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किसान की लाडली अब बनेगी IPS, पिता ने बेटी को बेटा समझकर पढ़ाया, नतीजा- UPSC 2020 की टॉपर बन गई वो
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जिस परिवेश से आती हैं, वहां पढ़ाई का नहीं था माहौल
काजल जिस परिवेश से आती हैं। वहां पढ़ाई का बहुत ज्यादा माहौल नहीं था। उस लिहाज से उन्हें यही लगता था कि यदि कुछ करना है तो खुद से संघर्ष करना होगा। परिवार की तरफ से पूरा सपोर्ट था लेकिन आगे बढ़ने के लिए राह कौन दिखाए। शुरुआती दिनों से ही यह गाइडेंस मिसिंग था। उनका कहना है कि यदि किसी बच्चे के पास पहले से ये गाइडेंस है तो उसके लिए तैयारी करना अपेक्षाकृत आसान हो जाता है।
2019 इंडियन इंजीनियरिंग सर्विस की परीक्षा पास की
आईआईटी दिल्ली से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक के बाद काजल ने यूपीएससी परीक्षा की तैयारी शुरु की। कुछ दिन कोचिंग की, उसके बाद सेल्फ स्टडी की। यूपीएससी की वर्ष 2017, 2018 और 2019 की परीक्षा में वह शामिल हुईं लेकिन उनके इन तीनों अटेम्प्ट में प्रीलिम्स के नतीजे भी उनके पक्ष में नहीं आए। यूपीएससी 2020 के चौथे प्रयास में उन्हें 202वीं रैंक मिली। उनका कहना है कि यह पूरी तैयारी बहुत ही उतार-चढ़ाव से भरी होती है। मेहनत के साथ लक भी फैक्टर होता है। इतना ही नहीं उन्होंने वर्ष 2019 में इंडियन इंजीनियरिंग सर्विस (आइइएस) की परीक्षा में 13वीं रैंक हासिल की थी। वर्ष 2020 में यूपीपीसीएस परीक्षा में भी उन्हें सफलता मिली। उनकी 46वीं रैंक आयी थी और उन्हें डिप्टी कलेक्टर का पद मिला था। पर उसके बजाए उन्होंने इंडियन इंजीनियरिंग सर्विस को ही बेहतर समझा। वर्तमान में वह प्रशिक्षणरत हैं।
सिविल सर्विस में आने के लिए घर से मिला मोटिवेशन
काजल कहती हैं कि बचपन से मजाक में मेरे दादा स्वर्गीय गंभीर सिंह कहा करते थे कि मेरी बेटी एसडीएम—डीएम बनेगी। दिमाग में इन चीजों ने जगह बना ली थी। कॉलेज के बाद जब यह जानने का मौका मिला कि सिविल सर्विस ऐसा प्लेटफार्म है, जहां से आप सोसाइटी में बड़ा चेंज ला सकते हो। यही उनका सिविल सर्विस के लिए तैयारी का मोटिवेशन बना। उनका कहना है कि प्रशासनिक सेवा में काम का प्रभाव सीधे दिखता है।
निराशा से उबरकर ही बेहतर परफार्मेंस
यूपीएससी की परीक्षा में काजल तीन प्रयास में असफल रहीं तो जब भी उनका रिजल्ट नकारात्मक आता था तो उन्हें निराशा होती थी। उन्होंने हर बार परीक्षा में कड़ी मेहनत की। हर अगले प्रयास में पिछले प्रयास से ज्यादा मेहनत की। काजल कहती हैं कि जब सामने एक बड़ा लक्ष्य होता है तो उसे प्राप्त करने के लिए मुश्किलों को हराना ही पड़ता है। खुद को मोटिवेट करना पड़ता है कि इस बार नहीं तो अगली बार जरुर सफलता मिलेगी और उसी उम्मीद में और ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। निराशा से उबरना बहुत ज्यादा जरूरी होता है तभी हम अगली बार बेहतर परफार्मेंस कर सकते हैं। लक्ष्य ध्यान में रखना है। उनका कहना है कि सबके लिए यह जर्नी अलग होती है। सबके सामने दिक्कतें अलग अलग तरह की आती हैं। उनके लिए प्रारम्भिक परीक्षा ही थी, जिसका नतीजा हर बार अटक जाता था।
किसान पिता ने बेटी को बेटा समझकर पढ़ाया
काजल की शुरुआती पढ़ाई सेंट मैरी स्कूल बिजनौर से हुई। इसके बाद वह वनस्थली राजस्थान चली गई और वहां से 10वीं तक की पढ़ाई पूरी की। 12वीं की पढ़ाई उन्होंने कोटा से की। उनके पिता देवेंद्र सिंह किसान हैं और ईंट-भट्ठे का भी काम करते हैं। मां कुसुम देवी गृहिणी हैं। उनकी छोटी बहन अदिति सिंह ग्रेजुएशन कर रही हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि देवेंद्र सिंह के कोई बेटा नहीं था तो उन्होंने अपनी बेटी को ही बेटा समझकर पढ़ाया और आगे बढ़ाया और बेटी ने भी बेटे की कमी नहीं खलने दी। उनका नाम जिले में रोशन कर दिया। काजल की हाबीज स्केचिंग करना, डायरी लिखना और क्लासिकल डांस है।
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