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2 दिन घर में पड़ी रही किसी की लाश तो किसी को अर्थी तक ना मिली, गरीबी में हुई इन 12 सेलेब्स की मौत
एंटरटेनमेंट डेस्क. 'क़ुबूल है' (Qubool Hai) जैसे सीरियल्स में काम कर चुकीं एक्ट्रेस निशि सिंह (Nishi Singh) नहीं रहीं। मौत से दो दिन पहले ही अपना 50वां जन्मदिन मनाने वाली निशि सिंह को आखिरी वक्त में अपना इलाज कराने के लिए घर और कार तक बेचना पड़ा। वे फिर भी नहीं बचीं। उनकी मौत के बाद उनका परिवार शोक में तो डूबा ही है, आर्थिक संकट में भी आ गया है। वैसे चकाचौंध से भरी एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में पहले भी कई सेलेब्स आर्थिक तंगी में दुनिया छोड़कर जा चुके हैं। आज हम आपको ऐसे ही 12 सेलेब्स के बारे में बता रहे हैं...
| Published : Sep 19 2022, 12:06 PM IST / Updated: Sep 19 2022, 02:56 PM IST
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गुजरे जमाने की एक्ट्रेस मीना कुमारी को भला कौन नहीं जानता। महज 4 साल की उम्र में अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत करने वाली मीना कुमारी ट्रेजिडी क्वीन के नाम से मशहूर हैं। 31 मार्च 1972 को जब उनका निधन हुआ, उस वक्त वे 38 साल की थीं। बताया जाता है कि मीना कुमारी के पास आखिरी वक्त में अस्पताल का बिल जमा करने के पैसे नहीं थे।
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'पीपली लाइव' और 'पान सिंह तोमर' जैसी फिल्मों में नजर आए अभिनेता सीताराम पांचाल का अगस्त 2017 में निधन हो गया था। वे किडनी और लंग कैंसर से जूझ रहे थे। अंतिम वक्त में उनके पास अपना इलाज कराने के तक पैसे नहीं थे और गरीबी में ही उन्होंने अंतिम सांस ली थी।
एक ज़माने की सबसे खूबसूरत एक्ट्रेसेस में शामिल रहीं परवीन बाबी की मौत आर्थिक तंगी में हुई थी। 70 और 80 के दशक में 'अमर अकबर एंथोनी' और 'नमक हलाल' जैसी फिल्मों में नजर आईं परवीन का निधन 20 जनवरी 2005 को उनके अपार्टमेंट में हो गया था। 2 दिन तक उनकी लाश अपार्टमेंट में ही पड़ी रही थी। आखिरी वक्त में उनके पास अपना इलाज कराने तक के पैसे नहीं थे।
70 के दशक में 'हमराज' जैसी फिल्मों में अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाने वाली विमी पति से तलाक के बाद डिप्रेशन में चली गई थीं। उनके आखिरी दिन अकेलेपन और गरीबी में गुजरे थे। 22 अगस्त 1977 को जब उनका निधन हुआ तो उनके अंतिम संस्कार में फिल्म इंडस्ट्री से कोई भी शामिल नहीं हुआ था। यहां तक कि उनकी लाश को हाथ ठेले से श्मशान घाट तक ले जाया गया था।
40 और 50 के दशक की एक्ट्रेस नलिनी जयवंत काजोल की नानी शोभना समर्थ की चचेरी बहन थीं और इस रिश्ते से वे भी उनकी नानी ही लगती थीं। इतने बड़े और प्रतिष्ठित खानदान से ताल्लुक रखने के बावजूद उनकी मौत गरीबी और अकेलेपन में हुई थी। 'बहन' (1941) जैसी फिल्मों की हीरोइन नलिनी ने दो शादियां की थीं और दूसरे पति के निधन के बाद उन्होंने खुद को समाज से अलग कर लिया था। 2010 में बेहद आर्थिक तंगी में 84 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था। बताया जाता है कि आखिरी वक्त में उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वे अस्पताल का बिल भर सकें।
'शोले' के इमाम साहब ए. के. हंगल की मौत गरीबी में हुई थी। आखिरी वक्त में उनके पास इलाज कराने तक के पैसे नहीं थे। अमिताभ बच्चन ने ट्रीटमेंट के लिए उन्हें 20 लाख रुपए दिए थे। हालांकि, बुढ़ापे संबंधी दिक्कतों के चलते 95 साल की उम्र में 26 अगस्त 2012 को उनका निधन हो गया।
कुकू मोरे एंग्लो-इंडियन डांसर और एक्ट्रेस थीं, जिन्होंने 'बरसात' (1949), 'हंसते आंसू' (1950) और 'मुझे जीने दो' (1963) जैसी फिल्मों में काम किया था। 30 सितम्बर 1981 को कैंसर से उनका निधन हुआ था। निधन के वक्त कुकू करीब 53 साल की थीं और कहा जाता है कि उनका आखिरी वक्त गरीबी में बीता था। यहां तक कि मौत के वक्त तक फिल्म इंडस्ट्री उन्हें भूल चुकी थी।
एक वक्त था, जब भगवान दादा फिल्म इंडस्ट्री के सबसे सफल इंसान थे। उनके पास जुहू बीच पर 25 बेडरूम वाला बंगला और 7 लग्जरी कारें थीं। लेकिन किस्मत ने पलटी खाई और उनका सबकुछ बिक गया। आखिरी वक्त उन्हें और उनके परिवार को चॉल में काटना पड़ा। 2002 में 89 की उम्र में गरीबी से जूझते हुए उनका निधन हो गया।
अचला सचदेव ने 120 से ज्यादा फिल्मों में काम किया था, जिनमें 'कल हो ना हो', 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे', 'छैला बाबू', 'गीता मेरा नाम', 'अलबेला' और 'कन्यादान' जैसे टाइटल शामिल हैं। पति पीटर के निधन के बाद वे अकेली रहने लगी थीं और 30 अप्रैल 2012 को जब पुणे में उनका निधन हुआ, तब वे गरीबी और अकेलेपन से जूझ रही थीं। उनके पास इलाज के पैसे तक नहीं थे।
भारत भूषण 50 के दशक में भारतीय सिनेमा के सबसे हैंडसम एक्टर्स में से एक थे। उन्होंने फिल्मों से खूब कमाई की। लेकिन जुए की लत ने उन्हें बर्बाद कर दिया। वे अपनी पूरी जमा-पूंजी गंवा बैठे और अंतिम वक्त उन्हें चॉल में काटना पड़ा था। 27 जनवरी 1992 को गरीबी में ही उनका निधन हो गया था।
1930 और 1940 के दशक में पॉपुलर एक्टर चन्द्र मोहन का निधन 1949 में गरीबी से जूझते हुए हुआ था। जबकि उन्होंने 20 से ज्यादा फिल्मों में काम किया था। इनमें 'मुग़ल-ए-आजम' और ''रामबाण' शामिल हैं। बताया जाता है कि शराब और जुए की लत ने उन्हें बर्बाद कर दिया था और 44 की उम्र में वे दुनिया छोड़ गए थे।
1920 से 1970 के दशक तक 'बलिदान', 'बाज़' और 'आम्रपाली' जैसी फिल्मों की हीरोइन रहीं रूबी मयेर्स यानी सुलोचना के बारे में कहा जाता है कि वे बॉम्बे के गवर्नर से भी ज्यादा कमाई करती थीं। उन्होंने अपना प्रोडक्शन हाउस भी शुरू किया था। लेकिन 1983 में जब उनका निधन हुआ तो उनके पास कुछ भी नहीं था।
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