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आपदा के समय डैम ब्रेक होने वाला हो तो आप क्या करेंगे? UPSC Interview के इस सवाल पर जान लें कैंडिडेट का जवाब
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गाजीपुर के रहने वाले हैं सुमित, UPSC के लिए नहीं मानी कभी हार
सुमित कुमार यूपी के गाजीपुर जिले के जल्लापुर गांव के रहने वाले हैं। वे युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उन्होंने हार नहीं मानी। लगातार UPSC परीक्षा की तैयारी में लगे रहे। वह कुल 4 मुख्य परीक्षाओं में शामिल हुए। दो बार इंटरव्यू दिया। वर्ष 2017-18 की UPSC परीक्षा के तीसरे प्रयास में उनकी 940 वीं रैंक आई थी। उन्हें भारतीय डाक एवं दूरसंचार लेखा और वित्त सेवा समूह (IP&TAFS) काडर मिला था। वर्ष 2015 में लखनऊ के आइइटी इंजीनियरिंग कॉलेज से कंप्यूटर साइंस में ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने UPSC परीक्षा की तैयारी शुरू की थी।
दूरसंचार महकमे में उप निदेशक, फिर भी सफलता की भूख नहीं मिटी
सुमित वर्तमान में उत्तराखंड में दूरसंचार महकमे में उप निदेशक के पद पर तैनात हैं। मगर, उनका सपना अभी पूरा नहीं हुआ था। वे आईएएस बनना चाहते थे। उनके उस ख्वाब ने उन्हें थमने का अवसर नहीं दिया। वह यहीं नहीं रूके, उन्होंने UPSC परीक्षा की तैयारी जारी रखी और पांचवीं बार में साल 2020 के नतीजे सुखद रहे। उन्हें एक बार फिर सफलता हासिल हुई। इस बार उन्हें 687वीं रैंक मिली है। सुमित कहते हैं कि वह अपना सपना पूरा करने का प्रयास जारी रखेंगे। फिर भी वर्तमान रैंक के आधार पर उन्हें IRPS या भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा (IAAF) काडर मिल सकता है।
परिवार का मिला सपोर्ट
सुमित के पिता चौथी राम पासवान साल 2015 में स्वास्थ्य महकमे की सेवा से रिटायर हुए हैं। मां गिरिजा देवी गृहिणी हैं। ग्रेजुएशन के बाद कॉलेज में प्लेसमेंट नहीं मिला तो परीक्षा की तैयारी के लिए उन्होंने दिल्ली का रुख किया। उन्हें तैयारी के दरम्यान परिवार का पूरा सहयोग मिला। जल्दी सफलता मिलने के बाद काफी उतार चढ़ाव रहे। पहले सफलता मिली। फिर प्रयास किया तो सफलता नहीं मिली। इस बार भी उन्हें जो रैंक मिली है, वह उनकी अपेक्षा के मुताबिक नहीं है।
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सपना पूरा करने की लालसा फिर से प्रयास के लिए करती है प्रेरित
सुमित कहते हैं कि उन्हें परीक्षा की तैयारी के दौरान हताशा-निराशा होती थी। पर उनका सपना उन्हें हिम्मत देता था। सपना बड़ी चीज होती है। वह नहीं ब्रेक होना चाहिए, भले ही आप ब्रेक हो जाएं। सपना पूरा करने की लालसा आपको फिर से प्रयास के लिए प्रेरित करती है। समाज में आप जो चीजें देखते हैं, उसमें बदलाव लाना चाहते हैं। उचित पद प्राप्त कर ही बदलाव लाया जा सकता है। जब आप लांच पैड पर पहुंचेंगे, तभी आप सेवा कर पाएंगे और समाज में अपना योगदान दे पाएंगे। यह मोटिवेशन ही होता है कि पहले आप वहां पहुंचना चाहते हैं। ताकि उस पद पर पहुंचकर आप जो बदलाव लाना चाहते हैं, वह ला पाएं।
सफलता में परिवार के साथ टीचर्स का योगदान अहम
सुमित अपनी सफलता का श्रेय परिवार को देते हैं। वे कहते हैं कि परिवार के लोगों ने कहा कि आप अपने सपने को पूरा करने में लगिए। इसका नतीजा सकारात्मक हो या नकारात्मक, उससे फर्क नहीं पड़ता। उसमें हम आपके साथ हैं। समाजशास्त्र के अध्यापक कुमार अमित और सुभाष महापात्रा जी तैयारी में हमेशा मदद करते रहें। उनका बड़ा योगदान रहा।
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इंटरव्यू के समय डेकोरम मेंटेन रखने का ध्यान
सुमित दूरसंचार विभाग में डिप्टी डायरेक्टर के पद पर तैनात हैं तो इंटरव्यू के पहले वह यही सोच रहे थे कि वह पहले से ही ग्रुप-ए के चयनित अधिकारी हैं। उन्हें पहले अपना डेकोरम मेंटेन रखना है। तनाव नहीं लेना है, घबराना नहीं है। बिल्कुल फ्रेश होकर इंटरव्यू बोर्ड का सामना करना है। खासकर अपना स्वभाव बनाए रखना है। एक सरकारी अधिकारी होने की वजह से उनसे ज्यादातर प्रशासन से जुड़े ही सवाल पूछे गए।
परीक्षा खुशी और दुख मनाने का समय नहीं देती
सुमित कहते हैं कि परीक्षा की तैयारी में लगे युवाओं को आराम नहीं करना चाहिए। यहां बहुत प्रतिस्पर्धा है। यदि आप अपना 100 प्रतिशत देंगे तो निश्चित तौर पर यूपीएससी में आपका चयन होगा। सफलता का एक ही मंत्र है कि लगे रहिए। अब ऐसा मत करिए कि थकने के बाद विचार आए कि अब रिचार्ज होने के लिए एक महीने का समय चाहिए। इस परीक्षा की संरचना ऐसी ही है कि यह आपको खुशी और दुख मनाने का समय नहीं देता है, यह समय लेता है। जिस दिन नाकामयाबी मिले, उसके अगले दिन से फिर अगले प्रयास के लिए तैयार हो जाइए। बहुत कम लोग हैं जो पहले और दूसरे प्रयास में चयनित हो जाते हैं।
विभाग में आपका क्या रोल है?
• मैं डिप्टी डायरेक्टर हूं। हर दिन मुझे प्रशासन का काम देखना होता है। कब—किससे, क्या काम लेना है, मासिक, त्रैमासिक और वार्षिक रिपोर्ट भेजनी होती है। बजट सैंक्शन करना होता है।
आप वर्तमान में उत्तराखंड में पोस्टेड हैं, यदि आपदा के समय में डैम ब्रेक होने वाला हो तो आप क्या करेंगे?
• डैम टूटने वाला है, यदि उसका गेट नहीं खोलेंगे तो आपदा आ जाएगी, डैम टूट जाएगा। उससे निचले इलाके में रहने वाले लोगों को क्षति पहुंचेगी और जान माल का ज्यादा नुकसान होगा। निचले इलाके में रहने वाले लोगों को इस बारे में जानकारी देकर उन्हें वहां से धीरे धीरे विस्थापित कर सकते हैं।
उज्ज्वला कैसी योजना है, लोगों को सिलेंडर तो दे दिए गए पर उनके पास दोबारा सिलेंडर रिफिल कराने के पैसे नहीं हैं?
• मैं विशेष तौर पर ग्रामीण परिवेश से हूं। मैंने महिलाओं को 2 से 4 घंटे धुएं के बीच संघर्ष करते देखा है। यदि महिलाओं को उज्ज्वला योजना के जरिए सिलेंडर से थोड़ी राहत मिल रही है, उनका जीवन बेहतर हो रहा है, तो उसमें कुछ भी बुराई नहीं है। हां, यदि सिलेंडर दोबारा रिफिल नहीं कराया जा रहा है तो हम परिवार गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों को पुन: सिलेंडर सब्सिजाइज्ड करके या फ्री में देने के बारे में सोच सकते हैं और उसमें आने वाले खर्च की पूर्ति कहीं और से कर सकते हैं। यह योजना बुरी नहीं है, सफलतम योजना है।
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पश्चिमी यूपी में गन्ने की खेती होती है वह इनवायरमेंट के लिए बहुत अच्छी नहीं है। बहुत सारा पानी इस्तेमाल होता है, गन्ने का प्रोडक्शन बहुत है, खपत उतनी नहीं है, बहुत सारा स्टोरेज है, फिर भी लोग गन्ने की खेती किए जा रहे हैं?
• किसी भी इलाके का ट्रापिकल (उष्णकटिबन्धीय) पैटर्न बहुत वर्षों में विकसित होता है। पश्चिमी यूपी में आजादी के पहले से ही गन्ने की खेती होती रही है। पर्यावरणीय समस्या है, उसके लिए गन्ने की जगह अन्य वैरायटी की फसलें उगाने का प्रचलन शुरू करना होगा। यूपी सरकार नयी योजनाएं लेकर आ रही है। दाल, आयल आदि मोटे अनाज की उपज के बारे में विचार किया जा सकता है। उससे पर्यावरणीय सामंजस्य बन जाएगा। वैसे भी गन्ने की उपज में ज्यादा समय लगता है, मोटे अनाज की उपज में इतना समय नहीं लगता। गन्ना मिलों से भुगतान की भी समस्या बनी रहती है। वह भुगतान समय से नहीं मिलने से किसान निवेश नहीं कर पाते हैं। यह भी एक मुददा है। कई तरह की वैरायटी की उपज को बढावा देने से यह समस्या भी हल हो सकती है।