीं खेलता था। ये उसे पसंद नहीं था लेकिन इस दिन संगीत महफिलों का आयोजन होता और वह इसमें शामिल होता था। उसे होली देखना तो पसंद था लेकिन खेलना नहीं।

जनता के साथ होली खेलते थे शाहजहां

होली के उत्सव शाहजहां को दौर में और भी ज्यादा भव्य हुआ। शाहजहां अपनी जनता के बीच जाकर होली खेलते थे। उनके काल में यह उत्सव शाही बन गया और तब होली को ईद-ए-गुलाबी और आब-ए-पाशी नाम से मनाया जाता था। मुगलों के अंतिम शासक जफर ने होली पर विशेष गीत लिखे, जिसे होरी नाम दिया गया। ये गीत उर्दू गीतों की एक सीरीज बनी। उर्दू अखबार 'जाम-ए-जहनुमा' में 1844 में लिखा- जफर के शासन में होली के लिए विशेष व्यवस्था होती थी। टेसू के फूलों से रंग बनते और बादशाह परिवार के साथ उत्सव मनाते थे।

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