सार

वेजिटेरियन के सामने अगर मांस-मछली की बात की जाए, तो वो नाक-मुंह सिकोड़ने लगते हैं। ऐसी चीजों को हाथ लगाना तो दूर की बात। लेकिन यह मीट और मछली वे खा सकते हैं। यह बात हैरान करती है, लेकिन IIT दिल्ली ने प्लांट बेस्ड मीट और मछली तैयार की है। इसका स्वाद और खुशबू एकदम असली जैसा है।

कई बीमारियों और सेहत से जुड़े मामलों में नॉनवेज खाने वाले जल्दी स्वस्थ्य हो जाते हैं। वेजिटेरियन को टाइम लगता है। ऐसे मामलों में डॉक्टर भी कुछ नहीं कर पाते। क्योंकि वेजिटेरियन तो मांस-मछली के नामभर से नाक-मुंह सिकोड़ने लगते हैं। उसे खाना तो दूर..हाथ तक लगाना पसंद नहीं करते। कई बार तो नॉनवेज की बात करने पर बातचीत छोड़कर चले जाते हैं। इस समस्या का अब समाधान निकाल लिया गया है। अब वेजिटेरियन भी यह मीट और मछली वे खा सकते हैं। यह बात हैरान करती है, लेकिन IIT दिल्ली ने प्लांट बेस्ड मीट और मछली तैयार की है। इसका स्वाद और खुशबू एकदम असली जैसा है।

प्लांट में तैयार किया गया मीट-मछली
यह प्रयोग किया है आईआईटी दिल्ली के सेंटर फॉर रूरल डेवलपमेंट एंड टेक्नोलॉजी ने। इसे मॉक मीट का नाम दिया गया है। इस रिसर्च पर पिछले 2 साल से काम चल रहा था। इसे तैयार किया है प्रो. काव्या दशारा और उनकी टीम ने। ये पोषक व सुरक्षित प्रोटीन प्रोडक्ट पर लगातार काम कर रही थीं। बता दें कि प्रो. काव्या को यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP) की ओर से मॉक एग के इनोवेशन के लिए पुरस्कार भी मिल चुका है। प्लांट बेस्ड मीट और मछली के प्रोडक्ट को देखने पिछले दिनों UN की टीम ने IIT दिल्ली में में विजिट भी की थी। यहां वेजिटेरियन अंडे भी तैयार किए गए हैं। प्रो. काव्या कहती हैं कि बाजार में उपलब्ध मीट और मछली के प्रोडक्शन में हार्मोन को इस्तेमाल होने लगा है, ताकि प्रोडक्शन बढ़े। हालांकि यह लोगों की सेहत के लिए ठीक नहीं है। इसी को ध्यान में रखकर यह मॉक तैयार किया गया है।

पहले टेस्ट कराया गया

मॉक मीट और मछली स्वाद आदि के मामले में कितना सफल है, इसका टेस्ट करने बंगाल और पूर्वांचल के लोगों को दिल्ली बुलाया गया था। ये वो लोग थे, जिनके डाइट में रोज मीट शामिल होता है। इन्होंने इस मॉक मीट को बड़े स्वाद से खाया। अब टीम इसे बाजार के मानकों के हिसाब से तैयार कर रही है।

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