साल 1967 के बाद देश की राजनीति कुछ ठीक नहीं चल रही थी। कांग्रेस में उथल-पुथल मची थी। केंद्र की राजनीति में जो कुछ भी दिखाई दे रहा था, उससे साफ पता चलने लगा था कि इंदिरा गांधी सिंडिकेट के तौर तरीकों से नाखुश थीं। कहा जाता है कि उस वक्त गुजरात में जो भी मुख्यमंत्री बनता, मोरारजी देसाई का करीबी होता था।