सार

Google Doodle: भारत की पहली महिला वैज्ञानिक कमला सोहोनी को श्रद्धांजलि देने के लिए आज गूगल ने उनकी 112वीं जयंती पर उनका डूडल बनाया है। आइए जानते हैं कौन हैं कमला सोहोनी। 

एजुकेशन डेस्क। गूगल किन्ही खास मौकों पर डूडल बनाता है. आज गूगल ने दिवंगत कमला सोहोनी के नाम से गूगल डूडल बनाया है। कमला सोहोनी देश की पहली महिला साइंटिस्ट थीं। गूगल ने आज उनका डूडल बनाकर उन्हें अपनी तरफ से ट्रीब्यूट दिया है। साइंस की फील्ड में आगे बढ़ने के लिए कमला सोहोनी आज की महिलाओं के लिए एक नजीर हैं।

कमला सोहोनी की जयंती पर गूगल ने बनाया डूडल
गूगल ने कमला सोहोनी के डूडल को कलरफुल एनिमेटेड चित्र बनाकर सजाया है। इसमें कमला सोहोनी की ओर से साइंस की फील्ड में किए गए उनका काम को दिखाने के प्रयास किया गया है। इसमें माइक्रोस्कोप, साइंटिफिक स्लाइड और आसपास कई पौधों के चित्र भी दिखाए गए हैं।

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साइंस में पीएचडी करने वाली पहली महिला
साइंस सब्जेक्ट में पीएचडी करने वाली कमला सोहोनी देश की पहली महिला थीं। 8 जून 1911 में इंदौर में जन्मी कमला सोहोनी ने वर्ष 1913 में साइंस में पीएचडी कम्प्लीट की और साइंटिस्ट बनीं। इसके बाद कमला सोहोनी भारत के प्रतिष्ठित भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर (IISc) में ऐंट्री मिली। वह पहली महिला थी जिन्हें इस इंस्टीट्यूट से जुड़ने का मौका मिला। 

बायोकेमिस्ट कमला सोहोनी ने किया था अहम शोध
बायोकेमिस्ट कमला सोहोनी ने कैंब्रिज विश्वविद्यालय में एक शोध छात्रवृत्ति हासिल की थी. यहां उन्होंने साइटोक्रोम सी की एक महत्वपूर्ण खोज की थी जो कि सभी पौधों की कोशिकाओं में ऊर्जा उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण एंजाइम माना जाता है. उन्होंने इस खोज पर अपनी पीएचडी थीसिस पूरी की थी.

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कमला सोहोनी को कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में मिली थी स्कॉलरशिप
डॉ. सोहोनी ने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कॉलरशिप भी मिली थी। डॉ सोहोनी ने एनर्जी प्रोडक्शन के लिए इंपॉर्टेंट एंजाइम साइटोक्रोम की खोज भी की थी जिसके बाद रिसर्च में यह भी साबित हुआ था कि यह साइटोक्रोम सभी प्लांट्स की सेल्स में मौजूद था। सोहोनी ने सिर्फ 14 महीनों में के रिसर्च के बाद इस खोज के बारे में अपनी थीसिस पूरी की और पीएचडी पूरी की।

कमला सोहोनी को मिला था राष्ट्रपति पुरुस्कार
ताड़ के अर्क के पोषण संबंधी लाभों पर उनके काम  'नीरा' कहा जाता है काफी सराहना मिली थी। इस रिसर्च के लिए कमला सोहोनी को राष्ट्रपति पुरस्कार भी दिया गया था। वह बॉम्बे में रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की पहली महिला निदेशक भी रही थीं.